नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (27 जनवरी) को एक ईसाई व्यक्ति की याचिका पर एक खंडित फैसला सुनाया, जिन्होंने अपने पादरी पिता के शव को छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा स्थित अपने पैतृक गांव के कब्रिस्तान या अपनी निजी जमीन में दफनाने की अनुमति मांगी थी.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने 7 जनवरी से शव के शवगृह में पड़े होने के कारण विवाद को एक बड़ी पीठ के पास भेजने से परहेज किया और सर्वसम्मति से निर्देश पारित करने का विकल्प चुना कि शव को करकापाल गांव में ईसाइयों के लिए निर्धारित स्थान पर दफनाया जाए, जो याचिकाकर्ता के पैतृक स्थान से लगभग 20-25 किलोमीटर दूर है.
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपीलकर्ता को अपने पिता को अपनी निजी संपत्ति में दफनाने की अनुमति दे दी, जबकि जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि दफन केवल ईसाइयों के लिए निर्धारित क्षेत्र में ही किया जा सकता है, जो कि करकापाल गांव में है.
पीठ ने अपने अंतिम आदेश में कहा, ‘अपीलकर्ता के पिता के अंतिम संस्कार स्थल के बारे में पीठ के सदस्यों के बीच कोई सहमति नहीं है. हम इस मामले को तीसरे न्यायाधीश की पीठ को नहीं भेजना चाहते हैं, क्योंकि अपीलकर्ता के पिता का शव पिछले तीन सप्ताह से शवगृह में है. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मृतक को पिछले तीन सप्ताह से शवगृह में रखा गया है, और मृतक के सम्मानजनक और शीघ्र अंतिम संस्कार के लिए हम अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित निर्देश जारी करने के लिए सहमत हैं.’
सर्वोच्च न्यायालय ने 20 जनवरी को कहा था कि यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक व्यक्ति को अपने पिता, जो एक ईसाई पादरी थे, को छिंदवाड़ा गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की याचिका लेकर सर्वोच्च न्यायालय आना पड़ा, क्योंकि राज्य और उच्च न्यायालय इस मुद्दे को हल नहीं कर सके.
क्या है मामला
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, महार जाति में जन्मे पादरी की लंबी बीमारी के बाद 7 जनवरी को मृत्यु हो गई. उनके बेटे रमेश बघेल उन्हें गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाना चाहते थे.
हालांकि, स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के बाद बेटे ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने कहा कि गांव में दफ़नाने से ‘अशांति’ और ‘असहमति’ पैदा हो सकती है, बघेल को अपने पिता को निकटतम कब्रिस्तान (करकापाल में) में दफ़नाने को कहा.
इसके बाद बघेल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. उन्होंने कहा कि उनके परिवार के अन्य सदस्यों को भी उसी गांव के कब्रिस्तान में दफ़नाया गया है.
राज्य सरकार ने भी सुझाव दिया था कि शव को करकापाल के ईसाई कब्रिस्तान में दफनाया जाए और शव को वहां ले जाने के लिए सुरक्षा के साथ एम्बुलेंस की भी पेशकश की थी.
बता दें कि इससे पहले भी छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म अपनाने वाले परिवारों का बहिष्कार करने और उनके शवों को गांव में दफनाने का विरोध करने के कई मामले सामने आए हैं.
मई 2024 में जगदलपुर के छिंदबाहर गांव के रहने वाले ईश्वर की मृत्यु हो गई थी. ग्रामीणों ने उनके ईसाई होने की वजह से गांव में अंतिम संस्कार करने विरोध किया था. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश के बाद ईश्वर के शव को आख़िरकार उनके गांव में ही दफ़नाया जा सका था.
नवंबर 2023 में छत्तीसगढ़ के ब्रेहेबेड़ा गांव की 13 वर्षीय सुनीता की नारायणपुर के जिला अस्पताल में टाइफाइड से मौत हो गई थी. जब उसका शव घर लाया गया तो बड़ी संख्या में पहुंचे ग्रामीणों ने परिवार को किशोरी के शव को गांव की जमीन पर ईसाई रीति-रिवाज से दफनाने से रोक दिया था.