बांग्लादेश आयोग ने संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ हटाने का प्रस्ताव रखा

बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के संविधान सुधार आयोग ने देश के संविधान से 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' जैसे मौलिक सिद्धांतों को हटाने की सिफ़ारिश की है. साथ ही द्विसदनीय संसद शुरू करने और प्रधानमंत्री के कार्यकाल को दो कार्यकाल तक सीमित करने का भी सुझाव दिया है.

(फोटो साभार: Wikimedia Commons/Contentguide/CC BY-SA 4.0)

नई दिल्ली: बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के संविधान सुधार आयोग ने देश के संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ जैसे मौलिक सिद्धांतों को हटाने की सिफारिश की है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, संविधान सुधार आयोग ने बुधवार को अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रवाद के राज्य सिद्धांतों को हटाने का प्रस्ताव दिया गया है.

बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर छात्र आंदोलन और शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाने के बाद यूनुस प्रशासन द्वारा स्थापित आयोग ने देश के लिए द्विसदनीय संसद शुरू करने और प्रधानमंत्री के कार्यकाल को दो कार्यकाल तक सीमित करने का भी सुझाव दिया है.

ये तीन सिद्धांत देश के संविधान में ‘राज्य नीति के मूलभूत सिद्धांतों’ के रूप में स्थापित चार सिद्धांतों में से हैं. नए प्रस्तावों के तहत केवल एक – ‘लोकतंत्र’ – अपरिवर्तित रहेगा.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, आयोग के अध्यक्ष अली रियाज ने एक वीडियो बयान में कहा, ‘हम 1971 के मुक्ति संग्राम के महान आदर्शों और 2024 के जनांदोलन के दौरान लोगों की आकांक्षाओं के प्रतिबिंब के लिए पांच राज्य सिद्धांतों – समानता, मानव सम्मान, सामाजिक न्याय, बहुलवाद और लोकतंत्र – का प्रस्ताव कर रहे हैं.’

यूनुस को प्रस्तुत किए गए रिपोर्ट में संविधान की प्रस्तावना में चार नए सिद्धांतों के साथ-साथ ‘लोकतंत्र’ को भी बरकरार रखा गया है.

मुख्य सलाहकार के प्रेस कार्यालय ने रियाज़ के हवाले से एक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि आयोग ने द्विसदनीय संसद के गठन की सिफारिश की है, जिसमें निचले सदन को नेशनल असेंबली और ऊपरी सदन को सीनेट नाम दिया जाएगा, जिसमें क्रमशः 105 और 400 सीटें होंगी.

रिपोर्ट में प्रस्ताव दिया गया है कि संसद के वर्तमान पांच साल के कार्यकाल के बजाय दोनों सदनों का कार्यकाल चार साल होना चाहिए. इसमें सुझाव दिया गया है कि निचले सदन को बहुमत के आधार पर और ऊपरी सदन को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर बनाया जाना चाहिए.

आयोग ने संस्थागत शक्ति संतुलन की अनुपस्थिति और प्रधानमंत्री कार्यालय में सत्ता के केंद्रीकरण को पिछले 16 वर्षों में बांग्लादेश में अनुभव की गई ‘निरंकुश सत्तावाद’ के पीछे प्रमुख कारक बताया.

इसने प्रधानमंत्री के कार्यकाल को दो कार्यकाल तक सीमित करने की सिफारिश की तथा सरकार की तीनों शाखाओं और दो कार्यकारी पदों – प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति – के बीच नियंत्रण और संतुलन स्थापित करने के लिए एक संवैधानिक निकाय, राष्ट्रीय संवैधानिक परिषद के गठन का प्रस्ताव रखा.

इस परिषद में राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता (दोनों संसद द्वारा चुने जाएंगे) के साथ-साथ दोनों सदनों के अध्यक्ष, विपक्ष के उप-अध्यक्ष और अन्य दलों के प्रतिनिधि शामिल होंगे.

आयोग ने सुझाव दिया कि यह संस्था एक संवैधानिक निकाय के रूप में नियुक्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेगी.

रियाज़ ने कहा कि आयोग ने संविधान में संशोधन के लिए जनमत संग्रह प्रणाली को फिर से शुरू करने का भी प्रस्ताव रखा है. वर्तमान में संसद दो-तिहाई बहुमत से अपने आप संविधान में संशोधन कर सकती है.

रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश के संविधान में 1971 में इसके निर्माण के बाद से 17 बार संशोधन किया जा चुका है. 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ नौ महीने के मुक्ति संग्राम के बाद देश को आजादी मिली थी.

भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के नेताओं, जिन्होंने जुलाई-अगस्त में विद्रोह का नेतृत्व किया था, जिसने शेख हसीना की लगभग 16 साल पुरानी अवामी लीग सरकार को उखाड़ फेंका था, ने संविधान को ‘मुजीबिस्ट’ चार्टर के रूप में संदर्भित किया है – जो बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर रहमान, शेख हसीना के पिता का संदर्भ है.

उन्होंने ‘मुजीबिस्ट 1972 संविधान’ को रद्द करने की मांग की है, इस मांग का अवामी लीग की कट्टर प्रतिद्वंद्वी, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने विरोध किया है.

इस बात की औचित्य और वैधता को लेकर भी सवाल उठे हैं कि क्या किसी अस्थायी प्रशासन के पास इस तरह के बड़े बदलाव करने का अधिकार है.

बीएनपी के संगठन सचिव शमा ओबैद ने कहा, ‘हमारी पार्टी सुधारों की ज़रूरत का समर्थन करती है और उसने यूनुस प्रशासन को अपने प्रस्ताव सौंपे हैं. लेकिन इन्हें अंतरिम प्रशासन नहीं, बल्कि निर्वाचित सरकार द्वारा लागू किया जाना चाहिए.’