जयपुर: राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने सोमवार (3 फरवरी) को राज्य विधानसभा में राजस्थान गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध विधेयक, 2025 पेश किया. इस विधेयक के विभिन्न प्रावधानों के तहत सभी अपराध संज्ञेय (पुलिस को बिना वॉरंट के आरोपी को गिरफ़्तार करने का अधिकार) और गैर-जमानती होंगे.
इस विधेयक की धारा 13 के अनुसार, जिसे ‘अच्छी नीयत से की गई कार्रवाई का संरक्षण’ कहा गया है, यह अधिकारियों को प्रस्तावित कानून के हिसाब से किए गए किसी भी काम के लिए अभियोजन या किसी अन्य कानूनी कार्यवाही से सुरक्षा देता है.
मालूम हो कि हाल के वर्षों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिनमें हाशिए पर खड़े समुदायों के लोगों पर धर्म परिवर्तन कराने का झूठा आरोप लगाया गया और बाद में अदालतों ने उन्हें बरी कर दिया. ये विधेयक संभावित कानूनी कार्यवाही के खिलाफ सरकारी अधिकारियों को सुरक्षा देकर ऐसे मामलों को रोकने में कारगर नहीं होगा, जहां अवैध धर्मांतरण के लिए गलत तरीके से फंसाए जाने के बाद निर्दोष लोगों को परेशान किया जाता है.
सज़ा के तौर पर एक से 10 साल की कैद
विधेयक में सूचीबद्ध अपराधों के लिए आर्थिक जुर्माने के साथ एक से 10 साल की कैद तक की सजा का प्रावधान है. अधिकतम सज़ा उन लोगों के लिए आरक्षित है जो किसी नाबालिग, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय के व्यक्ति के संबंध में अपराध करते हैं.
इस विधेयक में अपराधों की सूची में ‘विवाह या विवाह की प्रकृति के संबंध में धर्मांतरण’ भी शामिल है.
विधेयक में कहा गया है, ‘एक धर्म के पुरुष द्वारा दूसरे धर्म की महिला के साथ गैरकानूनी धर्म परिवर्तन या इसके विपरीत के एकमात्र उद्देश्य के लिए किया गया कोई भी विवाह, या तो शादी से पहले या बाद में खुद को परिवर्तित करके, या शादी से पहले या बाद में महिला का धर्म परिवर्तन करके, पारिवारिक न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया जाएगा या जहां पारिवारिक न्यायालय स्थापित नहीं है, वहां न्यायालय के पास किसी भी पक्ष द्वारा प्रस्तुत याचिका पर ऐसे मामले की सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र है…’
विधेयक के अनुसार, कोई भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन या कोई अन्य व्यक्ति जो उससे रक्त, विवाह या गोद लेने से संबंधित है, प्रस्तावित कानून में उल्लिखित अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज करवा सकता है.
ये विधेयक व्यक्ति के दूसरे धर्म में परिवर्तित होने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को साठ दिन की अग्रिम घोषणा देना अनिवार्य बनाता है, जबकि जो व्यक्ति धर्म परिवर्तन समारोह करेगा, उसे एक महीने का नोटिस देना होगा.
जिला मजिस्ट्रेट, प्रस्तावित धार्मिक रूपांतरण के वास्तविक इरादे, उद्देश्य और कारण के संबंध में पुलिस के माध्यम से जांच कराएंगे. इसी तरह की घोषणा धर्मांतरण के साठ दिनों के भीतर प्रस्तुत की जानी है.
व्यक्तिगत विवरण के साथ धर्मांतरण घोषणा की प्रति नोटिस बोर्ड पर
विधेयक के अनुसार, धर्म परिवर्तन के बाद परिवर्तित व्यक्ति को धर्म परिवर्तन की तारीख से साठ दिनों के भीतर निर्धारित प्रारूप में उस जिले के जिला मजिस्ट्रेट को एक घोषणा भेजनी होगी, जहां परिवर्तित व्यक्ति सामान्य रूप से रहता है.
विधेयक में कहा गया है, ‘जिला मजिस्ट्रेट पुष्टि की तारीख तक घोषणा की एक प्रति कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करेगा. उक्त घोषणा में आवश्यक विवरण शामिल होंगे, यानी धर्मांतरित होने वाले का विवरण जैसे जन्म तिथि, स्थायी पता और वर्तमान निवास स्थान, पिता/पति का नाम, मूल रूप से धर्मांतरित व्यक्ति किस धर्म का था और उसने किस धर्म में धर्म परिवर्तन किया है, धर्मांतरण की तारीख और स्थान और धर्मांतरण के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की प्रकृति.’
विधेयक में कहा गया है कि यदि कोई आपत्ति अधिसूचित की जाती है, तो जिला मजिस्ट्रेट उन्हें दर्ज कर सकता है, यानी आपत्तिकर्ताओं का नाम और विवरण और आपत्ति की प्रकृति.
विधेयक के विभिन्न प्रावधान स्वैच्छिक धर्मांतरण की प्रक्रिया को काफी कठिन बनाते हैं, विधेयक स्वेच्छा से धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति के सतर्कता समूहों द्वारा उत्पीड़न के संभावित मामलों के बारे में चुप रहता है, जो नोटिस बोर्ड पर व्यक्ति के व्यक्तिगत विवरण पा सकते हैं.
विधेयक की धारा 12 में कहा गया है, ‘इस बात के सबूत का भार कि क्या गलतबयानी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से या विवाह के माध्यम से धार्मिक रूपांतरण नहीं किया गया था, उस व्यक्ति पर है जिसने धर्मांतरण किया है और, जहां इस तरह के धर्मांतरण को किसी भी व्यक्ति द्वारा सुविधाजनक बनाया गया है, ऐसे अन्य व्यक्ति पर है.’
‘भोले-भाले लोगों को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित किया गया’
इस विधेयक को लाने के पीछे के कारण को लेकर सरकार द्वारा कहा गया है कि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है, अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के रूप में विस्तारित नहीं किया जा सकता है; धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति और धर्म परिवर्तन चाहने वाले व्यक्ति दोनों का समान रूप से है.
इसमें आगे कहा गया है, ‘हालांकि, हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जहां भोले-भाले व्यक्तियों को गलतबयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या कपटपूर्ण तरीकों से एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित किया गया है. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित कानून देश के विभिन्न राज्यों में पहले से ही मौजूद है, लेकिन राजस्थान में उक्त विषय पर कोई कानून नहीं था. इसलिए उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या कपटपूर्ण तरीकों से या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी रूपांतरण पर रोक लगाने और उससे जुड़े या उसके आकस्मिक मामलों के लिए एक कानून बनाने का निर्णय लिया गया.’
वर्तमान में मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के पास गृह विभाग है और वह विधेयक के प्रभारी मंत्री भी हैं, जिसके जल्द ही पारित होने की उम्मीद है.
गौरतलब है कि शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा बजट सत्र में राज्य विधानसभा में विधेयक पेश करने से पहले, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी 2006 और 2008 में इसी तरह के धर्मांतरण विरोधी विधेयक पेश किए थे, लेकिन या तो तत्कालीन राज्यपालों द्वारा सहमति नहीं दी गई थी या विधेयकों को केंद्र द्वारा वापस कर दिया गया था.
राजस्थान से पहले उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसी अन्य भाजपा शासित राज्य सरकारों के पास पहले से ही इसी तरह के कानून हैं.
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