दिल्ली दंगा: सुप्रीम कोर्ट ने ताहिर हुसैन की ज़मानत याचिका पर खंडित फैसला सुनाया

दिल्ली दंगों के मामले के आरोपी ताहिर हुसैन की ज़मानत याचिका को जस्टिस पंकज मित्तल ने ख़ारिज कर दिया, वहीं जस्टिस अमानुल्लाह ने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा कि वह 5 साल में एक दिन के लिए भी जेल से बाहर नहीं आए हैं, हम अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते.

सुप्रीम कोर्ट और ताहिर हुसैन की तस्वीर. (फोटो साभार: Wikimedia Commons and X/@tahirhussainaap)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने बुधवार (22 जनवरी) को 2020 दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन की जमानत याचिका पर खंडित फैसला सुनाया. ताहिर हुसैन ने आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए अंतरिम जमानत की मांग की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस पंकज मित्तल ने ताहिर हुसैन की याचिका खारिज कर दी. वहीं, दूसरे जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कुछ शर्तों के साथ उनकी 4 फरवरी तक अंतरिम जमानत को मंजूर कर लिया.

लाइव लॉ के अनुसार, दो जजों की पीठ के इस खंडित फैसले के चलते अब इस मामले को आगे के विचार के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष रखा जाएगा.

इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस मित्तल ने कहा, ‘अगर चुनाव लड़ने के उद्देश्य से अंतरिम जमानत दी जाती है, तो यह भानुमती का पिटारा खोल देगा. चूंकि चुनाव पूरे साल होते हैं, इसलिए हर विचाराधीन कैदी यह दलील लेकर आएगा कि वह चुनाव में भाग लेना चाहता है, इसलिए उसे अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए. इससे ऐसे मामलों की बाढ़ आ जाएगी, जिसकी हमारी राय में अनुमति नहीं दी जा सकती. दूसरे, एक बार जब इस तरह के अधिकार को मान्यता मिल जाती है तो इसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता वोट देने का अधिकार मांगेगा जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62 के तहत सीमित है.’

जस्टिस मित्तल ने आगे कहा, ‘यह भी उल्लेखनीय है कि चुनाव के लिए 10-15 दिनों तक प्रचार करना पर्याप्त नहीं होगा, क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए निर्वाचन क्षेत्र में वर्षों तक काम करना पड़ता है. यदि याचिकाकर्ता ने पिछले कुछ वर्षों में जेल में बैठकर ऐसा नहीं किया तो उन्हें रिहा करने का कोई कारण नहीं है.’

वहीं, जस्टिस अमानुल्लाह ने ताहिर हुसैन पर लगे आरोपों को गंभीर और संगीन मानते हुए कहा कि वर्तमान समय में वे केवल आरोप ही हैं. जस्टिस अमानुल्लाह के अनुसार, हिरासत में बिताए गए समय पांच साल की अवधि और अन्य मामलों में जमानत दिए जाने के तथ्य के आधार पर, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता  (बीएनएनएस) की धारा 482 और 484 की शर्तों के अधीन, 4 फरवरी, 2024 तक अंतरिम जमानत दी जा सकती है.

इसके अलावा, जब अदालत को सूचित किया गया कि मामले में आरोप पत्र जून 2020 में दायर किया गया था, तब जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा कि मुकदमा पांच साल में आगे क्यों नहीं बढ़ा? उन्होंने कहा कि अब तक केवल पांच गवाहों से ही पूछताछ की गई है.

जस्टिस अमानुल्लाह ने आगे कहा, ‘यह सब देखना होगा. आप किसी को इस तरह से अपमानित नहीं कर सकते! वह 5 साल में एक दिन के लिए भी जेल से बाहर नहीं आए हैं. मुझे इस पर भी अपने आदेश में लिखना होगा. हम अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते. संविधान का अनुच्छेद 21 किसके लिए है? पांच साल से आपने अपने मुख्य गवाह से पूछताछ तक नहीं की और वह दिल्ली से बाहर है! हम आगे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते.’

ज्ञात हो कि ताहिर हुसैन आम आदमी पार्टी (आप) के पूर्व सदस्य हैं और फिलहाल हिरासत में हैं. इस बार उन्हें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) पार्टी ने मुस्तफाबाद निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने पहले उन्हें अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था, लेकिन नामांकन दाखिल करने के लिए हिरासत में पैरोल दे दी थी.

सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि अंतरिम जमानत देने से हुसैन को गवाहों को प्रभावित करने और सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति मिल जाएगी.

उन्होंने यह भी बताया कि हुसैन की जीत की संभावना ‘कम’ है और उनकी मूल पार्टी ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है.

वहीं, हुसैन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने तर्क दिया कि इस मामले में दो कथित मुख्य हमलावरों सहित आठ सह-आरोपियों को जमानत दे दी गई है, जबकि उनका मुवक्किल पांच साल से अधिक समय से हिरासत में है और मुकदमे में उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है.

इसके अलावा, अग्रवाल ने शीर्ष अदालत के फैसलों का हवाला देते हुए रेखांकित किया कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) मामलों में भी, जिनमें कड़े जमानत प्रावधान हैं, सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे में देरी के कारण अतीत में जमानत दे दी है. जैसे कि मनीष सिसोदिया मामले में.

अग्रवाल ने आगे कहा, ‘वे यूएपीए मामले पर भरोसा करते हैं. उस मामले में आरोप तय नहीं हुआ है. राज्य ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया. मैं सिर्फ 15 दिन की जमानत मांग रहा हूं. जहां तक ​​हथियारों की बरामदगी का सवाल है, वह एक अलग एफआईआर थी जिसमें जमानत दे दी गई और कोई चुनौती नहीं दी गई.’

मालूम हो कि नेहरू विहार से ‘आप’ के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन पर फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा के दौरान इंटेलिजेंस ब्यूरो के कर्मचारी अंकित शर्मा के अपहरण और हत्या का आरोप है. इसके अलावा, पुलिस ने उनके खिलाफ दंगा और आगजनी के मामले भी दर्ज किए हैं. खजूरी खास में उनके घर का इस्तेमाल दंगों के दौरान पत्थर और पेट्रोल बम फेंकने के लिए किए जाने के फोटो, वीडियो सामने आए थे.