नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले बवाना में प्रस्तावित अपशिष्ट (कचरा) से ऊर्जा बनाने के संयंत्र (वेस्ट टू एनर्जी प्लांट) का मुद्दा केंद्र में आ गया है. स्थानीय निवासियों ने इसे लेकर पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं जताई हैं और एक वर्ग ने धमकी दी है कि अगर परियोजना आगे बढ़ी तो वे चुनाव का बहिष्कार करेंगे.
समाचार एजेंसी पीटीआई की खबर के मुताबिक, डीएसआईडीसी सेक्टर 5 में खतरनाक कचरे के उपचार, भंडारण और निपटान के लिए 15 एकड़ की साइट पर इस संयंत्र की योजना बनाई गई है.
आस पास के 15 से अधिक गांवों के निवासियों ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए दावा किया कि इस परियोजना के कारण पेड़ काटे जाएंगे, वायु और जल प्रदूषण बढ़ेगा तथा श्वसन संबंधी बीमारियों के साथ-साथ तंत्रिका संबंधी विकारों सहित दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम पैदा होंगे.
ग्रामीणों ने यह भी तर्क दिया कि संयंत्र से निकलने वाले उत्सर्जन जैसे डाइऑक्सिन, फ्यूरान, पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और पीएम 10) और यहां तक कि पारा एवं सीसा जैसी भारी धातुएं न केवल वायु की गुणवत्ता को खराब करेंगी बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी खतरे में डालेंगी.
नरेला विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सनोथ गांव के निवासी राजपाल सैनी ने पीटीआई को बताया, ‘इस संयंत्र से निकलने वाला जहरीला उत्सर्जन हमारे जीवन को खतरे में डाल देगा. हम पहले से ही आस-पास की फैक्टरियों और अन्य डब्ल्यूटीई संयंत्रों से होने वाले प्रदूषण से जूझ रहे हैं. अब इस संयंत्र की स्थापना होने से यह और असहनीय बन जाएगा.’
वहीं, अधिकारियों ने सुझाव दिया है कि प्रस्तावित डब्ल्यूटीई संयंत्र में सभी आवश्यक प्रदूषण नियंत्रण प्रणालियां होंगी, जबकि स्थानीय लोगों ने नए संयंत्र के क्षेत्र में अन्य मौजूदा डब्ल्यूटीई संयंत्रों के समान होने की आशंका जताई है, जिनसे निकलने वाली राख के कुप्रबंधन और खतरनाक रूप से उच्च स्तर के प्रदूषक के कारण आस पास के समुदाय प्रभावित होते हैं.
क्षेत्र में इसी तरह के डब्ल्यूटीई संयंत्रों के पिछले रिकॉर्ड की ओर इशारा करते हुए एक अन्य निवासी मांगे राम ने कहा, ‘ओखला डब्ल्यूटीई संयंत्र इसका प्रमुख उदाहरण है. खतरनाक राख और जहरीले उत्सर्जन ने आसपास के क्षेत्रों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. हम कैसे भरोसा कर सकते हैं कि यह संयंत्र कुछ अलग होगा?’
उन्होंने डब्ल्यूटीई संयंत्रों से अपशिष्ट और राख के कथित ‘अनुचित प्रबंधन’ के कारण मिट्टी और पानी के संदूषण की आशंका को भी उजागर किया.
सनोथ के एक अन्य निवासी राकेश कुमार ने बताया, ‘अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण उपायों का वादा करते हैं, लेकिन हमने पहले भी विफलताएं देखी हैं. अन्य संयंत्रों में राख के कुप्रबंधन ने आस-पास के समुदायों को नुकसान पहुंचाया है और हम यहां ऐसे जोखिम नहीं उठा सकते.’
बवाना के निवासी भी प्रस्तावित स्थल पर मौजूदा पेड़ों के भविष्य को लेकर आशंकित और चिंतित हैं तथा उन्होंने छह जनवरी को उप वन संरक्षक को एक पत्र लिखा है. बवाना की जेजे कॉलोनी के निवासी राम चंद्रन ने पीटीआई से कहा, ‘इस 15 एकड़ भूमि पर बड़े-बड़े पेड़ हैं जो स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं. प्रदूषण बढ़ाने वाली परियोजना के लिए इन पेड़ों को नष्ट करना अस्वीकार्य है.’
निवासियों ने आरोप लगाया कि सनोथ गांव, जेजे कॉलोनी, सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) कैंप और वायु सेना स्टेशन सहित प्रमुख आबादी वाले क्षेत्रों को पर्यावरण संवेदनशीलता रिपोर्ट से बाहर रखा गया है.
इस संबंध में बवाना ‘रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन’ के अध्यक्ष यश ने कहा, ‘जानबूझकर की गई यह चूक पारदर्शिता की कमी को दर्शाती है. ऐसे निर्णयों में प्रभावित समुदायों को शामिल किया जाना चाहिए.’
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की नीतियों की ‘विफलताओं’ पर जोर देते हुए पर्यावरणविद् भवरीन कंधारी ने कहा कि उचित पृथक्करण के बिना जलाने के लिए भेजे गए अपशिष्ट से जहरीला उत्सर्जन होता है और खतरनाक राख निकलती है.
कंधारी ने बताया, ‘अपशिष्ट को जलाने पर अत्यधिक निर्भरता एक गहरी प्रणालीगत विफलता को दर्शाती है, जो अधिकारियों द्वारा 2016 के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन उपनियमों को लागू न करने से और बढ़ गई है.”
उन्होंने कहा कि अपशिष्ट को जलाकर एनर्जी पाने में निवेश करने के बजाय, अपशिष्ट की रोकथाम, कटौती और पुनर्चक्रण समाधानों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जो शहर और समुदायों दोनों की रक्षा करते हैं.
परियोजना का विरोध कर रहे निवासियों ने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला दिया है, जो जीवन के अधिकार के तौर पर स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण के अधिकार की गारंटी देता है.
इस संबंध में बवाना में जेजे कॉलोनी की सामाजिक कार्यकर्ता निशा सिंह ने कहा कि विकास हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए.
गौरतलब है कि 27 दिसंबर 2024 को प्रस्तावित डब्ल्यूटीई संयंत्र की पर्यावरणीय मंजूरी के लिए दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा बवाना में प्रस्तावित संयंत्र स्थल पर एक सार्वजनिक सुनवाई आयोजित की गई थी. इस दौरान हजारों स्थानीय निवासी भारी बारिश के कारण कीचड़ से लथपथ साइट पर एकत्र हुए और उन्होंने इस परियोजना के खिलाफ नारे लगाए और कहा था कि वे इस साइट पर प्रस्तावित परियोजना की अनुमति नहीं देंगे.
डीपीसीसी रिपोर्ट में कहा गया कि वे इस परियोजना के खिलाफ हैं क्योंकि उनके गांवों के आसपास पहले से ही ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाएं चल रही हैं.
इसमें आगे कहा गया है कि बवाना औद्योगिक क्षेत्र में लगभग 30,000 उद्योग पहले से ही काम कर रहे हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ा है और वे किसी अन्य ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधा को डंप साइट के लिए अनुमति नहीं दे सकते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, ‘परियोजना के प्रतिनिधियों ने आश्वासन दिया कि संयंत्र में सभी आवश्यक प्रदूषण नियंत्रण प्रणालियां होंगी. बायोडिग्रेडेबल और रिसाइकिल योग्य कचरे के लिए अलग-अलग उपचार होंगे. इस परियोजना के माध्यम से, कचरे को मूल्यवान संसाधनों में परिवर्तित किया जाएगा और रोजगार पैदा किया जाएगा और स्थानीय व्यवसाय के लिए भी फायदेमंद होगा.’
मालूम हो कि दिल्ली में चुनाव नजदीक आने के साथ ही प्रस्तावित डब्ल्यूटीई संयंत्र क्षेत्र में एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है. यहां के निवासियों ने चेतावनी दी है कि जब तक उनकी चिंताओं का समाधान नहीं किया जाता, वे 5 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करेंगे.