मोहन भागवत का दावा, प्रणब मुखर्जी ने कहा था- घर वापसी नहीं होती तो आदिवासी राष्ट्र-विरोधी हो जाते

आरएसए प्रमुख मोहन भागवत ने दावा किया है कि दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनसे कहा था कि अगर संघ द्वारा धर्मांतरण पर काम नहीं किया गया होता तो आदिवासियों का एक वर्ग राष्ट्र-विरोधी हो गया होता. 2020 में दिवंगत हुए मुखर्जी से इस बातचीत का कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है.

मोहन भागवत. (फोटो साभार: एक्स/@RSSorg)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने दावा किया है कि भारत के दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘घर वापसी’ कार्यक्रम की सराहना करते हुए उनसे कहा था कि अगर संघ द्वारा धर्मांतरण पर काम नहीं किया गया होता तो आदिवासियों का एक वर्ग राष्ट्र-विरोधी हो गया होता.

रिपोर्ट के मुताबिक, मोहन भागवत ने यह बात सोमवार (13 जनवरी) को इंदौर के एक कार्यक्रम में कही. उ्होंने दावा किया कि यह बात उन्हें प्रणब मुखर्जी ने एक निजी मुलाकात में कही थी.

मालूम हो कि प्रणब मुखर्जी का साल 2020 में निधन हुआ था. उनकी भागवत से इस तरह की बातचीत का कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी खबर में इस बात का उल्लेख किया है कि ऐसी कोई भी टिप्पणी प्रणब मुखर्जी और उनकी पूर्ववर्ती पार्टी कांग्रेस, दोनों द्वारा अपनाए गए राजनीतिक रुख के बिल्कुल उलट है.

ज्ञात हो कि ‘घर वापसी’ संघ परिवार के नेतृत्व वाला एक कार्यक्रम है, जिसमें इस्लाम, ईसाई और अन्य धर्मों में आस्था रखने वाले लोगों को हिंदू धर्म में परिवर्तित किया जाता है, क्योंकि संघ का मानना ये है कि सभी भारतीय मूल रूप से हिंदू हैं और इस प्रकार इस धर्मांतरण का अर्थ अनिवार्य रूप से ‘घर वापसी’ है.

इंडियन एक्सप्रेस रिपोर्ट के अनुसार, भागवत ने कहा, ‘डॉ प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे, तब मैं पहली बार उनसे मिलने गया. संसद में घर वापसी को लेकर बहुत बड़ा हल्ला चल रहा था. मैं तैयार हो कर गया कि वे बहुत कुछ पूछेंगे, बहुत बताना पड़ेगा. लेकिन उन्होंने कहा कि आप लोगों ने कुछ लोगों को वापस लाया और प्रेस कॉन्फ्रेंस की.. ऐसा कैसे करते हो आप? ऐसा करने से हो-हल्ला होता है क्योंकि वो राजनीति है. मैं भी अगर आज कांग्रेस पार्टी में होता, राष्ट्रपति नहीं होता, तो मैं भी संसद में यही करता.’

आरएसएस प्रमुख ने आगे कहा, ‘प्रणब मुखर्जी ने फिर कहा लेकिन आप लोगों ने ये जो काम किया है उसके कारण भारत के 30% आदिवासी… मैंने उनकी लाइन पकड़ ली और उनके बोलने के अंदाज से मुझे बहुत खुशी हुई. इस पर मैंने कहा ये लोग ईसाई बन जाते, तो वो बोले ईसाई नहीं, देशद्रोही बन जाते.’

एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि भागवत ने इस पहलू पर विस्तार से बात की और इस बात पर जोर दिया कि यदि प्रलोभन के माध्यम से धर्मांतरण किया जाता है तो यह लोगों को उनकी जड़ों उखाड़ फेंकता है.

मोहन भागवत ने कहा, ‘धर्मांतरण अगर आंतरिक आह्वान से होता है तो यह ठीक है. हमारा मानना ​​​​है कि सभी प्रकार की प्रार्थनाएं सही हैं लेकिन अगर धर्मांतरण प्रलोभन या बल से किया जाता है, तो इसका वास्तविक उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है, बल्कि प्रभाव बढ़ाना है.

उसी कार्यक्रम में भागवत ने मुखर्जी के उस कथन को भी उद्धृत किया जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि दुनिया को भारत को धर्मनिरपेक्षता नहीं सिखानी चाहिए क्योंकि धर्मनिरपेक्षता भारत के 5,000 वर्षों के सभ्यतागत इतिहास का हिस्सा है.

गौरतलब है कि 2018 में, मुखर्जी ने आरएसएस के विजयादशमी कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि भाग लिया था, जिसने महत्वपूर्ण लोगों का ध्यान आकर्षित किया था.

द वायर ने अपने एक लेख में बताया था कि इस दौरान उन्होंने नागपुर के उस भाषण में आरएसएस से कहा था कि राष्ट्रवाद को किसी एक धर्म, भाषा या क्षेत्र के संदर्भ में परिभाषित नहीं किया जा सकता है. उन्होंने इस बात को समझाने के लिए जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर को उद्धृत किया कि धर्मनिरपेक्षता और समावेशन आस्था के घटक हैं.