नई दिल्ली: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहित आर्य को राज्य की ‘एक देश, एक चुनाव’ समिति के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तरफ से पार्टी का समन्वयक नियुक्त किया गया है.
आर्य सेवानिवृत्त होने के तीन महीने बाद पिछले साल जुलाई में भाजपा में शामिल हुए थे. ख़बरों के मुताबिक, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने पुष्यमित्र भार्गव के साथ जस्टिस आर्य को समन्वयक नियुक्त किया.
पूर्व न्यायाधीश आर्य ने कई ऐसे फैसले और निर्देश दिए थे, जो विवादों में रहे थे. साल 2021 में उन्होंने स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और नलिन यादव को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिन पर इंदौर में एक शो के दौरान नए साल के कार्यक्रम के दौरान धार्मिक भावनाओं को आहत करने और कोविड-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था.
अपने आदेश में जस्टिस आर्य ने कहा था कि अब तक एकत्र किए गए साक्ष्यों से पता चलता है कि आवेदकों द्वारा ‘जानबूझकर भारत के नागरिकों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई.’ उनकी जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था, ‘सद्भाव और सामान्य भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य है.’
फारुकी को उनके शो शुरू होने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था, ऐसा एक भाजपा विधायक द्वारा यह कहे जाने के आधार पर किया गया था कि उन्होंने रिहर्सल के दौरान कुछ आपत्तिजनक सुना था.
इससे पहले जुलाई 2020 में जस्टिस आर्य ने एक महिला से छेड़खानी के मामले में 26 वर्षीय आरोपी को इस शर्त जमानत दी थी कि वह शिकायतकर्ता से राखी बांधने के लिए अनुरोध करे और हमेशा उसकी सुरक्षा करने का वादा करे. इतना ही नहीं, जस्टिस आर्य ने आरोपी से अपनी पत्नी के साथ जाकर शिकायतकर्ता को आशीर्वाद, 11,000 रुपये और मिठाई देने का आदेश दिया था. इसके अलावा, आर्य ने आरोपी को शिकायतकर्ता के बेटे को 5,000 रुपये देने का आदेश दिया था ताकि वह कपड़े और मिठाई खरीद सके.
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जाहिर की थी और इसे पलटते हुए कहा था, ‘जमानत की शर्त के रूप में राखी बांधने का आदेश देने का मतलब है कि न्यायिक आदेश के माध्यम से एक छेड़खानी करने वाले व्यक्ति को भाई में बदल देना. यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है… यौन उत्पीड़न कोई छोटी घटना नहीं है कि राखी बंधवाकर और उपहार देकर ठीक किया जा सके.’
सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर और भी गाइडलाइन जारी कीं ताकि अधीनस्थ अदालतें यौन हिंसा से जुड़े मामलों में असंवेदनशील जमानती आदेश न दें.