कृष्णा सोबती की अंतिम इच्छा पर हाउसिंग सोसाइटी का ताला, राष्ट्रीय धरोहर उनका मकान हो रहा जर्जर

कृष्णा सोबती की मृत्यु हुए छह बरस हो गए. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके घर को लेखकीय आवास में तब्दील कर दिया जाए. लेकिन हाउसिंग कॉलोनी की ज़िद की वजह से सोबती की वसीयत आज तक पूरी न हो सकी, और उनका बंद पड़ा घर देखभाल के अभाव में जर्जर हो रहा है.

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कृष्णा सोबती 'पूर्वाशा' आनंदलोक सोसाइटी में रहती थीं. (फोटो: द वायर हिंदी)

नई दिल्ली: हिंदी की महान रचनाकार कृष्णा सोबती की वसीयत में दर्ज उनकी आकांक्षा विचित्र क़ानूनी दांव-पेंच में उलझ गई है. सोबती के निधन के बाद उनके जिस घर को राष्ट्रीय धरोहर होना चाहिए था, वह क़ानूनी जाल में फंसकर खंडहर हो रहा है.

सोबती चाहती थीं कि उनके आवास को ‘लेखकों का घर’ बना दिया जाए, जहां रचनात्मकता को पंख मिले. लेकिन कला, संस्कृति और विचारों के जिस मंच को सोबती यह काम सौंपकर गई थीं, उनकी हाउसिंग सोसाइटी उस रज़ा फाउंडेशन को उनके आवास पर आधिपत्य देने से इनकार कर चुका है.

उनकी वसीयत को लेकर उपजा विवाद साहित्य और कला की विरासत के संरक्षण का एक मुद्दा बन गया है. इस वक्त यह मामला दिल्ली के सोसाइटी रजिस्ट्रार ऑफिस में है. अगली सुनवाई 5 फरवरी को है.

आनंदलोक सोसाइटी का प्रवेश द्वार (फोटो: संतोषी मरकाम/द वायर हिंदी)

डार से बिछुड़ी

भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित कृष्णा सोबती का निधन 25 जनवरी, 2019 को 93 वर्ष की आयु में हुआ था. अपनी मृत्यु से लगभग तीन साल पहले 16 अगस्त, 2016 को उन्होंने अपनी वसीयत बनाई थी.

इसके तहत उन्होंने दिल्ली के मयूर विहार-1 स्थित आनंदलोक हाउसिंग सोसाइटी में अपना बी-505 फ्लैट रज़ा फाउंडेशन को सौंप दिया था.

कृष्णा सोबती की वसीयत का पहला पृष्ठ.

सोबती ने वसीयत में लिखा था, ‘मैं फ्लैट नंबर B-505, गैरेज और उनसे संबंधित सभी सामग्री, जो मेरी स्वामित्व में हैं, रजा फाउंडेशन (कृष्णा सोबती-शिवनाथ निधि) को सौंपती हूं, जिन्हें कृष्णा सोबती शिवनाथ फाउंडेशन का कार्यभार लेने का कानूनी अधिकार प्राप्त है. रज़ा फाउंडेशन ने सहमति व्यक्त की है कि वह इन चल और अचल संपत्तियों का उपयोग भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए करेगा. इसके अलावा, फ्लैट नंबर B-505, पूर्वाशा आनंदलोक सीजीएचएस (कोऑपरेटिव ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी) को रज़ा फाउंडेशन द्वारा लेखक के घर के रूप में उपयोग किया जाएगा, जिसे ‘कृष्णा-शिवनाथ लेखक आवास’ नाम से जाना जाएगा… मुझे पूरी आशा है कि सीजीएचएस इस अनुमति को कृपापूर्वक प्रदान करेगा.’

साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक शिवनाथ, सोबती के पति थे. सोबती के देहांत के बाद रज़ा फाउंडेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी अशोक वाजपेयी ने 16 अप्रैल, 2019 को आनंदलोक सीजीएचएस को पत्र लिखकर सोबती की इच्छा से अवगत कराया. 

23 मई को भेजे गए जवाब में आनंदलोक सीजीएचएस के तत्कालीन सेक्रेटरी आरके मित्तल ने लिखा, ‘कोऑपरेटिव कानूनों और डीडीए लीज डीड के प्रावधानों के तहत किसी ट्रस्ट को सदस्यता देने का कोई प्रावधान नहीं है.’ सोसाइटी ने यह भी बताया कि कृष्णा सोबती द्वारा तैयार की गई वसीयत को अभी तक ‘प्रोबेट’ नहीं किया गया है.

आनंदलोक का जवाब.

प्रोबेट अदालत द्वारा दिया गया एक प्रमाण-पत्र है जिसके बाद वसीयत का अधिकारी उस संपत्ति को अपनी इच्छानुसार प्रयोग कर सकता है.

इस विषय को समझाते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील मयंक यादव ने द वायर हिंदी को बताया, ‘अगर आप प्रोबेट नहीं कराते तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपकी वसीयत गैरकानूनी है. लेकिन प्रोबेट कराने से वसीयत की वैधता प्रमाणित हो जाती है. ये दोनों बातें अलग-अलग हैं, इन्हें जोड़कर नहीं देखना चाहिए.’

सोसाइटी से सकारात्मक जवाब न मिलने के बावजूद रज़ा फाउंडेशन इस आवास का रखरखाव और सोसाइटी के अन्य शुल्कों का नियमित भुगतान करता रहा. यहां यह उल्लेखनीय है कि फाउंडेशन के पास इस आवास के दस्तावेज़ नहीं हैं, इसलिए वह प्रॉपर्टी टैक्स नहीं भर पाया. 

इस संबंध में अशोक वाजपेयी ने सोसाइटी के कोषाध्यक्ष एन. वीराराघवन को 30 अगस्त, 2023 को पत्र लिखा था, ‘हमारे पास इस फ्लैट के सभी मूल कानूनी दस्तावेज नहीं हैं. इनमें से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज, मूल संपत्ति दस्तावेज, हमें उनके (सोबती के) कागजात में नहीं मिला. इस दस्तावेज़ की अनुपस्थिति में हम अब तक संपत्ति कर का भुगतान करने में असमर्थ रहे हैं. यह दस्तावेज़ सोसाइटी के कार्यालय में उपलब्ध होना चाहिए. हम आपके आभारी होंगे यदि इसकी एक प्रति उपलब्ध करा दी जाए ताकि हम संपत्ति कर का भुगतान कर सकें. यदि इसके लिए कोई शुल्क देना हो, तो कृपया हमें सूचित करें.’

फाउंडेशन के मुताबिक, उन्हें अब तक यह दस्तावेज़ नहीं मिला है.

रजा फाउंडेशन का अगस्त 2023 का ख़त.  

जबरन घर खाली कराया गया

इस घर की देखभाल कृष्णा सोबती की सहायिका विमलेश उर्फ नीतू मिश्रा करती थीं. वे सोबती के साथ 18 बरस से रह रही थीं. सोबती के देहांत के बाद वे इस आवास में रहती रहीं. लेकिन 31 दिसंबर, 2023 को सोसाइटी की अध्यक्ष अनिता बाबू ने रज़ा फाउंडेशन को एक पत्र जारी कर विमलेश से तुरंत घर खाली करवाने को कहा.

6 जनवरी, 2024 को सोसाइटी ने विमलेश को भी पत्र लिखा, ‘कानून के अनुसार आप यहाँ अनधिकृत रूप से रहते/रहती हैं. यह घर सोसाइटी के सदस्य का है उनके अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति इसमें नहीं रह सकता. आपको सूचित किया जाता है कि आप इस फ्लैट को एक सप्ताह के अंदर खाली कर दें. अन्यथा सोसाइटी को आपके खिलाफ कार्यवाही करनी पड़ेगी.’

विमलेश मिश्रा (फोटो: अंकित राज/द वायर हिंदी)

अप्रैल 2024 में बाध्य होकर विमलेश को घर छोड़ना पड़ा. विमलेश ने द वायर हिंदी को बताया कि उन्हें इसलिए नोटिस मिला क्योंकि सोसाइटी के संचालक एक ‘कमतर व्यक्ति’ को अपने यहां जगह नहीं देना चाहते थे. ‘सोसाइटी ने मेरे साथ बदतमीज़ी इसलिए की क्योंकि मैं गरीब हूं. वे नहीं चाहते कि उनकी ‘हाई सोसाइटी’ में कोई गरीब व्यक्ति रहे,’ विमलेश कहती हैं.

विमलेश कहती हैं कि बी-505 के ठीक ऊपर के फ्लैट में एक बुजुर्ग दंपत्ति रहता था, जिनकी देखभाल उनकी केयरटेकर लक्ष्मी करती थीं. दोनों की मृत्यु के बाद लक्ष्मी घर की देखभाल करती थीं, और वहीं रहती थीं. दंपत्ति की संतानें चाहती थीं कि लक्ष्मी वहीं रहें, लेकिन सोसाइटी ने उन्हें भी निकलने के लिए मजबूर कर दिया. 

विमलेश के घर खाली करने के बाद सोबती के फ्लैट में ताला पड़ा है. एक महान विदुषी का संजोए जाने लायक आवास धूल फांक रहा है.

अपने घर की स्टडी में कृष्णा सोबती. (फाइल फोटो: मीनाक्षी तिवारी)

मृत्युनामा पर विवाद क्यों? 

वसीयत बनाने से पहले कृष्णा सोबती ने 15 जुलाई, 2016 को सोसाइटी को पत्र लिखा कि वह अपना फ्लैट रज़ा फाउंडेशन को देना चाहती हैं, जिसका इस्तेमाल ‘लेखक आवास’ की तरह होगा. एक वक्त पर दो-तीन लेखक वहां रहकर लेखन करेंगे. एक केयरटेकर भी वहां रहेगा. 

इस पत्र के एक महीने बाद यानी अगस्त में उन्होंने अपनी वसीयत लिख दी. उन दिनों वह बीमार रहने लगी थीं. 2 सितंबर, 2016 को सोसाइटी ने उन्हें पत्र लिखा कि प्रबंधन समिति ने उनके प्रस्ताव पर विचार किया है. उनका प्रस्ताव सराहनीय है, लेकिन सोसाइटी के नियम और डीसीएस (दिल्ली कोऑपरेटिव सोसाइटीज़) अधिनियम/नियम इसकी अनुमति नहीं देते. फ्लैट का इस्तेमाल केवल रहने के लिए किया जा सकता है.

ध्यान दें कि इस वक्त तक सोसाइटी को रज़ा फाउंडेशन को फ्लैट देने पर आपत्ति नहीं थी, बल्कि उसका क्या इस्तेमाल होगा, उस पर आपत्ति थी. 

जब कृष्णा सोबती को लगा कि शायद सोसाइटी इस घर को लेखकीय आवास नहीं होने देगी, उन्होंने एक अन्य इच्छा प्रकट की. 

8 जून 2017 में उन्होंने अपने आवास को अपनी मृत्यु के बाद लाइब्रेरी तब्दील करने का निवेदन करते हुए सोसाइटी को पत्र लिखा. वे चाहती थीं कि लाइब्रेरी का संचालन एक समिति करे. तब उनकी उम्र 92 वर्ष हो चुकी थी. 

सोसाइटी ने इस बुजुर्ग साहित्यकार की इच्छा को नकारते हुए 16 जून को जवाब भेजा कि डीडीए के स्थायी पट्टे के अनुसार फ्लैट्स का उपयोग केवल सोसाइटी के सदस्यों के निजी आवास के लिए किया जा सकता है, और सोसाइटी के अपने नियम भी यही कहते हैं.

कृष्णा सोबती की दोनों मांगों को नकारता सोसाइटी का जवाब.

कोई तो रास्ता होगा…

शायद कृष्णा सोबती भांप चुकी थीं कि सोसाइटी उनकी इच्छा को पूरा नहीं होने देगी. इसलिए उन्होंने 16 अगस्त, 2016 को लिखी अपनी वसीयत में यह प्रावधान जोड़ा कि अगर सोसाइटी फ्लैट को लेखक आवास बनाने की अनुमति नहीं देती तो, रज़ा फाउंडेशन फ्लैट को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने के बाद बेच सकता है और बिक्री से प्राप्त धन का उपयोग किसी अन्य स्थान पर संपत्ति खरीदने और उसे ‘लेखक आवास’ के रूप में स्थापित और संचालित करने के लिए कर सकता है. 

यहां उल्लेखनीय है कि कृष्णा सोबती ने 2014 में भाषा और साहित्य के प्रचार के लिए रज़ा फाउंडेशन को एक करोड़ रुपये की राशि दान दी थी. साल 2018 में उन्होंने ज्ञानपीठ पुरस्कार की 11 लाख रुपये की राशि भी फाउंडेशन को दान की थी. रजा फाउंडेशन ने कृष्णा सोबती-शिवनाथ निधि बनाई है, जिसके तहत 2016 से हर साल युवा हिंदी रचनाकारों का सम्मेलन ‘युवा’ आयोजित जाता है. सोबती-शिवनाथ फाउंडेशन के संचालन की जिम्मेदारी भी कृष्णा सोबती रज़ा फाउंडेशन को सौंपकर गई हैं.

‘आनंदलोक’ के अपने घर में विभिन्न लेखकों, अतिथियों के साथ कृष्णा सोबती. (फाइल फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा, ‘मैं 92 साल की हूं और कृष्णा सोबती-शिवनाथ फाउंडेशन को चलाने में असमर्थ हूं. मुझे उचित लगता है कि एक सक्रिय संगठन, रज़ा फाउंडेशन, इसे संभाले. यह मेरा एकमात्र कानूनी उत्तराधिकारी होगा.’

लेकिन सोसाइटी इन शब्दों में व्यक्त स्पष्ट आकांक्षा को नकारती है. 

जब सोसाइटी अपने आग्रह पर अड़ी रही, रज़ा फाउंडेशन ने 27 दिसंबर, 2023 को सोसाइटी की अध्यक्ष अनीता बाबू और आनंदलोक सीजीएचएस के समक्ष कुछ प्रस्ताव रखे:

  1. रज़ा फाउंडेशन ट्रस्ट एक प्रस्ताव पारित करे, जिसमें अपने किसी ट्रस्टी को यह अधिकार दिया जाए कि वह फ्लैट को अपने नाम पर स्थानांतरित करवा सके, इस स्पष्ट शर्त के साथ कि:
  2. जैसे ही फ्लैट को ट्रस्टी के नाम पर स्थानांतरित किया जाता है, उसे बिक्री के लिए रखा जाएगा. यह प्रक्रिया आनंदलोक सोसाइटी के सहयोग से होगी, और सोसाइटी की देखरेख में उचित बिक्री का समझौता किया जाएगा.
  3. एक बार सौदा तय हो जाने के बाद, अस्थायी मालिक रज़ा फाउंडेशन की ओर से नए खरीदार को स्वामित्व हस्तांतरित करेगा, जिसे सोसाइटी की मंजूरी के साथ नया मालिक माना जाएगा.

रज़ा फाउंडेशन ने लिखा कि ‘यह सोसाइटी का उद्देश्य नहीं हो सकता कि वह एक वैध वसीयत के माध्यम से जिस संस्था को फ्लैट सौंपा गया है, उसे मालिकाना हक़ देने से इनकार कर दे. इसके अलावा, फ्लैट को किसी के नाम पर होना ही चाहिए. हमें पूरा विश्वास है कि सोसाइटी इस मामले का समाधान निकालने और उस महान लेखिका की इच्छा का सम्मान करने के लिए तैयार होगी, जो इतने वर्षों तक सोसाइटी की एक प्रतिष्ठित निवासी रहीं.’

31 दिसंबर, 2023 को भेजे जवाब में आंनदलोक सोसाइटी की अध्यक्ष अनीता बाबू ने एक बार फिर सोसाइटी के नियमों और डीसीएस के कानूनों का हवाला देकर इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया.

रज़ा फाउंडेशन के अनुसार विमलेश द्वारा फ्लैट खाली करने के बाद उसकी चाभी सोसाइटी के पास है.

कृष्णा सोबती के घर का बंद दरवाजा (बाएं) सामने का गलियारा (दाएं) (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

सोसाइटी द्वारा जोड़े गए पेंच

द वायर हिंदी ने आनंदलोक सीजीएचएस के सदस्यों से संपर्क किया. लेकिन अध्यक्ष अनीता बाबू ने बात करने से इनकार कर दिया, जबकि सचिव अनिल कुमार जैन ने इस मामले के लिए नियुक्त किए गए वकील सर्मन रावत से बात करने को कहा.

रावत ने बताया कि इस फ्लैट के मालिक शिवनाथ थे. सोसाइटी के पास उस फ्लैट को लेकर एक वसीयत है, जो शिवनाथ ने बनाई थी. शिवनाथ ने अपनी वसीयत में लिखा कि उनके मरने के बाद यह प्रॉपर्टी कृष्णा सोबती को जाएगी, और सोबती के बाद कृष्णा सोबती-शिवनाथ फाउंडेशन को. 

इस तरह रावत ने सोबती की वसीयत पर प्रश्न लगाते हुए कहा कि ‘शिवनाथ द्वारा बनाई वसीयत के बाद कृष्ण सोबती ने जो वसीयत बनाई है, वह वैध है या नहीं यह कोर्ट तय करेगा.’

उन्होंने यह भी जोड़ा कि ‘जो भी फाउंडेशन इस प्रॉपर्टी पर अपना दावा करता है, उसे कोर्ट में जाकर वसीयत को प्रोबेट कराना होगा.’ 

वसीयत को प्रोबेट करने के सवाल पर रज़ा फाउंडेशन का कहना है कि दिल्ली में रजिस्टर्ड वसीयत को प्रोबेट कराने की जरूरत नहीं है. कृष्णा सोबती की वसीयत रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्ट्रार के सामने बनी थी. 

इस केस में प्रोबेट आवश्यक है या नहीं, इसका जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील मयंक यादव कहते हैं, ‘इंडियन सक्सेशन एक्ट की धारा 213 प्रोबेशन से जुड़े मसलों की बात करता है. अगर कोई वसीयत पर अपना कानूनी अधिकार स्थापित करना चाहता है तब उसे वसीयत को कोर्ट में प्रोबेट कराने की आवश्यकता होगी.’

लेकिन मयंक ने स्पष्ट किया कि प्रोबेट का प्रश्न इससे भी जुड़ा है कि प्रॉपर्टी किस राज्य की है और प्रॉपर्टी के मालिक किस राज्य के हैं.

‘कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में वसीयत को प्रोबेट कराना अनिवार्य होता है. दिल्ली में यह अनिवार्य नहीं है. चूँकि इस मामले में प्रॉपर्टी भी दिल्ली की है और रहने वाले भी दिल्ली के हैं, प्रोबेट कराना जरूरी नहीं है,’ उन्होंने कहा. 

मयंक यादव ने जोड़ा कि भले ही वसीयत प्रोबेट नहीं हुई है, सोसाइटी को कोई अधिकार नहीं वसीयतधारक को संपत्ति का इस्तेमाल करने से रोक सके. ‘सोसाइटी का इस चीज़ से कोई लेना देना नहीं है, वह नहीं रोक सकती,’ उन्होंने कहा.

आनंदलोक सोसाइटी. (फोटो: संतोषी मरकाम/द वायर हिंदी)

सोसाइटी ने एक पेंच और लगाया है. उसने रज़ा फाउंडेशन को स्वामित्व देने से यह कहकर इनकार किया कि ‘कोऑपरेटिव कानूनों और डीडीए लीज डीड के प्रावधानों के तहत किसी ट्रस्ट को सदस्यता देने का कोई प्रावधान नहीं है’.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के वकील ने इसे निराधार बताया. उन्होंने बताया, ‘फाउंडेशन हाउसिंग सोसाइटी का सदस्य भी बन सकता है और सोसाइटी के अंदर संपत्ति का मालिक भी बन सकता है.’ 

इस वक्त केस सोसाइटी रजिस्ट्रार ऑफिस के समक्ष है. रज़ा फाउंडेशन के अनुसार उन्होंने ‘अपनी पहली अपील सोसाइटी रजिस्ट्रार ऑफिस में की थी, लेकिन दो साल तक कोई सुनवाई न होने के बाद हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट ने हमें फिर सोसाइटी रजिस्ट्रार ऑफिस भेज दिया है. 5 फरवरी को वहां सुनवाई है.’

इस तरह जिस ऐतिहासिक मकान में कभी देश के कद्दावर रचनाकार सोबती की संगत और सोहबत के लिए आया करते थे, वह कानूनी जंजाल में फंसकर जर्जर हो रहा है.