दिल्ली: चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर, ओवैसी के प्रत्याशी की समस्याएं बरक़रार

दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के उम्मीदवार शिफा-उर-रहमान को चुनाव प्रचार के लिए 30 जनवरी से 3 फरवरी तक की पैरोल दी है. हालांकि, पुलिस पहरे की बंदिशों की वजह से उन्हें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

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पुलिसवालों के साथ ओखला के एआईएमआईएम उम्मीदवार शिफा-उर-रहमान. (सभी फोटो: अंकित राज/द वायर हिंदी)

नई दिल्ली: यह वर्ष के पहले महीने का आखिरी दिन है. दिल्ली के मुस्लिम बाहुल्य ओखला की अलसाई सर्द सुबह में अचानक कोलाहल मच गया है. करीब 20 पुलिसवालों का झुंड सफेद कुर्ता-पायजामा पहने सफेद दाढ़ी वाले एक व्यक्ति को लेकर संकरी गली में आगे बढ़ रहा है.

पुलिसिया जूतों के टाप से इलाका गूंज रहा है. रास्ते में खड़े लोग चौंकते हैं- ‘अरे! ये तो शिफा भाई हैं’.

लोगों के सलाम का जवाब सफेद दाढ़ी वाला दायां हाथ उठाकर देता है, दूसरा हाथ पूरे समय एक पुलिसवाले के हाथ में कसा है.

बहुत जल्द इस काफ़िले के पीछे कुछ लोग जुड़ जाते हैं, जो ग़फ़्फ़ार मंजिल में जामिया मिलिया इस्लामिया एलुमनाई एसोसिएशन के अध्यक्ष और ओखला विधानसभा क्षेत्र से एआईएमआईएम उम्मीदवार शिफा-उर-रहमान के घर तक आता है.

सीएए-एनआरसी के खिलाफ जामिया में हुए आंदोलन का चेहरा और 2020 के दिल्ली दंगों के अभियुक्त शिफा करीब पांच साल से जेल में बंद हैं. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से नामांकन दाखिल करने के बाद कोर्ट ने उन्हें चुनाव प्रचार के लिए कस्टडी पैरोल दी है, जिसकी एक दिन की क़ीमत करीब 1,66,000 रुपये है.

इसी गाड़ी में पुलिस शिफा-उर-रहमान को ओखला लेकर आई थी.

कड़कड़डूमा कोर्ट ने शिफा को 30 जनवरी से 3 फरवरी तक की पैरोल दी है. रोज़ाना 12 घंटे चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर रहने की अनुमति है. इसमें जेल से विधानसभा क्षेत्र पहुंचने और वापस जेल तक पहुंचने का समय भी शामिल है. 

उनकी रैली और भाषण के दौरान एक सिपाही हाथ पकड़े रहता है, पुलिस सब कुछ अपने कैमरा में रिकॉर्ड कर रही होती है. शिफा को मोबाइल हाथ में लिए रहने की अनुमति नहीं है, जेल का कपड़ा नहीं बदलना है. परिवार से क्षणिक मुलाक़ात पुलिस के पहरे में होती है.

शिफा-उर-रहमान के प्रचार में ओखला की गलियों में घूमती एक गाड़ी.

एक कैदी का चुनाव प्रचार

शिफा-उर -रहमान जैसे ही अपने घर में घुसते हैं, मिलने वालों का तांता लग जाता है. कोई गले लगाता है. कोई हाथ मिलाता है. कंधे पर तीन सितारे वाले पुलिस अधिकारी अशोक कुमार ऐतराज़ जताते हैं, जिस पर दुखी शिफा कहते हैं, ‘ऐसे मैं कैसे प्रचार करूंगा.’

पुलिसवालों पर से बातचीत करते शिफा.

पुलिस इंचार्ज अशोक कुमार से अपनी शिकायत जाहिर करते शिफा-उर-रहमान कहते हैं कि कल जो पुलिस टीम साथ आई थी, उसके साथ परेशानी नहीं हुई, आप लोग मुश्किल खड़ी कर रहे हैं. अशोक कुमार कहते हैं कि टीम रोज़ बदलेगी. 

शिफा कहते हैं कि कोर्ट ने सुबह छह से शाम छह का समय दिया है. पुलिस कहती है कि जेल के नियमों के अनुसार समय सात से सात है. शिफा चाहते हैं कि जेल से निकलने के तुरंत बाद उन्हें अपने क्षेत्र ले जाया जाए, लेकिन पुलिस उन्हें पहले स्थानीय थाने ले जाती है. शिफा की शिकायत है कि इससे उनका समय बर्बाद होता है, लेकिन पुलिस के अनुसार ‘यह अनिवार्य है.’ 

पुलिस शिफा को फोन पर बात करने से रोकती है. परेशान शिफा अपने वकील अहमद गुलरेज़ से कहते हैं, ‘अगर ऐसे ही चलना है तो कस्टडी पैरोल कैंसल करवा दो. इसका क्या फायदा है, जब मैं कुछ कर ही नहीं सकता.’

अहमद गुलरेज़ अशोक कुमार से कहते हैं, ‘सुबह का एक घंटा तो हमारा इसी चीज़ में चला जा रहा है कि क्या कर सकते हैं और क्या नहीं?’ ‘बॉस, सेफ्टी एंड सिक्योरिटी का मामला है,’ अशोक कुमार जवाब देते हैं.

शिफा-उर-रहमान से मिलने आते लोग.

काफी निवेदन के बाद कुछ पुलिसवाले उनके कमरे से बाहर जाते हैं, इसके बाद भी सात पुलिसवाले उनके साथ हैं. एक सिपाही पूरे समय शिफा के बगल में बैठा रहता है. 

विजयपाल सिंह नामक एक पुलिस अधिकारी हर चीज़ को वीडियो कैमरे में रिकॉर्ड कर रहे हैं. शिफा किसी से क्या बात करते हैं, यह विजयपाल के कैमरे में रिकॉर्ड हो रहा है.

शिफा पर निगरानी रखते विजयपाल सिंह.

शिफा की छवि बेदाग़ और पढ़े-लिखे व्यक्ति की रही है. उनकी पढ़ाई जामिया से हुई थी. वह विद्यार्थियों के बीच काम करने वाले एक मददगार कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते थे. वह अब भी अपने भाषणों और इंटरव्यू में जामिया इदारे, शिक्षा और युवाओं की बात करते हैं.

कुछ समय बाद वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग पर शिफा के केस की सुनवाई शुरू हो जाती है. शिफा के वकील की शिकायतों को सुनकर जज समीर वाजपेयी अशोक कुमार को फटकार लगाते हुए कहते हैं, ‘फोन पर बातचीत नहीं कर सकते, यह किसने कहा आपसे?’

कुमार इसका जवाब नहीं दे पाते.

पुलिस इंचार्ज जज को बताते हैं कि लोग गले मिल रहे हैं, हाथ मिला रहे हैं, इससे दिक़्क़त हो सकती है. 

जस्टिस वाजपेयी पूछते हैं, ‘आपको किसने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकते हैं?’

कुमार इसका भी जवाब नहीं दे पाते हैं.

जज कहते हैं, ‘वह अपने परिवार से मिलेंगे, फ्रेंड से मिलेंगे, जो उनसे मिलने आएगा उससे बात करेंगे, किसी से भी बात कर सकते हैं.’

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपने वकील के साथ कोर्ट की सुनवाई में शामिल होते शिफा-उर-रहमान.

जज की डांट के बाद पुलिस वालों का रवैया बदलता है, माहौल हल्का होता है और एक पुलिस वाला मजाकिया लहजे में शिफा से पूछता है, ‘क्या लगता है किसकी सरकार बन रही है?’ शिफा मुस्कुराकर कहते हैं, ‘मुझे क्या पता. मैं तो जेल में हूं.’

अब शिफा के जामिया वाले दोस्त उन्हें गले मिलते हैं, कुछ तो रो पड़ते हैं. उनका एक दोस्त उन्हें वीडियो कॉल पर अन्य दोस्तों से बात करवाता है. अपने एक दोस्त अख्तर से परिचय करवाते हुए शिफा पुराने दिनों को याद करते हैं, ‘यहां हम कैरम खेला करते थे, अब तो सब बदल गया.’

घर में बंदूक और कैमरे के साथ पुलिस, मीडिया, पार्टी कार्यकर्ता, पड़ोसी और मुलाकाती भरे हुए हैं. शिफा का बारह वर्षीय बेटा अरहान एक कोने से पूरे समय अपने पिता को निहार रहा है. उसके लिए यह सब ‘अजीब’ है. अरहान को बुखार है लेकिन मां की हिदायत के बावजूद वह पिता के आस-आस मंडराता रहता है.

पुलिस की निगरानी में परिवारवालों से बातचीत करते शिफा-उर-रहमान.

राजनीति की नई पारी 

मुख्यधारा की राजनीति में पहली बार उतरे शिफा नई स्थिति के सामंजस्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं. 

पार्टी के लिए प्रचार वीडियो शूट करते हुए उनके हाथ कांप जाते हैं. सीएए-एनआरसी के दौरान ज़ोरदार तक़रीर करने वाले शिफा प्रचार वीडियो शूट करते हुए कई बार अटकते हैं, शर्माते हैं और वीडियो बड़ी मुश्किल से रिकॉर्ड हो पता है.

वीडियो रिकॉर्ड करते शिफा-उर-रहमान.

शिफा की पूरा कैम्पेन भावनाओं के बूते चल रही है. वह पांच साल की अपनी क़ैद को समाज के लिए किया अपना योगदान बता रहे हैं. पत्नी, बच्चों, मां, दोस्तों से हुई दूरी को याद दिला रहे हैं. ख़ुद को निर्दोष बता रहे हैं और जेल का बदला वोट से लेने की अपील कर रहे हैं.

कैम्पेन की रणनीति पर चर्चा करते शिफा-उर-रहमान.

कस्टडी पैरोल मिलने से पहले उनके चुनाव प्रचार का मोर्चा उनकी पत्नी नूरीन फातिमा संभाले हुई थीं और मतदाताओं से अपने पति के लिए ‘इंसाफ़’ मांग रही थीं. नूरीन पढ़ी-लिखी महिला हैं. उन्होंने साल 2002 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से स्नातक किया है. उनका शिफा से निकाह 2008 में हुआ था.

नूरीन बताती हैं कि कॉलेज के दिनों में वह हॉस्टल के टैलेन्टेड वॉर्ड (टीडब्लू) की सदस्य थीं. नूरीन को कॉलेज के दिनों से ही ‘स्टेज फ़ियर’ था, लेकिन अब उन्हें लगातार स्टेज से बोलना पड़ रहा है.

चुनावी जनसभा को संबोधित करतीं नूरीन फातिमा.

एआईएमआईएम उम्मीदवार का मुकाबला आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान से है. खान पिछले दो चुनाव से निर्वाचित हो रहे हैं. कांग्रेस ने आरिबा खान को उम्मीदवार बनाया है, जो इस क्षेत्र में दिग्गज कांग्रेस नेता असद मोहम्मद खान की बेटी हैं. आरिबा वर्तमान में दिल्ली नगर निगम की पार्षद भी हैं.

भाजपा ने मनीष चौधरी को उम्मीदवार बनाया है, जो पार्टी के हिंदू आधार को मजबूत करने और मुस्लिम समुदाय में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, ज्यादा लाभ होता नज़र नहीं आ रहा है, क्योंकि क्षेत्र के मुसलमानों को भाजपा पर भरोसा करना मुश्किल है.

ओखला में एआईएमआईएम की एक चुनावी सभा में इकट्ठा हुए लोग.

शिफा पर उत्तरपूर्व दिल्ली में दंगे भड़काने की साजिश का आरोप है. 

पार्टी चीफ असदुद्दीन ओवैसी शिफा के लिए कई रैलियां कर चुके हैं, जिसमें भारी भीड़ देखने को मिली. ओखला के मुसलमान मौजूदा विधायक अमानतुल्लाह खान से नाराज भी हैं. लोग टूटी सड़कों, गंदगी और मूलभूत सुविधाओं के अभाव से त्रस्त हैं. 

लेकिन ओखला की हवाएं यह भी कहती हैं कि क्षेत्र के मुसलमान वोट उसे ही देना चाहते हैं, जो भाजपा को रोक सकता है.