नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार (4 जनवरी) को घोषणा की कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के शीर्ष निकाय से बाहर हो जाएगा और फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद करने वाली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के लिए फंडिंग फिर से शुरू नहीं करेगा.
द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक, अमेरिका ने पिछले साल ही जिनेवा स्थित मानवाधिकार परिषद से खुद को बाहर कर लिया था और फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों की सहायता करने वाली एजेंसी, जिसे यूएनआरडब्ल्यूए के नाम से जाना जाता है, की फंडिंग बंद कर दी थी. इस एजेंसी पर इज़रायल ने हमास के आतंकवादियों को शरण देने का आरोप लगाया था, जिन्होंने 7 अक्टूबर, 2023 को दक्षिणी इज़रायल में हुए हमलों में भाग लिया था. हालांकि, यूएनआरडब्ल्यूए ने इन आरोपों से इनकार किया है.
मालूम हो कि ट्रंप की ये घोषणा इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात के दौरान सामने आई. इजरायल लंबे समय से मानवाधिकार निकाय और यूएनआरडब्ल्यूए दोनों पर इज़रायल के खिलाफ पूर्वाग्रह और यहूदी विरोधी भावना का आरोप लगाता रहा है.
वहीं, इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, मंगलवार को ह्वाइट हाउस में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ एक संयुक्त प्रेस वार्ता के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका गाजा पट्टी पर कब्जा कर लेगा और यदि जरूरत पड़ी तो क्षेत्र में अमेरिकी सैनिकों को तैनात करेगा.
ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका गाजा पट्टी को नियंत्रण में लेकर यहां से ज़िंदा बमों को हटाकर, पुनर्निमाण करके और अर्थव्यवस्था को गति देकर सच्चा काम कर सकता है. उन्होंने ये भी कहा कि हम पहले जैसी स्थिति में वापस नहीं जा सकते वरना इतिहास खुद को दोहराएगा.
ट्रंप के अन्य कार्यकारी आदेशों में पेरिस स्थित संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन, जिसे यूनेस्को के नाम से जाना जाता है, में अमेरिकी भागीदारी की समीक्षा और ‘विभिन्न देशों के बीच फंडिंग के स्तर में भारी असमानताओं’ के आलोक में संयुक्त राष्ट्र के लिए अमेरिकी फंडिंग की समीक्षा का भी आह्वान किया गया है.
ज्ञात हो कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र के नियमित परिचालन बजट का 22 प्रतिशत भुगतान करता है, जिसमें चीन दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है.
ट्रंप ने ओवल ऑफिस में संवाददाताओं से कहा, ‘मैंने हमेशा महसूस किया है कि संयुक्त राष्ट्र में जबरदस्त संभावनाएं हैं. अभी यह उस क्षमता पर खरा नहीं उतर रहा है. …उन्हें अपना काम एक साथ करना होगा.’
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को उन देशों के प्रति निष्पक्ष होने की ज़रूरत है जो निष्पक्षता के पात्र हैं. उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे देश हैं, जिनका उन्होंने नाम नहीं लिया, जो बाहरी हैं, जो बहुत बुरे हैं और उन्हें लगभग प्राथमिकता दी जा रही है.
ट्रंप की घोषणा से पहले, संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने ‘फिलिस्तीनियों को महत्वपूर्ण सेवाएं’ प्रदान करने में मानवाधिकार परिषद के महत्व और यूएनआरडब्ल्यूए के काम को दोहराया.
मालूम हो कि ट्रंप ने जून 2018 में अमेरिका को मानवाधिकार परिषद से बाहर निकाल दिया था. उस समय संयुक्त राष्ट्र में उनकी राजदूत, निक्की हेली ने परिषद पर ‘इजरायल के खिलाफ लगातार पूर्वाग्रह’ का आरोप लगाया था और बताया था कि उन्होंने जो कहा वह इसके सदस्यों के बीच मानवाधिकारों का हनन करने वाला था.
इसके बाद राष्ट्रपति जो बाइडन ने मानवाधिकार परिषद के लिए फिर से समर्थन बहाल किया और अमेरिका ने अक्टूबर 2021 में इस 47 सदस्य राष्ट्र निकाय में एक सीट जीती. लेकिन बाइडन प्रशासन ने सितंबर के अंत में घोषणा की कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका लगातार दूसरे कार्यकाल की तलाश नहीं करेगा.
ट्रंप के फैसले पर परिषद के प्रवक्ता पास्कल सिम ने कहा, ‘ट्रंप के मौजूदा आदेश का कोई ठोस प्रभाव नहीं है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका पहले से ही परिषद का सदस्य नहीं है. लेकिन अन्य सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों की तरह अमेरिका को स्वचालित रूप से अनौपचारिक पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है और अभी भी जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र परिसर में परिषद के गोल कक्ष में एक सीट होगी.’
गौरतलब है कि यूएनआरडब्ल्यूए की स्थापना 1949 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा उन फ़िलिस्तीनियों और उनके वंशजों को सहायता प्रदान करने के लिए की गई थी, जो इज़रायल की स्थापना के बाद 1948 के अरब-इज़रायल युद्ध से पहले और उसके दौरान अपने घरों को छोड़ आए थे या निष्कासित कर दिए गए थे. ये एजेंसी गाजा, कब्जे वाले वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में लगभग 2.5 मिलियन फ़िलिस्तीनियों के साथ-साथ सीरिया, जॉर्डन और लेबनान में 3 मिलियन से अधिक फिलिस्तीनियों को सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सेवाएं प्रदान करती है.
7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमलों से पहले, यूएनआरडब्ल्यूए ने गाजा के 6,50,000 बच्चों के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए स्कूल चलाए और मानवीय सहायता पहुंचाने में मदद की. इसने स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना जारी रखा है और युद्ध के दौरान फिलिस्तीनियों को भोजन और अन्य सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण रहा है.
पहले ट्रंप प्रशासन ने 2018 में यूएनआरडब्ल्यूए की फंडिंग निलंबित कर दी थी, लेकिन बाइडन ने इसे बहाल कर दिया. अमेरिका इस एजेंसी के लिए सबसे बड़ा दानदाता रहा है, जिसने इसे 2022 में $343 मिलियन और 2023 में $422 मिलियन प्रदान किए.
वर्षों से इज़रायल यूएनआरडब्ल्यूए पर अपनी शिक्षा सामग्री में इज़रायल विरोधी पूर्वाग्रह का आरोप लगाता रहा है, जिसे एजेंसी नकारती रही है.
इज़रायल का आरोप है कि गाजा में यूएनआरडब्ल्यूए के 13,000 कर्मचारियों में से 19 ने हमास के हमलों में भाग लिया. संयुक्त राष्ट्र की जांच लंबित रहने तक उन्हें बर्खास्त कर दिया गया, जिसमें पाया गया कि नौ लोग शामिल हो सकते हैं.
इसके जवाब में 18 सरकारों ने एजेंसी की फंडिंग रोक दी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को छोड़कर सभी ने समर्थन बहाल कर दिया है. अमेरिकी फैसले की पुष्टि करने वाले कानून ने मार्च 2025 तक यूएनआरडब्ल्यूए को किसी भी अमेरिकी फंडिंग पर रोक लगा दी, और ट्रंप की मंगलवार की कार्रवाई का मतलब है कि इसे बहाल नहीं किया जाएगा.