नई दिल्ली: ‘कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया’ (सीबीसीआई) ने गुरुवार (16 जनवरी) को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की उस कथित टिप्पणी की आलोचना की, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति रहते हुए उनसे कहा था कि अगर ‘घर वापसी’ नहीं हुई होती तो आदिवासी ‘राष्ट्र-विरोधी’ हो गए होते.
समाचार एजेंसी पीटीआई की खबर के मुताबिक, कैथोलिक बिशपों की संस्था सीबीसीआई ने एक बयान जारी कर उन खबरों का हवाला दिया, जिनमें कथित तौर पर कहा गया है कि भागवत ने सोमवार (13 जनवरी) को एक कार्यक्रम में दावा किया था कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘घर वापसी’ की सराहना करते हुए कहा था कि यदि संघ ने धर्मांतरण पर काम नहीं किया होता तो आदिवासियों का एक वर्ग ‘राष्ट्र-विरोधी’ हो गया होता.
सीबीसीआई ने इन खबरों को ‘चौंकाने वाला’ बताया. संस्था ने सवाल भी उठाया कि मोहन भागवत ने प्रणब मुखर्जी के जीवित रहते कभी इस बारे में कुछ क्यों नहीं बोला.
सीबीसीआई ने कहा, ‘हम 2.3 प्रतिशत ईसाई भारतीय नागरिक इस तरह के छलपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण प्रचार से बहुत आहत महसूस कर रहे हैं.’
ज्ञात हो कि ‘घर वापसी’ एक ऐसा शब्द है, जिसका इस्तेमाल आरएसएस और संबद्ध संगठनों द्वारा मुसलमानों और ईसाइयों को हिंदू धर्म में धर्मांतरित करने के लिए किया जाता है, इस विश्वास के आधार पर कि वे अन्य धर्मों को अपनाने से पहले मूल रूप से हिंदू थे.
मालूम हो कि 2018 में प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस के विजयादशमी कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि भाग लिया था, जिसने महत्वपूर्ण लोगों का ध्यान आकर्षित किया था.
उस समय द वायर ने अपने एक लेख में बताया था कि इस दौरान उन्होंने नागपुर के उस भाषण में आरएसएस से कहा था कि राष्ट्रवाद को किसी एक धर्म, भाषा या क्षेत्र के संदर्भ में परिभाषित नहीं किया जा सकता है. उन्होंने इस बात को समझाने के लिए जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर को उद्धृत किया कि धर्मनिरपेक्षता और समावेशन आस्था के घटक हैं.
सीबीसीआई ने दावा किया कि प्रणब मुखर्जी के साथ मोहन भगवत की मनगढ़ंत व्यक्तिगत बातचीत और संदिग्ध विश्वसनीयता वाले एक संगठन (आरएसएस) के निहित स्वार्थ में उनके मरणोपरांत इसे सामने रखना राष्ट्रीय महत्व का एक गंभीर मुद्दा उठाता है.
संस्था ने पूछा, ‘क्या यह विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और अन्य समान संगठनों का हिंसक घर वापसी कार्यक्रम नहीं है, जो आर्थिक रूप से वंचित आदिवासियों की अंतरात्मा की स्वतंत्रता की कवायद को कम कर रहा है, जो असल राष्ट्र-विरोधी गतिविधि है?’
सीबीसीआई द्वारा जारी बयान के बाद एक्स पर एक पोस्ट में तृणमूल कांग्रेस नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा, ‘यह तो एक शुरुआत है!’
उन्होंने कहा, ‘बिशप संस्था ने एक बयान जारी कर ईसाई समुदाय को बदनाम करने के लिए डॉ. मोहन भागवत और आरएसएस द्वारा की गई टिप्पणियों की निंदा की है.’
ओ’ब्रायन ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से और सवाल पूछने चाहिए, जिसमें यह भी शामिल हो कि क्रिसमस को ‘सुशासन दिवस’ में क्यों बदल दिया गया है.
गौरतलब है कि टीएमसी नेता ने इस महीने की शुरुआत में एक ब्लॉगपोस्ट में कहा था कि ईसाई समुदाय के संबंध में सरकार से ‘कठिन सवाल’ पूछे जाने चाहिए, जिसमें एफसीआरए को ‘हथियार’ बनाने और मणिपुर को ‘अनदेखा’ करना शामिल है.