वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर को विदेशी चंदे की मंज़ूरी मिली, मंदिर बोला- नहीं किया था आवेदन

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के वृंदावन में प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर को धार्मिक गतिविधि के लिए विदेशों से चंदा/दान पाने की अनुमति दी है. हालांकि, मंदिर के पुजारियों का कहना है कि उन्होंने इस पंजीकरण के लिए कभी आवेदन ही नहीं किया था.

मथुरा के वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर. (फोटो साभार: mathura.nic.in)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के वृंदावन में प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर को विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए), 2010 के तहत पंजीकरण की अनुमति दे दी है, जिससे यह ‘धार्मिक’ गतिविधि के लिए विदेशों से दान प्राप्त करने में सक्षम हो जाएगा.

हालांकि, मंदिर के पुजारियों का कहना है कि उन्होंने इस पंजीकरण के लिए कभी आवेदन ही नहीं किया था.

द हिंदू की खबर के मुताबिक, मंदिर समिति मंदिर के मामलों और धन के नियंत्रण को लेकर राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार के साथ कानूनी लड़ाई में फंसी हुई है. समिति में राज्य सरकार के नामित व्यक्ति शामिल हैं.

बांके बिहारी मंदिर का स्वामित्व और प्रबंधन वर्तमान में सेवायत गोस्वामी पुजारियों, सारस्वत ब्राह्मणों और स्वामी हरिदास के वंशजों के वंशानुगत समुदाय द्वारा किया जाता है, जिन्होंने 550 साल पहले मंदिर का निर्माण किया था. राज्य सरकार के सूत्रों ने बताया है कि सोने और अन्य कीमती सामानों के अलावा मंदिर का कोष वर्तमान में लगभग 480 करोड़ रुपये हैं.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शुक्रवार (24 जनवरी) को वृंदावन में ‘ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज मंदिर’ को ‘धार्मिक (हिंदू)’ श्रेणी के तहत एफसीआरए पंजीकरण की अनुमति प्रदान की है.

मालूम हो कि विदेशी धन प्राप्त करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) और संघों (Associations) के लिए एफसीआरए, 2010 के तहत पंजीकरण अनिवार्य है.

द हिंदू से बात करते हुए मंदिर के पुजारियों में से एक अशोक गोस्वामी ने कहा कि उन्हें एफसीआरए लाइसेंस के लिए आवेदन के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि पिछले कई वर्षों से मंदिर को विदेशों में रहने वाले भक्तों से दान मिलता रहा है, जिन्होंने मंदिर का दौरा किया है.

उन्होंने बताया, ‘हमारा मंदिर एक समिति के माध्यम से चलाया जाता है, जिसका गठन सिविल जज, जूनियर डिवीजन द्वारा किया जाता है. हम जैसे गोस्वामी, जो मंदिर की संपत्ति के मालिक हैं, के अलावा हमारी समिति में कई बाहरी लोग हैं. मैं इस पर टिप्पणी नहीं कर सकता कि एफसीआरए लाइसेंस के लिए किसने आवेदन किया था. लेकिन किसी भी पुजारी ने इसके लिए आवेदन नहीं किया है.’

अशोक गोस्वामी ने यह भी कहा कि मंदिर को तीन प्रकार की फंडिंग मिलती है- पहला, भक्त सीधे पुजारियों को योगदान देते हैं. दूसरा, दान चेक या अन्य डिजिटल भुगतान के माध्यम से आता है और तीसरा, मंदिर में रखी दान पेटियों में.

उन्होंने आरोप लगाया कि यह मंदिर को एक और विवाद में लाने की साजिश जैसा लगता है.

साज़िश का आरोप

एक अन्य पुजारी गोपी गोस्वामी ने भी एफसीआरए के तहत पंजीकरण की अनुमति में साजिश का आरोप लगाया.

गोपी गोस्वामी ने अखबार से कहा, ‘उन्होंने हमसे कभी नहीं पूछा कि हमें एफसीआरए (पंजीकरण) चाहिए या नहीं. एक दिन इस खाते में कुछ बेतरतीब अवैध पैसा जमा होगा और सरकार हमें इसके लिए जवाबदेह ठहराएगी. यह मंदिर को बदनाम करने का जाल है. हम सिविल जज द्वारा गठित मंदिर प्रबंधन समिति से सवाल करेंगे कि हमें बताएं कि इसकी आवश्यकता क्यों थी और उन्होंने हमसे परामर्श किए बिना इसके लिए आवेदन क्यों किया.’

ज्ञात हो कि गोस्वामी समुदाय के सदस्यों ने भक्तों के लिए सुगम दर्शन और बेहतर भीड़ प्रबंधन की सुविधा के लिए मंदिर के चारों ओर काशी विश्वनाथ मंदिर गलियारे के समान एक गलियारा (कॉरिडोर) बनाने के राज्य सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है.

राज्य ने अदालत में कहा है कि 2022 में जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर के अंदर भीड़भाड़ के कारण दो भक्तों की दम घुटने से मौत हो गई थी, जिसके बाद ये गलियारा बनाना आवश्यक हो गया है. पिछली सुनवाइयों में अदालत ने राज्य से कहा था कि वह मंदिर के धन सहित इसके अन्य मामलों में हस्तक्षेप न करे.

हालांकि, अदालत ने सरकार को  गलियारा परियोजना के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दे दी थी. फिलहाल मामला न्यायालय में विचाराधीन है.

मोदी सरकार, एफसीआरए पंजीकरण और एनजीओ के दमन का आरोप

मालूम हो कि एफसीआरए पंजीकरण प्राप्त करने के लिए एक एनजीओ के पास एक निश्चित सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक या शैक्षिक कार्यक्रम होना चाहिए और इसे एक या कई श्रेणियों के तहत पंजीकृत किया जा सकता है.

साल 2022 के बाद से कम से कम 184 गैर सरकारी संगठनों ने कम से कम एक कार्यक्रम के रूप में धार्मिक गतिविधियों को शुरू करने के लिए एफसीआरए के तहत पंजीकरण प्राप्त किया है. इनमें से 84 एनजीओ या संघ ने धार्मिक वर्ग के तहत हिंदू श्रेणी में, 54 ईसाई, सात मुस्लिम, 16 बौद्ध, तीन सिख श्रेणी और 20 ‘अन्य’ श्रेणी के तहत पंजीकृत हुए.

उल्लेखनीय है कि जनवरी 2020 में 10,000 से अधिक एनजीओ का एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया गया था. वहीं, जनवरी 2022 में सरकार ने लगभग 6000 गैर-लाभकारी संस्थाओं के एफसीआरए लाइसेंस को रद्द कर दिया था, जिनमें मदर टेरेसा की मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी, ऑक्सफैम इंडिया, दिल्ली विश्वविद्यालय, आईआईटी दिल्ली और जामिया मिलिया विश्वविद्यालय जैसी प्रमुख संस्थाएं शामिल थीं. हाल ही में, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) जैसे थिंक टैंक और बच्चों, महिलाओं और लिंग आधारित हिंसा से बचे लोगों के साथ काम करने वाले तीन एनजीओ के लाइसेंस रद्द किए गए हैं.

इस संबंध में बीते साल नवंबर में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 2010 (एफसीआरए) के तहत पंजीकरण रद्द करने या नवीनीकरण से इनकार करने के कुछ कारणों को सूचीबद्ध कर एक नोटिस जारी किया था. इसमें ‘विकास विरोधी गतिविधियों, जबरन धर्मांतरण और देश विरोधी प्रदर्शन आदि में शामिल होने को बतौर कारण दर्ज किया गया है.

वेबसाइट पर गृह मंत्रालय के डैशबोर्ड के अनुसार, वर्तमान में एफसीआरए लाइसेंस वाले कुल 16,026 एसोसिएशन सक्रिय हैं, जबकि कुल 20,711 के लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं.

ज्ञात हो कि हाल के वर्षों में ऐसे गैर सरकारी संगठनों की सूची में चिंताजनक वृद्धि हुई है, जिनके एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं. पिछले साल अप्रैल में केंद्र सरकार ने तीन चर्च-आधारित चैरिटी संगठनों सहित पांच गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिए थे.

गैर सरकारी संगठन सीएनआई सिनोडिकल बोर्ड ऑफ सोशल सर्विस, वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया, इंडो-ग्लोबल सोशल सर्विस सोसाइटी, चर्च ऑक्जिलरी फॉर सोशल एक्शन और इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया (ईएफआई) के भी लाइसेंस को सरकार ने रद्द कर दिया है.

ज्ञात हो कि ईएफआई ईसाइयों के खिलाफ हमलों पर डेटा एकत्र और प्रकाशित करता है. संस्था ने मोदी सरकार के कार्यकाल में इस समुदाय के खिलाफ हिंसा में बढ़ोत्तरी की ओर ध्यान भी आकर्षित किया है.

गृह मंत्रालय ने फरवरी 2024 में कथित तौर पर एफसीआरए नियमों का उल्लंघन करने के लिए तमिलनाडु कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस के तत्वावधान में एक ईसाई एनजीओ, तमिलनाडु सोशल सर्विस सोसाइटी का एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया था. इससे ठीक एक महीने पहले गृह मंत्रालय ने तमिलनाडु स्थित ईसाई संघ वर्ल्ड इंडिया विजन का एफसीआरए पंजीकरण भी रद्द किया था.

गौरतलब है कि मोदी सरकार अक्सर गैर-लाभकारी संगठनों के काम को दबाने के लिए एफसीआरए का इस्तेमाल करती रही है.

जुलाई 2024 में सेंटर फॉर फाइनेंशियल एकाउंटेबिलिटी संस्थान का एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया गया था, जो एक गैर-लाभकारी संस्था है और राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की भूमिका और विकास, मानवाधिकार और पर्यावरण पर उनके प्रभाव का गंभीर विश्लेषण, निगरानी और आलोचना करती है.

इससे पहले जनवरी 2024 में सरकार ने 50 साल पुराने पॉलिसी थिंक-टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च का एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया था.

फरवरी 2024 में सीबीआई ने पूर्व आईएएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर से जुड़े परिसरों में छापेमारी की थी. 2020 से आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) सहित केंद्र सरकार की कई जांच एजेंसियों ने मंदर और उनके सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) की जांच की है.