बस्तर के ‘कुख्यात’ आईजी रहे कल्लूरी को अनुशासनहीनता का नोटिस

बस्तर के ‘कुख्यात’ पूर्व आईजी एसआरपी कल्लूरी को अनुशासनहीनता के लिए छत्तीसगढ़ डीजीपी ने चेतावनी देते हुए एक साथ तीन कारण बताओ नोटिस जारी किया है.

बस्तर के ‘कुख्यात’ पूर्व आईजी एसआरपी कल्लूरी को अनुशासनहीनता के लिए छत्तीसगढ़ डीजीपी ने चेतावनी देते हुए एक साथ तीन कारण बताओ नोटिस जारी किया है.

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छत्तीसगढ़ सरकार की लंबे समय तक फ़ज़ीहत का कारण बने बस्तर के पूर्व आईजी एसआरपी कल्लूरी को अब सरकार की नाराज़गी झेलनी पड़ रही है. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से उन्हें एक ही दिन में अनुशासनहीनता के लिए तीन कारण बताओ नोटिस जारी करके जवाब मांगा है. आईजी कल्लूरी पर बस्तर में लंबे समय तक दमनकारी रवैया अपनाने का आरोप लगता रहा है. उन्हें हाल ही में बस्तर से हटाकर रायपुर पुलिस हेडक्वार्टर अटैच कर दिया गया था.

छत्तीसगढ़ के डीजीपी एएन उपाध्याय की ओर से कल्लूरी को तीन नोटिस भेज गए हैं. एक नोटिस में डीजीपी ने कल्लूरी से कहा है कि वे अनुमति लिए बगैर रायपुर मुख्यालय से बाहर न जाएं.

 

दूसरे नोटिस में सोशल मीडिया पर की गई उनकी टिप्पणी के संबंध जवाब तलब किया गया है. हाल ही में उनकी एक सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर कुछ चैनलों व अख़बारों में ख़बरें प्रकाशित हुई थीं. नोटिस में सरकार की सोशल मीडिया नीति का ज़िक्र करते हुए कल्लूरी से पूछा है कि आपका उपरोक्त कृत्य के शासन के विरुद्ध है, क्यों न आपके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए.

तीसरा नोटिस कल्लूरी के जगदलपुर में टाटा कंपनी के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर है. नोटिस में सवाल किया गया है कि ‘प्रशासन द्वारा जारी परिपत्र में स्पष्ट है कि शासकीय अधिकारी को इस तरह के निजी कार्यक्रमों में शामिल नहीं होना चाहिए. आपका उक्त कार्यक्रम में शामिल होना परिपत्र का उल्लंघन है. इस संबंध में क्यों न आपके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए.’

bastar Kalluri notice

इसी कार्यक्रम में आईजी कल्लूरी और जगदलपुर के एसपी आरएन दास की उपस्थिति में सुकमा के एसपी इंदिरा कल्याण एलेसेला ने विवादित टिप्पणी करते हुए कहा था कि ‘मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सड़क पर वाहन से कुचल देना चाहिए.’ उनकी यह टिप्पणी मानवाधिकार कार्यकर्ता शालिनी गेरा और ईशा खंडेलवाल के बारे में थी. इस टिप्पणी के बाद सुकमा एसपी एलेसेला का भी बस्तर रेंज से बाहर तबादला कर दिया गया.

आईजी एसआरपी कल्लूरी पर बस्तर में दमनकारी पुलिसिया नीति अपनाने, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमले करवाने, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं को तरह तरह से परेशान करने के आरोप लगते हैं जिससे छत्तीसगढ़ सरकार को काफ़ी फ़ज़ीहत झेलनी पड़ी है.