पीएम डिग्री: दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कोर्ट में कहा- आरटीआई का उद्देश्य जिज्ञासा की तुष्टि नहीं

दिल्ली विश्वविद्यालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कॉलेज डिग्री से संबंधित मामले में दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि आरटीआई आवेदन का उद्देश्य तीसरे पक्ष की जिज्ञासा को संतुष्ट करना नहीं हो सकता. याचिका में 1978 में स्नातक करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति मांगी गई थी.

दिल्ली यूनिवर्सिटी. (फोटो साभार: विकीपिडिया)

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कॉलेज डिग्री से संबंधित मामले में दिल्ली हाईकोर्ट से कहा है कि सूचना के अधिकार के तहत आवेदन का उद्देश्य तीसरे पक्ष की जिज्ञासा को संतुष्ट करना नहीं हो सकता.

विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि छात्रों की जानकारी विश्वविद्यालय द्वारा ‘न्यायिक क्षमता’ में रखी जाती है. उन्होंने तर्क दिया कि इसे किसी अजनबी को नहीं बताया जा सकता.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ के समक्ष मेहता ने कहा, ‘धारा 6 में यह प्रावधान है कि सूचना देनी होगी, यही उद्देश्य है. लेकिन आरटीआई अधिनियम किसी की जिज्ञासा को संतुष्ट करने के उद्देश्य से नहीं है.’

हाईकोर्ट केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश के खिलाफ दिल्ली विश्वविद्यालय की 2017 की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें 1978 में कला स्नातक कार्यक्रम से स्नातक करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति मांगी गई थी. यह वही वर्ष है जब मोदी ने परीक्षा उत्तीर्ण की थी.

‘दुरुपयोग’

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मेहता ने दलील दी कि आरटीआई कानून का ‘दुरुपयोग’ ऐसी सूचना के प्रकटीकरण का आदेश देकर नहीं किया जा सकता जो सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही से ‘संबंधित नहीं’ है.

हालांकि, मोदी की डिग्रियों को लेकर अटकलें और विवाद हैं, लेकिन मेहता ने सुझाव दिया कि इससे इस तरह के और अधिक अनुरोध सामने आएंगे.

उन्होंने कहा, ‘वह हर किसी से 1978 की जानकारी चाहते हैं. कोई आकर 1979 बता सकता है. कोई 1964 बता सकता है. इस विश्वविद्यालय की स्थापना 1922 में हुई थी.’

एक दशक के प्रयास

सीआईसी ने लगभग एक दशक पहले 2016 में आरटीआई कार्यकर्ता नीरज कुमार के 1978 डीयू स्नातकों के विवरण के लिए आवेदन के जवाब में अपना आदेश पारित किया था.

लाइव लॉ ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि सीआईसी ने पाया था कि प्रत्येक विश्वविद्यालय एक सार्वजनिक निकाय है और डिग्री से संबंधित सभी जानकारी विश्वविद्यालय के निजी रजिस्टर में उपलब्ध है, जो एक सार्वजनिक दस्तावेज है.

पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा दायर मानहानि के मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी समन को रद्द करने से इनकार कर दिया था.

यह मामला मोदी की शिक्षा के बारे में की गई टिप्पणियों को लेकर दायर किया गया था. भारतीय जनता पार्टी (मोदी की पार्टी) ने आरोप लगाया है कि उन्होंने डीयू से बीए करने के बाद जीयू से मास्टर्स की डिग्री हासिल की है.