नई दिल्ली: बांग्लादेश के एक अल्पसंख्यक अधिकार संगठन ने दावा किया है कि पिछले साल 21 अगस्त से 31 दिसंबर के बीच 174 घटनाएं हुईं, जिनमें बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों के सदस्यों को निशाना बनाया गया, जिसमें 23 हत्याएं भी शामिल हैं.
हालांकि, अर्थशास्त्री और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली देश की अंतरिम सरकार ने गुरुवार (30 जनवरी) को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद (बीएचबीसीयूसी) द्वारा बताए गए मौत आंकड़ों पर संदेह जताया है.
डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, संगठन ने कहा कि उसके आंकड़े अख़बारों में प्रकाशित सूचना पर आधारित हैं. संगठन ने सरकार पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव करने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया.
डेली स्टार के अनुसार, बीएचबीसीयूसी ने कहा कि उक्त अवधि में 23 अल्पसंख्यकों की हत्या के अलावा महिलाओं पर अत्याचार, बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के नौ मामले सामने आए; पूजा स्थलों में तोड़फोड़ के 64 मामले सामने आए; धर्म का अपमान करने के आरोप में गिरफ्तारी और यातना के 15 मामले सामने आए; घरों, जमीन और उद्यमों पर जबरन कब्जे के 25 मामले सामने आए; और घरों और व्यवसायों पर हमले के 38 मामले सामने आए.
समाचार एजेंसी एपी ने संगठन के कार्यवाहक महासचिव मनिंद्र नाथ के हवाले से बताया कि संगठन ने यह भी कहा कि अंतरिम सरकार ने ‘अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्रवाई करने के लिए विभिन्न महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों का उपयोग करना शुरू कर दिया है.’
सरकार का आंकड़ों पर अविश्वास
उधर, यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि बीएचबीसीयूसी का सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने का इतिहास रहा है.
आलम ने कहा, ‘जुलाई-अगस्त के बाद के विद्रोह के दिनों में अल्पसंख्यकों की मृत्यु की संख्या के बारे में इसकी पिछली रिपोर्ट में बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया था.’
समूह ने पहले दावा किया था कि 4 अगस्त – जब पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को कई सप्ताह तक चले घातक अशांति के बाद पद से हटा दिया गया था – से 21 अगस्त के बीच अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की कम से कम 2,010 घटनाएं हुईं.
अगस्त से दिसंबर के बीच 23 मौतों के अपने आंकड़े के बारे में आलम ने कहा, ‘बांग्लादेश में हर महीने 200 से 300 लोग मारे जाते हैं. इनमें धार्मिक अल्पसंख्यक भी शामिल हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी हत्या धार्मिक कारणों से की गई? क्या हत्याओं के पीछे कोई धार्मिक प्रेरणा थी? या फिर ये सामान्य कानून और व्यवस्था के मुद्दे हैं?’
डेली स्टार ने बताया कि बुधवार को अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बीएचबीसीयूसी ने बांग्लादेश के संविधान सुधार आयोग की भी आलोचना की, जिसमें सिफारिश की गई थी कि संविधान के मूल सिद्धांतों में से एक धर्मनिरपेक्षता को हटा दिया जाना चाहिए.
अख़बार के अनुसार, बीएचबीसीयूसी ने तर्क दिया कि यह चूक धार्मिक स्वतंत्रता का विरोध करने तथा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव को नकारने के समान है.
प्रोथोम अलो ने बताया कि इस महीने की शुरुआत में आयोग ने संविधान के मूल सिद्धांतों में से राष्ट्रवाद, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को हटाने की सिफारिश की थी, तथा उनकी जगह समानता, मानव सम्मान, सामाजिक न्याय और बहुलवाद को शामिल करने की सिफारिश की थी.
एपी की रिपोर्ट के अनुसार, बीएचबीसीयूसी के कार्यवाहक महासचिव नाथ ने हिंदू पुजारी चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की रिहाई की भी मांग की.
ज्ञात हो कि चटगांव में बांग्लादेशी झंडे की जगह भगवा रंग का झंडा लगाने के लिए भीड़ को उकसाने के आरोप में चिन्मय कृष्ण को नवंबर में गिरफ्तार किया गया और देशद्रोह के आरोप में जेल भेज दिया गया. तब से उन्हें जमानत देने से मना कर दिया गया है, जिसमें इस महीने की शुरुआत की एक बार जमानत भी शामिल है.
हसीना के सत्ता से हटने के बाद से नई दिल्ली और ढाका बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की प्रकृति और चिन्मय कृष्ण की गिरफ्तारी पर असहमत हैं, जिससे मोदी और यूनुस सरकारों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं.