वित्त मंत्रालय ने कहा कि एनपीए में करीब 77 प्रतिशत हिस्सेदारी शीर्ष औद्योगिक घरानों के पास फंसे क़र्ज़ का है. बढ़ता शिक्षा ऋण भी बैंकों के लिए समस्या बनता जा रहा है.
नई दिल्ली: सार्वजनिक बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के अंत तक 7.34 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई. इसका अधिकांश हिस्सा कॉरपोरेट डिफाल्टरों के कारण रहा. रिज़र्व बैंक के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई.
हालांकि, निजी बैंकों का एनपीए यानी बैंक द्वारा चुकाया जाने क़र्ज़ इस दौरान अपेक्षाकृत काफी कम 1.03 लाख करोड़ रुपये रहा. वित्त मंत्रालय ने इन आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, ‘30 सितंबर 2017 तक सार्वजनिक बैंकों का समग्र एनपीए 7,33,974 करोड़ रुपये तथा निजी बैंकों का 1,02,808 करोड़ रुपये रहा.’
वित्त मंत्रालय ने कहा कि इसमें करीब 77 प्रतिशत हिस्सेदारी शीर्ष औद्योगिक घरानों के पास फंसे क़र्ज़ का है.
भारतीय स्टेट बैंक की एनपीए सर्वाधिक 1.86 लाख करोड़ रुपये रही. इसके बाद पंजाब नेशनल बैंक 57,630 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ इंडिया 49,307 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ बड़ौदा 46,307 करोड़ रुपये, केनरा बैंक 39,164 करोड़ रुपये और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का 38,286 करोड़ रुपये का नंबर रहा.
निजी बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक 44,237 करोड़ रुपये के एनपीए के साथ शीर्ष पर रहा है. इसके बाद एक्सिस बैंक 22,136 करोड़ रुपये, एचडीएफसी बैंक 7,644 करोड़ रुपये और जम्मू एंड कश्मीर बैंक का एनपीए 5,983 करोड़ रुपये रहा.
शिक्षण में फंसा क़र्ज़ बढ़ने से बढ़ रही है बैंकों की समस्या
बैंकों के लिए शिक्षा क़र्ज़ भी अब समस्या बनती जा रही है. क़र्ज़ लौटाने में चूक बढ़कर मार्च 2017 में कुल बकाये का 7.67 प्रतिशत हो गया जो दो साल पहले 5.7 प्रतिशत था.
भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के आंकड़े के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 के अंत में कुल शिक्षा क़र्ज़ 67,678.5 करोड़ रुपये पहुंच गया. इसमें 5,191.72 करोड़ रुपये एनपीए हो गया.
सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बढ़े फंसे क़र्ज़ से पहले ही जूझ रही है और उन्हें मज़बूत करने के लिए पूंजी डालने की बड़ी योजना तैयार की है. आईबीए के आंकड़े के अनुसार क्षेत्र में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति यानी एनपीए कुल क़र्ज़ के प्रतिशत के रूप में लगातार बढ़ रही है.
वित्त वर्ष 2014-15 में एनपीए 5.7 प्रतिशत थी जो 2015-16 में 7.3 प्रतिशत तथा पिछले वित्त वर्ष में 7.67 प्रतिशत पहुंच गई.
उल्लेखनीय है कि सरकार ने पूर्व में आईबीए की शिक्षा क़र्ज़ योजना के मॉडल में संशोधन किया जिसका मक़सद इस क्षेत्र में एनपीए के प्रभाव को कम करना था.
योजना में जो बदलाव किए गए, उसमें भुगतान की अवधि बढ़ाकर 15 साल करना तथा 7.5 लाख रुपये तक के शिक्षा ऋण के लिए क्रेडिट गारंटी फंड स्कीम फॉर एजुकेशन लोन (सीजीएफईएल) की शुरुआत शामिल हैं. सीजीएफईएल क़र्ज़ में चूक होने पर 75 प्रतिशत की गारंटी उपलब्ध कराता है.
आईबीए के आंकड़े के अनुसार शिक्षा ऋण के मामले में सार्वजनिक क्षेत्र के इंडियन बैंक का एनपीए मार्च 2017 के अंत में सर्वाधिक 671.37 करोड़ रुपये रहा. उसके बाद क्रमश: एसबीआई 538.17 करोड़ रुपये तथा पंजाब नेशनल बैंक 478.03 करोड़ रुपये का स्थान रहा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)