नई दिल्ली: उत्तराखंड सरकार ने सोमवार (27 जनवरी) को राज्य में विवादित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू कर दी.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक नई वेबसाइट का उद्घाटन किया, जिसका उद्देश्य ‘समान नागरिक संहिता के तहत सेवाओं तक पहुंचने और पंजीकरण करने की एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया’ है, जो सभी नागरिकों के लिए उपयोग में आसानी, पारदर्शिता और समान पहुंच सुनिश्चित करती है.
उत्तराखंड अब स्वतंत्र भारत का पहला राज्य है जिसने दो वयस्कों के बीच विवाह, तलाक, विरासत और यहां तक कि लिव-इन रिलेशनशिप पर एक समान कानून पारित किया है.
उत्तराखंड यूसीसी के नियम एक व्यापक कानूनी ढांचा स्थापित करने का दावा करते हैं, जिसका उद्देश्य ‘धर्म या समुदाय के बावजूद उत्तराखंड के सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों को एकीकृत करना है.’ सरकार का दावा है कि ‘ये नियम नागरिक मामलों में समानता, निष्पक्षता और सुव्यवस्थित शासन को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए हैं,’ हालांकि इन नियमों की आलोचना का मुख्य बिंदु रहा है कि ये बालिगों की स्वायत्तता पर प्रहार करने वाले कानूनी कदम हैं.
राज्य की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में इन नियमों को तैयार करने के लिए समिति के गठन की घोषणा की थी. अगस्त, 2022 में दो उप-समितियां बनाई गईं. सरकार का दावा है कि समिति ने कुल 72 बैठकें कीं. मसौदा संहिता को 2023 के अंत में अंतिम रूप दिया गया, कैबिनेट ने इस साल 20 जनवरी को नियमावली को मंजूरी दी.
आधिकारिक वेबसाइट उत्तराधिकार के लिए कानूनी उत्तराधिकारियों की घोषणा, वसीयत का पंजीकरण, निर्णयों के खिलाफ अपील प्रस्तुत करना और ‘विभिन्न डेटा और सूचना तक पहुंच’ के लिए पोर्टल भी है. पोर्टल में 22 भारतीय भाषाओं में आधार-आधारित सत्यापन और एआई-आधारित अनुवाद सेवाएं शामिल हैं.
पोर्टल पर ‘सेवाओं’ में विवाह, तलाक, लिव-इन रिलेशनशिप और लिव-इन रिलेशनशिप की समाप्ति का ऑनलाइन पंजीकरण शामिल है. लिव-इन रिलेशनशिप के प्रावधान यूसीसी में सबसे अधिक विवादास्पद रहे हैं.
जैसा कि कानूनी विशेषज्ञ सौम्या उमा का कहना है, ‘यह विधेयक अपने प्रावधानों में केवल विषमलैंगिकता (हेट्रोसेक्सशुअलिटी) को रखता है, और इस बात को नजरअंदाज करता है कि महिलाओं (समलैंगिक और ट्रांस महिलाओं सहित) पर इन प्रावधानों के प्रभाव क्या होगा. साथ ही यह वयस्कों के बीच विवाह और लिव-इन रिलेशनशिप पर परिवार के नियंत्रण को मजबूत करता है.’
लिव-इन रिलेशनशिप का अनिवार्य पंजीकरण
उत्तराखंड समान नागरिक संहिता-2024 का एक मुख्य बिंदु यह है कि यह लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण का आदेश देता है. यहां तक कि उत्तराखंड के वे निवासी जो राज्य के बाहर लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, उन्हें राज्य के रजिस्ट्रार को एक बयान जमा करना होगा.
जो लोग लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, या लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का इरादा रखते हैं, उन्हें रजिस्ट्रार को लिव-इन रिलेशनशिप का एक बयान जमा करना होगा जो एक जांच करेगा जिसमें अतिरिक्त जानकारी या सबूत प्रदान करने के लिए व्यक्तियों या जोड़े को शामिल किया जा सकता है या सत्यापन के लिए बुलाया जा सकता है. जांच करने के बाद रजिस्ट्रार लिव-इन के विवरण की प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर या तो रिश्ते को पंजीकृत करेगा और एक प्रमाण पत्र जारी करेगा या बयान दर्ज करने से इनकार कर देगा. पंजीकरण खारिज होने की स्थिति में इसके कारण के बारे में जोड़ों को लिखित रूप में सूचित किया जाएगा.
विधेयक में कहा गया है कि रजिस्ट्रार को लिव-इन रिलेशनशिप का विवरण रिकॉर्ड के लिए स्थानीय पुलिस थाना प्रभारी को भेजना होगा और यदि दोनों में से किसी एक की उम्र 21 वर्ष से कम है, तो ऐसे जोड़ों के अभिभावकों या संरक्षकों को भी सूचित करना होगा.
विधेयक में कहा गया है कि जो कोई भी ऐसे रिश्ते का बयान प्रस्तुत किए बिना एक महीने से अधिक समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहता है, उसे न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी ठहराए जाने पर तीन महीने तक की कैद या 10,000 रुपये तक के आर्थिक जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा.
यदि संबंधित व्यक्ति पंजीकरण के दौरान गलत जानकारी प्रस्तुत करते हैं या जानकारी छिपाते हैं, तो उन्हें भी तीन महीने की जेल और 25,000 रुपये जुर्माने का सामना करना होगा. यदि कोई भी पार्टनर नोटिस मांगे जाने पर लिव-इन रिलेशनशिप का विवरण प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो उन्हें छह महीने की जेल और 25,000 रुपये जुर्माने का सामना करना पड़ेगा.
यूसीसी विधेयक यह भी स्पष्ट करता है कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुआ बच्चा भी जोड़े का वैध बच्चा होगा और यह भी निर्धारित करता है कि यदि किसी महिला को उसके लिव-इन पार्टनर ने छोड़ दिया है, तो वह अपने पार्टनर से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार होगी.
विवाह और तलाक पर नियम
यूसीसी के लागू होने के बाद विधिवत संपन्न विवाहों और अनुबंधित विवाहों के पंजीकरण अनिवार्य होंगे. इसमें यह निर्धारित करते बहुविवाह पर रोक लगाई गई है कि विवाह करने वाले व्यक्ति का कोई जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए और उसकी आयु कम से कम 18 (महिला) और 21 (पुरुष) वर्ष होनी चाहिए.
इसमें कहा गया है कि धार्मिक मान्यताओं, प्रथाओं, प्रथागत संस्कारों और समारोहों के अनुसार एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह संपन्न या अनुबंधित किया जा सकता है. विधेयक तलाक के लिए एक सामान्य प्रक्रिया भी बताता है.
यूसीसी से पहले या बाद में हुए विवाह को क्रूरता, व्यभिचार, दो साल के लिए परित्याग और धर्म परिवर्तन सहित कई आधारों पर किसी भी साथी द्वारा (याचिका के माध्यम से) भंग किया जा सकता है.
पत्नी इन अतिरिक्त आधारों पर भी तलाक की डिक्री द्वारा विवाह को समाप्त करने के लिए अदालत में याचिका भी प्रस्तुत कर सकती है कि पति- विवाह के विधिवत संपन्न होने के बाद से– बलात्कार या किसी अन्य प्रकार के अप्राकृतिक यौन अपराध का दोषी है या यूसीसी के आने से पहले हुई शादियों से पति की एक से अधिक पत्नियां थीं.