नई दिल्ली: वफ़्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024 की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने विपक्षी सांसदों द्वारा सुझाए 44 संशोधनों को खारिज कर दिया है और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) खेमे से 14 को स्वीकार कर लिया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, समिति के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता जगदंबिका पाल ने पिछले सप्ताह 10 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया था, जिसके बाद वफ़्फ़ समिति को ‘तानाशाही तरीके’ से चलाने के आरोप लगे थे. ये कदम उसके बाद सामने आया है.
समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कहा, ‘खंड-दर-खंड विचार-विमर्श के लिए एक बैठक हुई थी. विपक्ष द्वारा पेश किए गए सभी संशोधनों में से प्रत्येक 44 को मैंने उनके नाम के साथ पढ़ा. मैंने उनसे पूछा कि क्या वे अपने संशोधन पेश कर रहे हैं. फिर उन्हें पेश किया गया. यह इससे अधिक लोकतांत्रिक नहीं हो सकता था. अगर संशोधन पेश किए गए और उनके ख़िलाफ़ 16 सदस्यों ने मतदान किया और उनके पक्ष में केवल 10 ने, तो क्या 10 सदस्यों के समर्थन वाले संशोधनों को स्वीकार किया जा सकता है? चाहे संसद हो या जेपीसी, यह स्वाभाविक है.’
मालूम हो कि इस जेपीसी में संसद के दोनों सदनों से 31 सदस्य हैं. इसमें से एनडीए से 16, जिसमें भाजपा से 12 शामिल हैं, विपक्षी दलों से 13, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी से एक और एक नामित सदस्य हैं.
पीटीआई ने तृणमूल कांग्रेस सांसद कल्याण बनर्जी के हवाले से कहा, ‘यह एक हास्यास्पद अभ्यास था. हमारी बात नहीं सुनी गई. पाल ने तानाशाही तरीके से काम किया है.’
बनर्जी ने आगे कहा, ‘आज उन्होंने वह सब कुछ किया जो उन्होंने पहले से तय किया था. उन्होंने हमें कुछ भी बोलने नहीं दिया. किसी भी नियम और प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है… हम खंड-दर-खंड संशोधनों पर चर्चा करना चाहते थे लेकिन हमें बोलने ही नहीं दिया. जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने संशोधन पेश किया और फिर हमारी बातें सुने बिना उन्हें घोषित कर दिया… यह लोकतंत्र के लिए एक बुरा दिन है.’
जेपीसी द्वारा पारित संशोधनों में से एक कलेक्टर के बजाय राज्य सरकार द्वारा एक आयुक्त या सचिव की नियुक्ति करना है, जो भूमि विवादों की अध्यक्षता करेगा.
जगदंबिका पाल ने कहा, ‘ऐसी कई बातें थीं जिन पर वे सहमत थे और जिन पर उन्होंने अपनी राय दी थी. आज एक संशोधन पारित किया गया- पहले कलेक्टर को अथॉरिटी दी जाती थी, लेकिन अब अथॉरिटी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा- चाहे वह आयुक्त हो या सचिव.’
वफ़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 पर जेपीसी द्वारा मंजूर 14 संशोधनों में से एक वफ़्फ़ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्यता से जुड़ा है. यह संशोधन अनिवार्य दो गैर-मुस्लिम सदस्यों और नियुक्त पदेन सदस्य के बीच अंतर करता है. अनिवार्य दो गैर-मुस्लिम सदस्यों के बारे में बिल के शुरुआती मसौदे में बताया गया है. नियुक्त पदेन सदस्य मुस्लिम या गैर-मुस्लिम हो सकते हैं.
इसका मतलब यह है कि वफ़्फ़ परिषदों में चाहे वे राज्य स्तर पर हों या अखिल भारतीय स्तर पर, कम से कम दो सदस्य ऐसे होंगे जो गैर-मुस्लिम होंगे. यदि नियुक्त पदेन सदस्य भी गैर-मुस्लिम हुआ तो ऐसे तीन सदस्य गैर-मुस्लिम हो जाएंगे.
एक अन्य अहम बदलाव में संबंधित राज्य द्वारा चुने गए एक अधिकारी को यह तय करने की जिम्मेदारी दी गई है कि कोई संपत्ति ‘वफ़्फ़’ है या नहीं. पहले, यह निर्णय प्रारंभिक मसौदे के अनुसार जिला कलेक्टर के हाथों में था.
पाल ने कहा, ‘(एक और संशोधन) (वफ़्फ़) बोर्ड की संरचना के संबंध में था. पहले इसके दो सदस्य थे. सरकार की ओर से प्रस्ताव दिया गया कि इसमें दो के बजाय तीन सदस्य हों, जिसमें एक इस्लामिक विद्वान भी शामिल हो. उन्होंने (विपक्ष ने) उसका भी विरोध किया. पोर्टल पर वफ़्फ़ संपत्तियों की प्रविष्टि छह माह से बढ़ाए जाने पर चर्चा हुई.’
विधेयक के लिए आवश्यक है कि प्रस्तावित कानून से पहले मौजूदा अधिनियम के तहत पंजीकृत प्रत्येक वफ़्फ़ को नए अधिनियम के शुरू होने के छह महीने के भीतर एक केंद्रीय पोर्टल पर विवरण दाखिल करना होगा.
विधेयक में केंद्रीय वफ़्फ़ परिषद और राज्य वफ़्फ़ बोर्डों की संरचना को बदलने और मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की भी मांग की गई है. यह बोहरा और आगाखानियों के लिए एक अलग ‘औकाफ बोर्ड’ की स्थापना का भी प्रावधान करता है.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 08 अगस्त को लोकसभा में वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 को पेश किया था. हालांकि, विपक्षी सांसदों के विरोध के चलते इस विधेयक को संयुक्त समिति को भेज दिया गया. इस समिति ने 22 अगस्त को पहली बैठक की थी. इस समिति को संसद के शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी, जिसे विपक्षी सदस्यों ने आगे बढ़ाने की मांग की थी.
विपक्ष लगातार वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर सरकार पर निशाना साध रहा है. इस मामले तो लेकर बनी संसद की संयुक्त समिति के कुछ विपक्षी सदस्यों ने इससे पहले समिति के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता जगदंबिका पाल पर ‘मनमाने ढंग से कार्यवाही बाधित’ करने का आरोप लगाया था. इस संबंध में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक पत्र भी लिखा गया था.
विपक्षी सांसदों ने अपने पत्र में ये भी कहा था कि अगर समिति में उनकी बात को अनसुना किया जाता है और उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए उचित मौका नहीं दिया गया, तो वे समिति से अपना नाम वापस लेने को मजबूर होंगे.
इस समिति की कई बैठकें विवादों में रही हैं. इससे पहले पिछले महीने 15 अक्टूबर को विपक्षी सदस्यों ने ओम बिड़ला को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि समिति की कार्यवाही अध्यक्ष जगदंबिका पाल द्वारा पक्षपातपूर्ण तरीके से संचालित की जा रही है. इस संबंध में समिति के अध्यक्ष पाल ने कहा है कि बैठकों के दौरान विपक्षी सदस्यों को बोलने के पर्याप्त अवसर दिए जाते हैं.
एक अन्य बैठक में कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग के एक पूर्व पदाधिकारी और भाजपा नेता द्वारा वक़्फ़ भूमि के आवंटन को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर की गई टिप्पणी के बाद कई विपक्षी सांसद पैनल की बैठक से वॉकआउट कर लिया था.
वहीं, 22 अक्टूबर 2024 को हुई संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने आक्रोश में एक कांच की बोतल तोड़ दी थी, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था.