तिनका भर संसार: अठारह समकालीन हिंदी कवि

रुस्तम सिंह अपने सहकर्मियों के रचना-संसार पर गहरी निगाह रखते हैं और उनकी उपलब्धियों को सार्वजनिक रूप से दर्ज करते हैं. हाल ही में उन्होंने हिंदी के अठारह समकालीन कवियों का संकलन तैयार किया है. यहां प्रस्तुत है, उस संकलन का प्राक्कथन और कुछ चुनिंदा कविताएं. 

रुस्तम सिंह. (फोटो साभार: विकिपीड़िया)

रुस्तम सिंह विलक्षण रचनाकार हैं. वे गहन विचारक हैं. यह वैचारिकी राजनीतिविज्ञान और फ़लसफ़े की संधि-रेखा पर घटित हुई उनकी मौलिक किताबों में झलकती है. वे अनूठे कवि हैं और कविता के सहृदय अनुवादक हैं. इससे बढ़कर, वे कविता के रसिक और अध्येता भी हैं. अमूमन अपनी कविताओं पर चुप रहने वाले रुस्तम सिंह अपने सहकर्मियों के रचना-संसार पर गहरी निगाह रखते हैं और उनकी उपलब्धियों को सार्वजनिक रूप से दर्ज करते हैं. हाल ही में उन्होंने हिंदी के अठारह समकालीन कवियों का संकलन तैयार किया है. यहां प्रस्तुत है, उस संकलन का प्राक्कथन और कुछ चुनिंदा कविताएं…

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मैं काफ़ी समय से सोच रहा था कि समकालीन हिंंदी के कुछ ऐसे कवियों का एक संग्रह तैयार किया जाए, जिन्होंने पिछले तीन दशकों में हिंंदी कविता में दृष्टि, कहन, शैली और शिल्प इत्यादि में कुछ भिन्न और नया किया है. परंतु साथ ही ये ऐसे कवि हों जिनकी कविता को स्तरीय कविता कहा जा सके. दूसरे शब्दों में, मैं यह मान कर चल रहा था कि चाहे कवियों के चुनाव का मुख्य आधार उनकी कविता का भिन्न और नई किस्म की कविता होना होगा, तब भी ये कवि अपनी-अपनी पीढ़ियों के श्रेष्ठ कवियों में हों.

‘अपनी-अपनी पीढ़ियों’ पद का उपयोग मैंने इसलिए किया है क्योंकि यदि हम तीन दशकों के दौरान सामने आए कवियों में से चुनाव करेंगे तो ज़ाहिर है कि उनमें विभिन्न पीढ़ियों के कवि होंगे, जैसा कि इस संग्रह में है. इस तरह इस संग्रह में सिर्फ़ युवा कवि ही नहीं बल्कि अलग-अलग उम्र के कवि हैं. 

तब भी इस वक़्त हिंंदी के वरिष्ठतम कवियों को इस संग्रह में शामिल नहीं किया गया. उसका कारण यह है कि ये कवि पिछले तीन दशकों से पहले ही सामने आ चुके थे और अपनी जगह बना चुके थे. वैसे भी इस तरह के किसी कविता संग्रह को तैयार करने से पहले एक कालखण्ड तय करना ही पड़ता है. अन्यथा संग्रह बेडौल हो जाता है और उसे संभालना कठिन हो जाता है.

इस तरह जो कवि इस संग्रह में शामिल किए गए हैं वे हैं पारुल पुखराज, ज्योति शोभा, महेश वर्मा, अरुण देव, शैलेंद्र दुबे, वीरेंद्र दुबे, रुस्तम, तेजी ग्रोवर, उदयन वाजपेयी, शिरीष ढोबले, संगीता गुंदेचा, अंबर पाण्डेय, किंशुक शिव, सपना भट्ट, अमिताभ चौधरी, सोमेश शुक्ल, शुभम अग्रवाल तथा नेहल शाह. कुछेक और कवि भी इस संग्रह में शामिल हो सकते थे यदि उनसे कविताएं लेना संभव होता.

यहां यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि इस संग्रह के लिए कवियों का चुनाव करते वक़्त इस बात को महत्व नहीं दिया गया कि उनके कितने कविता संग्रह प्रकाशित हैं. कवियों का चुनाव सिर्फ़ उनकी कविताओं की गुणवत्ता के आधार पर किया गया है, इस उम्मीद में कि यहां जो अपेक्षत्या कम प्रकाशित कवि हैं वे भविष्य में भी कविता लिखते रहेंगे और उनकी कविताओं की यही गुणवत्ता बनी रहेगी.

एक बात और. संग्रह में कवियों को उनकी उम्र के हिसाब से नहीं जमाया गया है. इसकी बजाय कवियों को एक-दूसरे के साथ रखते हुए इस बात का ध्यान रखा गया कि पाठक को एक कवि से दूसरे कवि तक जाते हुए सहजता महसूस हो.

इस संकलन के कुछ चुनिंदा कवितांश

 

ऐसा कुछ न कहना कि

धरती फटे

या आसमान गिरने को हो

देखो! देखो!

सिर्फ़ एक बाल से

दबा जा रहा है

पूरा वुजूद

शैलेंद्र दुबे

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मैंने उस पात्र को आंख के नज़दीक लाकर,

धूप की ओर पीठ करके, उसके भीतर

कई तरह से देखा

भीतर नीला विष था, सूखकर,

चमकदार होकर, भीतर चिपका था

महेश वर्मा

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मेरी देह पर

तुम्हारी देह से

झिर रही हैं पसीने की बूंदें

आने वाले ग़रीब दिनों के लिए

नमक बन रहा है

तेजी ग्रोवर

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उतर आती है

ऐसी दोपहर कभी-कभी

कि अर्धरात्रि तक

टूटती नहीं उसकी तंद्रा

पानी तक जाता है बाघ

और लौट आता है

शिरीष ढोबले

♦♦♦

सखि! गई थी मैं तो घाट पर

छप-छप की कुछ देर

पानी में

कमलों पर

परछाईं दिखी उसकी

गयी थी मैं तो घाट पर

संगीता गुंदेचा

♦♦♦

भाषा नहीं मिलती

कि ठीक-ठीक कह सकूं

कैसी है उसकी देह-गन्ध!

कैसा है मेरी ग्रीवा को सहलाता उसका स्पर्श!

सपना भट्ट

♦♦♦

शाम को जब घर लौटता हूं

दरवाज़ा खोलते ही मेज़ कहती है मेज़ मेज़ मेज़….

किताबें चिल्लाती हैं किताबें किताबें किताबें….

पेन चीख़ता रहता है पेन पेन पेन….

सोमेश शुक्ल

 

(रुस्तम सिंह की हालिया किताब, कुछ अलग स्वर: अठारह समकालीन हिंदी कवि, सूर्य प्रकाशन मंदिर ने प्रकाशित की है.)