उत्तर प्रदेश: मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में निष्पक्षता सबसे बड़ा सवाल बन गई है

अयोध्या ज़िले की समाजवादी पार्टी (सपा) के कब्ज़े वाली मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में यह अंदेशा प्रतिद्वंद्वी पार्टियों की जीत-हार के सवाल से बड़ा हो गया है कि चुनाव आयोग वहां स्वतंत्र व निष्पक्ष मतदान कैसे सुनिश्चित करेगा.

नवंबर 2024 में यूपी के मीरापुर के ककरौली में उपचुनाव के मतदान के दौरान मतदाताओं पर पिस्तौल ताने पुलिस अधिकारी. (स्क्रीनग्रैब साभार: X/अखिलेश यादव)

उत्तर प्रदेश में अयोध्या जिले की समाजवादी पार्टी (सपा) के कब्जे वाली मिल्कीपुर (सुरक्षित) विधानसभा सीट के उपचुनाव में यह अंदेशा प्रतिद्वंद्वी पार्टियों की जीत-हार के सवाल से बड़ा हो गया है कि चुनाव आयोग वहां स्वतंत्र व निष्पक्ष मतदान कैसे सुनिश्चित करेगा? क्या विधानसभा की नौ सीटों के गत उपचुनावों की ही तरह, जिनमें पुलिस द्वारा सत्तादल के विरोधी मतदाताओं को गन पॉइंट (बंदूक की नोक) पर मतदान से रोकने तक की शिकायतें सामने आई थीं? अगर हां, तो उसका नतीजा क्या होगा?

हालांकि, चुनाव अधिकारी मतदाताओं को आश्वस्त कर रहे हैं कि मतदान की शुचिता से कोई समझौता नहीं किया जायेगा, लेकिन जानकारों का एक हिस्सा पिछले उपचुनावों के आईने में ही स्थितियों व संभावनाओं का आकलन कर रहा है.

पिछले दिनों एक संवाददाता सम्मेलन में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से पूछा गया कि इस उपचुनाव में भी गन पॉइंट पर मतदाताओं को रोका गया तो उनकी पार्टी क्या करेगी?

इस पर उन्होंने इसे बड़ा सवाल बताकर कहा कि वे अपने कार्यकर्ताओं से कहेंगे कि उस वक्त उन्हें जो भी करना ठीक लगे, वैसा फैसला करें. साथ ही उन्होंने पत्रकारों से ‘निवेदन’ किया कि वे उनके समीकरण (पीडीए) की अजेयता की ज्यादा चर्चा न करें वर्ना सरकार वर्दीधारियों को आगे करके वोट जीत हासिल करने में लग जाएगी.

उन्होंने यह भी कहा कि देश के इस ‘सबसे बड़े उपचुनाव’ के नतीजे का हमारे लोकतंत्र की संभावनाओं पर गंभीर असर होगा. दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी  (भाजपा) अपने अलग नजरिये से इस उपचुनाव को बेहद महत्वपूर्ण बता रही और अपनी प्रतिष्ठा से जोड़े हुए है. अयोध्या के भाजपाई महापौर महंत गिरीशपति त्रिपाठी ने इसे इस मायने में दिल्ली विधानसभा चुनाव से भी ज्यादा महत्वपूर्ण बताया है कि अयोध्या से जुड़ा होने के कारण यह भाजपा की आन का सवाल है.

यह तब है, जब सपा या भाजपा किसी ने भी इस उपचुनाव में कोई स्टार प्रत्याशी नहीं उतारा है और 2027 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे नौ विधानसभा सीटों के गत उपचुनाव में भाजपा दो के मुकाबले सात सीटों से जीत दर्ज कर चुकी है.

अब ‘भूलसुधार’ पर टेक

इस बीच कई जानकार उस उपचुनाव में कथित धांधली की खबरों से मतदाताओं के निरुत्साह होने और मतदान प्रतिशत गिरने की आशंकाएं जता रहे हैं. लेकिन उन्हें नहीं लगता कि इसका किसी एक पक्ष को एकतरफा तौर पर नफा या नुकसान होगा.

उनकी मानें तो सत्तारूढ़ भाजपा के विरोधी मतदाता यह सोचकर घर से नहीं निकलेंगे कि कौन जाने पुलिस उन्हें बूथ तक जाने भी दे या नहीं, तो भाजपा समर्थक मतदाता भी यह सोचकर घर बैठे रह सकते हैं कि उनकी पार्टी तो वैसे भी जीत ही जाएगी.

इस बीच भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार की भाषा थोड़ी बदल ली है. पहले वह मतदाताओं से लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट (जिसके अंतर्गत अयोध्या भी है) पर रामभक्तों की शिकस्त का बदला लेने की बात करती थी, लेकिन अब हरियाणा व महाराष्ट्र के मतदाताओं की तरह ‘भूल सुधार’ करने की बात कह रही है.

यों, इस उपचुनाव में भी उसकी सबसे ज्यादा निर्भरता अयोध्या में राममंदिर निर्माण और त्रेता की वापसी के ही मुद्दे पर है. भले ही, वह अपनी सरकारों की ‘कल्याणकारी’ और मुफ्त राशन योजनाओं पर भी टेक रख रही है.

उसके विपरीत सपा को उम्मीद है कि अवधेश प्रसाद द्वारा मंत्री व विधायक के रूप में की गई क्षेत्रीय मतदाताओं की सेवा उसके प्रत्याशी के बहुत काम आएगी और नतीजा उसके पक्ष में ही रहेगा.

ज्ञातव्य है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से चुने गए पार्टी के अवधेश गत लोकसभा चुनाव में फैजाबाद के सांसद बन गए और उनके इस्तीफे से इसके रिक्त होने के बाद उनके बेटे अजीत प्रसाद प्रत्याशी हैं.

कई विश्लेषकों के अनुसार अलग-अलग कारणों से इस बार के मुकाबले में सपा-भाजपा दोनों का मुश्किलों से सामना है और कोई भी आश्वस्त अनुभव नहीं कर रही. हां, एक की मुश्किल को दूसरी अपनी सहूलियत बनाने में लगी है. बात को प्रत्याशियों की उपजातियों तक भी ले जा रही हैं, भले ही सारे प्रत्याशी दलित हैं.

भाजपा जहां सपा के प्रत्याशी पर वंशवाद का टैग लगाकर मतदाताओं से उसे नकारने को कह रही है, सपा ने भाजपा प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान पर बाहरी होने का टैग लगा रखा है क्योंकि वे इस विधानसभा क्षेत्र के निवासी नहीं बल्कि पड़ोसी हैं. उन्हें भाजपा के टिकट के आठ-नौ दूसरे दावेदारों के असंतोष और उदासीनता का सामना भी करना पड़ रहा है. ये दावेदार उनके नामांकन जुलूस में भी नहीं आए, भले ही उसमें योगी सरकार के सात मंत्री शामिल हुए.

भाजपा में असंतोष

इन असंतुष्ट दावेदारों में भाजपा के पूर्व विधायक बाबा गोरखनाथ भी हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में इन गोरखनाथ को हराकर ही सपा के अवधेश प्रसाद जीते थे. तब गोरखनाथ ने उनके विरुद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. सांसद बनने के बाद अवधेश ने विधायकी छोड़ी तो इस याचिका के विचाराधीन होने के कारण चुनाव आयोग ने प्रदेश की अन्य नौ रिक्त विधानसभा सीटों के उपचुनावों के साथ इस सीट का उपचुनाव नहीं कराया.

तब गोरखनाथ ने यह मानकर कि उपचुनाव होगा तो उनकी पार्टी उन्हें ही टिकट देगी, हाईकोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली. लेकिन उसके बाद उपचुनाव का कार्यक्रम घोषित हुआ तो भाजपा ने उनके बजाय चंद्रभानु पासवान को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया. इंटरनल सर्वे के बहाने किए गए इस फ़ैसले ने इस मायने में भी चौंकाया कि इससे ठीक पहले कथित तौर पर प्रदेश के एक मंत्री से नजदीकी रखने वाले उनके विभाग के एक दलित अधिकारी ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कर इस उम्मीद में अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन दिए कि भाजपा का टिकट पाने की उसकी हसरत पूरी हो जाएगी.

लेकिन न उसकी मुराद पूरी हुई और न गोरखनाथ की. अब इन दोनों के अलावा कई और दावेदारों के नाराज होने की खबरों के बीच सपाई कहते हैं कि वे बगावत न करें , उदासीन भर हो जायें तो भी भाजपा का बड़ा नुक़सान कर देंगे.

सत्ता विरोधी मत बंटेंगे?

इस घटनाक्रम से भाजपा थोड़ी परेशान तो है, लेकिन उसे लगता है कि चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ की आज़ाद समाज पार्टी द्वारा मैदान में उतारे गए सपा के बागी सूरज चौधरी सत्ता-विरोधी मतदाताओं में विभाजन कराकर उसकी राह आसान कर देंगे. इससे सपा को चुनाव मैदान में बसपा की अनुपस्थिति का लाभ भी नहीं मिलेगा.

लेकिन सपा इससे इत्तेफाक नहीं रखती और दावा करती है कि समझदार मतदाता भाजपा को हराने में सक्षम प्रत्याशी को ही वोट देंगे और वह सपा का प्रत्याशी ही है.

लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट से अवधेश प्रसाद की जीत का भरपूर स्वागत कर चुके राहुल के कारण कांग्रेस खुलकर सपा का समर्थन कर रही है, तो जयंत चौधरी और ओमप्रकाश राजभर की पार्टियां (रालोद व सुभासपा) भाजपा का बल बढ़ा रही हैं.

अवधेश प्रसाद की मानें, तो भाजपा के प्रति इतनी एंटीइंकम्बेंसी है कि जितनी बार मुख्यमंत्री इस क्षेत्र में आएंगे, भाजपा के वोट उतने ही कम हो जाएंगे. दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने समुचित मुआवजे के बगैर भूमि अधिग्रहण से पीड़ित अयोध्या के किसानों को आश्वस्त किया है कि सपा सरकार आई तो अव्वल तो वह किसानों की भूमि लेगी ही नहीं और किसी कारण लेगी भी तो छह गुना मुआवजा देगी. इस घोषणा का उद्देश्य भी अयोध्या के साथ मिल्कीपुर के किसानों को खुश करना बताया जाता है.

प्रवाह से परे रहने की आदत

प्रसंगवश, 1967 में अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट के मतदाताओं को किसी भी लहर में न बहने और किसी भी प्रवाह से परे रहने की पुरानी आदत है. इस कदर कि जनता पार्टी और जनता दल के सुनहरे दिनों में भी उन्होंने यहां उनका खाता नहीं खुलने दिया था. 1977 में देश में जनता पार्टी की आंधी चल रही थी, तो इस सीट ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कांग्रेस समर्थित मित्रसेन को चुन लिया था और अगले दो चुनावों में उनका परचम थामे रखा था.

इससे पहले 1967 में इसने कांग्रेस, 1969 में भारतीय जनसंघ और 1974 में फिर कांग्रेस में ही विश्वास जताया था.1989 में यह फिर कांग्रेस की ओर लौट गई और 1991 की रामलहर में भाजपा को उपकृत किया तो अगली जीत के लिए 2017 तक यानी ढाई दशक से ज्यादा तरसाया था. 1996 में इसने एक बार मित्रसेन को चुना था. अलबत्ता, इस बार सपा के टिकट पर.

अगले दो चुनावों में उनके बेटे आनंदसेन ने पहले सपा फिर बसपा के टिकट पर इसका प्रतिनिधित्व किया और 2012 में इसे अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित कर दिया गया तो सपा के अवधेश प्रसाद ने बाजी मारी और अगला चुनाव भाजपा के बाबा गोरखनाथ के हाथों गंवाने के बाद 2022 में वे फिर जीते.

अवधेश प्रसाद लोकसभा पहुंचने वाले इसके दूसरे विधायक हैं. उनसे पहले मित्रसेन इसकी सीढ़ी चढ़कर तीन बार लोकसभा जा चुके हैं. इस सीट पर इससे पहले 1998 और 2004 में उपचुनाव की नौबत आई थी और दोनों बार बाजी सपा के ही हाथ रही थी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)