एमएफ हुसैन की ‘आपत्तिजनक’ पेंटिग मामले में आर्ट गैलरी ने कहा- शिकायतकर्ता ने ख़ुद तस्वीरें फैलाईं

दिल्ली हाईकोर्ट की वकील अमिता सचदेवा द्वारा एमएफ हुसैन की दो पेंटिंग को 'आपत्तिजनक' बताने की शिकायत के बाद दिल्ली आर्ट गैलरी ने कहा कि वह कलात्मक स्वतंत्रता में भरोसा करती है और उसने कोई ग़लत काम नहीं किया. इस मामले में स्थानीय अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

एमएफ हुसैन. (फोटो साभार: विकीपीडिया)

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत द्वारा जाने-माने कलाकार एमएफ हुसैन की दो पेंटिंग्स को जब्त करने के आदेश के दो दिन बाद दिल्ली आर्ट गैलरी, जिसने इसे प्रदर्शित किया था ने एक बयान जारी कर किसी भी गलत काम से इनकार करते हुए न्यायिक प्रक्रिया में भरोसा जताया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने बीते सोमवार (20 जनवरी) को पुलिस को दिल्ली आर्ट गैलरी में प्रदर्शित पद्म पुरस्कार से सम्मानित कलाकार एमएफ हुसैन की हिंदू देवता- हनुमान और गणेश की दो पेंटिंग को जब्त करने का आदेश दिया था. यह आदेश दिल्ली उच्च न्यायालय की वकील अमिता सचदेवा द्वारा की गई एक शिकायत पर सामने आया था. अमिता का कहना था कि ये कृतियां ‘आपत्तिजनक’ हैं और उन्हें गैलरी से हटाया जाना चाहिए.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, शिकायतकर्ता जब पिछले दिसंबर में दिल्ली आर्ट गैलरी में गईं, तो उन्होंने उन ‘आपत्तिजनक’ पेंटिंग्स की तस्वीरें खींचीं. उन्होंने औपचारिक शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस से भी संपर्क किया, जिसके बावजूद कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई और उनकी अगली यात्रा के दौरान पेंटिंग्स हटा दी गईं.

अमिता सचदेवा ने दिल्ली आर्ट गैलरी के मालिकों के खिलाफ बीएनएस की धारा 299 (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से किए गए कृत्य) के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की है.

इस मामले में सचदेवा का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि हुसैन दुनिया के सबसे महान कलाकार हो सकते हैं, लेकिन इससे उन्हें हिंदू देवताओं का अपमान करने का कोई अधिकार नहीं मिल जाता है.

कोर्ट ने बीते सोमवार (जनवरी 20, 2025) को दिल्ली पुलिस को संबंधित पेंटिंग्स को जब्त करने का आदेश दिया.

मालूम हो कि भारत के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक एमएफ हुसैन का 2011 में निधन हो गया था. अक्टूबर 2024 में दिल्ली आर्ट गैलरी ने नई दिल्ली में हुसैन: द टाइमलेस मॉडर्निस्ट प्रदर्शिनी शुरू की. इसी प्रदर्शनी में उनके कार्यों का एक संग्रह प्रदर्शित किया गया, जो 1950 से 2000 के दशक तक हुसैन की कलात्मक यात्रा के विभिन्न चरणों से संबंधित है.

आर्ट गैलरी ने अपने बयान में कहा है कि जांच में 40 दिन लगे, जिसके दौरान पुलिस ने कलाकृतियों सहित आर्ट गैलरी से एकत्र किए गए सबूतों की समीक्षा की. आर्ट गैलरी ने आगे कहा कि इसके बाद पुलिस ने 20 जनवरी को न्यायिक मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें बताया गया कि आर्ट गैलरी द्वारा कोई संज्ञेय अपराध नहीं किया गया है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि दिल्ली पुलिस ने 22 जनवरी को एक कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) दाखिल करने के साथ-साथ अदालत को सूचित किया कि कलाकृतियां आर्ट गैलरी से ली गई थीं, जो एक ‘निजी जगह’ है और अब पुलिस के पास है.

बताया गया है कि सुनवाई के दौरान, सचदेवा की ओर से पेश वकील मकरंद अडकर ने पुलिस द्वारा गैलरी को एक निजी स्थान बताए जाने पर आपत्ति जताई क्योंकि इसे जनता के लिए खोला गया था और इसी आशय का विज्ञापन भी किया गया था.

आर्ट गैलरी ने कहा कि प्रदर्शनी में लगभग 5,000 आगंतुक आए और इसे प्रेस के साथ-साथ जनता से भी सकारात्मक समीक्षाएं मिलीं. इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि सचदेवा उन आगंतुकों में से एकमात्र थीं, जिन्हें पेंटिंग्स आपत्तिजनक लगीं.

आर्ट गैलरी का कहना है कि कलात्मक स्वतंत्रता में अपने अंतर्निहित विश्वास को देखते हुए दिल्ली आर्ट गैलरी शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए किसी भी गलत काम से इनकार करती है, जिसमें सार्वजनिक रूप से धार्मिक एजेंडा का दावा दिखाई पड़ता है.

आर्ट गैलरी ने कहा है कि वास्तव में, शिकायतकर्ता ने स्वयं इन पेंटिंग्स को सोशल मीडिया और टेलीविज़न न्यूज़ मीडिया पर प्रदर्शित और प्रचारित किया, जिसका उद्देश्य जानबूझकर उन्हें व्यापक तौर पर फैलाना है, जिसमें उनका तर्क है कि इनसे उनकी व्यक्तिगत धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं.

इस मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी साहिल मोंगा ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.

आर्ट गैलरी ने कहा, ‘हमें बताया गया है कि न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दिल्ली आर्ट गैलरी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए शिकायतकर्ता के आवेदन पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस निर्णय की प्रति की प्रतीक्षा है और इसे अदालत द्वारा उपलब्ध कराए जाने के बाद आर्ट गैलरी इसकी सामग्री को संबोधित करेगा. किसी भी स्थिति में, आर्ट गैलरी को विश्वास है कि न्यायिक प्रक्रिया अंततः उचित और निष्पक्ष परिणाम देगी.

गौरतलब है कि हुसैन की कृतियों को लेकर विवाद नया नहीं है. उनके जीवित रहते हुए भी एक वर्ग द्वारा उनकी पेंटिंग्स को आपत्तिजनक बताते हुए विरोध किया जाता रहा था. इसका ही नतीजा था कि अपने अंतिम समय में हुसैन भारत छोड़ने को मजबूर हुए और दोहा व लंदन में समय गुजारा. 95 साल की आयु में हिंदुस्तान के इस नामी कलाकार का निधन 9 जून 2011 को लंदन में हुआ.

विडंबना ही है कि देश में चित्रकारों/कलाकारों का अपराधीकरण भी नया नहीं है. बीते साल भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जब बॉम्बे हाईकोर्ट को कस्टम विभाग के अधिकारियों को को प्रसिद्ध कलाकारों- एफएन सूजा और अकबर पदमसी की जब्त की गई सात कलाकृतियों को वापस देने का आदेश देना पड़ा था. कस्टम अधिकारियों ने इन कृतियों को ‘अश्लील सामग्री’ मानकर जब्त किया था.

साल 2022 में कस्टम विभाग ने मुंबई के एक कारोबारी द्वारा स्कॉटलैंड से नीलामी में खरीदी गई पेंटिंग्स को अश्लीलता का हवाला देते हुए सात पेंटिंग्स जब्त की थीं. इसमें चार कामुक (erotic) चित्रों का एक फोलियो भी शामिल था, जिसमें सूजा की ‘लवर्स’ पेंटिंग भी थी, जिसे ‘अश्लील’ कहा गया था. तीन अन्य कलाकृतियां, जिन्हें इसी कारण से रोका गया, उनमें ‘न्यूड’ शीर्षक वाली एक चित्रकारी और अकबर पदमसी की दो तस्वीरें थी.

अदालत ने कस्टम अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि हर नग्न (न्यूड) पेंटिंग या यौन संभोग की मुद्राओं को दर्शाने वाली कलाकृति को अश्लील नहीं कहा जा सकता.