भारतीय जनता पार्टी ने पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में फैजाबाद लोकसभा सीट पर ( जिसके अंतर्गत अयोध्या भी शामिल है) अपनी हार का (जो राम मंदिर निर्माण के बाद आसमान चूमती चार सौ पार की उसकी उम्मीदों के दामन से बरबस किसी शर्म की तरह लिपट गई और किसी भी तरह छोड़ने को तैयार नहीं हो रही थी) ‘बदला’ चुका लिया है. उसने उसे वह सीट हराने वाले समाजवादी पार्टी के दिग्गज दलित विधायक अवधेश प्रसाद के इस्तीफे से खाली हुई अयोध्या लोकसभा क्षेत्र की ही मिल्कीपुर (सुरक्षित) विधानसभा सीट के उपचुनाव में उनकी पार्टी के प्रत्याशी और उनके बेटे अजीत प्रसाद की कलाइयां मरोड़ कर लगभग वैसी ही अप्रत्याशित जीत हासिल की है, जैसी गत दिनों हुए नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में मुरादाबाद जिले की अल्पसंख्यक बहुल कुंदुरकी सीट पर हासिल की थी.
जब आप ये पंक्तियां पढ़ रहे हैं, अखबारों में या न्यूज चैनलों पर शब्दों के हेर-फेर से इस खबर को इसी या किसी और रूप में पढ़, सुन या देख चुके होंगे.
पार्टी व सरकार का फर्क मिटाया
लेकिन अफसोस कि इससे भाजपा को इस सीट पर मिले ‘जनादेश’ का पूरा सच आपके सामने नहीं आता. उसे जैसी स्थितियां निर्मित करके हासिल किया गया है, वे यह कहने की मांग करती हैं कि यह ‘बदला’ भाजपा ने नहीं, बल्कि उसकी ओर से उत्तर प्रदेश की उसकी योगी आदित्यनाथ ने चुनाव आयोग के सहयोग से (हां, चुनाव आयोग के सहयोग से) पार्टी व सरकार का फर्क मिटाकर चुकाया है. भाजपा तो बीच संभवतः रणनीति के तौर पर इस बदले को बदलें के बजाय भूलसुधार कहने लगी थी.
अब अगर आपका यह पूछने का मन हो रहा है कि इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रियों ने मिल्कीपुर की कितनी यात्राएं कीं, वहां जाकर कितना जोर लगाया या प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कितना साम दाम दंड और भेद बरता, तो इस सवाल को भूल ही जाइए तो ठीक. योगी के राज में उत्तर प्रदेश में यह सब इस तरह एक ‘समृद्ध’ परंपरा में बदल चुका है कि दूसरे भाजपा शासित प्रदेशों की सरकारें भले ही ऐसे मामलों में पूर्ण लज्जावसनविहीन होने में थोड़ी लजाती या शरमाती हों, योगी सरकार किसी भी रूप में लजाने से परहेज बरतती है.
इस उपचुनाव में तो, उसके लिए यह परहेज इस कारण भी बहुत जरूरी हो गया था कि जमीनी हकीकतों के मद्देनजर उसके सामने दो ही विकल्प थे : पहला यह कि चुनाव प्रक्रिया की शुचिता व पवित्रता की परवाह करती हुई वह यह उपचुनाव हार जाने और योगी के भाजपा की अंदरूनी राजनीति के शिकार होकर सत्ता से बेदखल हो जाने का जोखिम उठाए. दूसरा यह कि हर हाल में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए स्मृतिशेष राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की इन पंक्तियों को सही सिद्ध कर डाले :
साधन को भूल सिद्धि पर जब टकटकी हमारी लगती है
फिर विजय छोड़ भावना और कोई न हृदय में जगती है.
तब जो भी आते विघ्नरूप, हों धर्म, शील या सदाचार
एक ही सदृश हम करते हैं, सबके सिर पर पाद-प्रहार
उतनी भी पीड़ा हमें नहीं, होती है इन्हें कुचलने में
जितनी होती है रोज़ कंकड़ों के ऊपर हो चलने में.
इन विकल्पों में उसने दूसरा चुन लिया तो विडंबना यह कि उसने महज सिद्धि पर टकटकी नहीं लगाई और केवल उक्त पंक्तियों को चरितार्थ नहीं किया. उन सवालों को पूरी तरह भुला बैठी, जो ‘दिनकर’ इसी सिलसिले में अपनी आगे की पंक्तियों के कटूक्ति सी करते हुए पूछ गए हैं :
सत्य ही, ऊर्ध्व-लोचन कैसे नीचे मिट्टी का ज्ञान करे?
जब बड़ा लक्ष्य हो खींच रहा, छोटी बातों का ध्यान करे.
चलता हो अन्ध ऊर्ध्व-लोचन, जानता नहीं, क्या करता है
नीचे पथ में है कौन? पाँव जिसके मस्तक पर धरता है.
दिनकर के अनुसार जब भी ये सवाल भुलाए जाते हैं :
काटता शत्रु को वह (यानी भुलाने वाला) लेकिन, साथ ही धर्म कट जाता है
फाड़ता विपक्षी का अंतर, मानवता का फट जाता है.
मिल्कीपुर में मतदान की शुचिता का अंतर इसी ‘मानवता’ के अंतर की तरह फाड़ा गया है.
अपील भी तुम, दलील भी तुम
अयोध्या के वरिष्ठ पत्रकार इंदु भूषण पांडेय, जिन्होंने इस उपचुनाव के दौरान उस पर लगातार नजर रखी, उसकी शुचिता के संदर्भ में वायरल हो चुके एक आडियो व एक वीडियो का हवाला देते हैं.
आडियो में एक थाना इंचार्ज, कथित रूप से, भाजपा की प्रतिद्वंद्वी सपा के पूर्व जिला पंचायत सदस्य और समाजसेवी प्रदीप यादव को गालियां देते हुए धमका रहा है कि उसके लाख मना करने पर भी वे अखिलेश यादव की गोद में जा बैठे हैं, तो समझ लें कि अखिलेश भी उन्हें नहीं बचा पाएंगे और वह उन्हें मिट्टी में मिला देगा.
ज्ञातव्य है कि इससे पहले सपा ने चुनाव आयोग से इस विधानसभा क्षेत्र के तीनों थाना इंचार्जों के खिलाफ मनमानी की शिकायतें कर उन्हें हटाने की मांग की थी, मगर आयोग ने उसे नहीं माना था.
वीडियो में कोई दादा रामबहोर पांडेय कई बार कहते दिखते हैं कि उन्होंने अकेले छ: वोट डाले हैं, क्योंकि ‘साहब बहुत अच्छे थे.’ इतने अच्छे कि उन्हें ऐसा करने से मना नहीं किया.
इंदुभूषण पांडेय आगे बताते हैं कि इसके बावजूद कि मिल्कीपुर के ज्यादातर मतदान केंद्रों पर लंबी लाइनें नहीं दिखाई दे रही थीं, अभूतपूर्व या रेकार्ड मतदान हुआ तो समझा जा सकता है कि वह कैसे संभव हुआ होगा.
चुनाव आयोग ने मतदान अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर समाजवादी पार्टी द्वारा की गई भेदभाव व पक्षपात की सारी आपत्तियों की ओर से पहले ही आंखें मूंद ली थीं और रही सही कसर पुलिस ने सपा कार्यकर्ताओं पर मुकदमे दर्ज करना शुरू करके भय का वातावरण बनाकर पूरी कर दी थी.
स्वाभाविक ही ‘दूसरा पक्ष’ इसे बहुत खुश और उत्साहित था. उसमें ऐसा उत्साह न ‘वहीं’ राममंदिर के शिलान्यास के वक्त दिखाई दिया था, न बाबरी मस्जिद के ध्वंस के वक्त, न 2022 के विधानसभा चुनाव और न गत लोकसभा चुनाव में.
इस बार क्यों दिखाई दिया? जवाब में वे प्रख्यात शायर राहत इंदौरी के शब्दों में जवाब देते हैं :
जिधर से गुजरो धुंआ बिछा दो, जहां भी पहुंचो धमाल कर दो
तुम्हें सियासत ने हक दिया है, हरी जमीनों को लाल कर दो.
अपील भी तुम, दलील भी तुम, गवाह भी तुम वकील भी तुम
जिसे भी चाहो, हराम कर दो, जिसे भी चाहो, हलाल कर दो.
मतलब? जिन मतदाताओं को चाहो, किसी न किसी बहाने मतदान से रोक दो और जिन मतदाताओं से चाहो, छः छः वोट दिला दो.
बेचारी सपा!
बहरहाल, इस पक्ष ने इस ‘सुविधा’ का भी लाभ उठाया कि सपा ने भी अपनी बारी पर यानी अपने सत्ता काल में ऐसे मामलों में कोई उच्च नैतिक मानदंड स्थापित नहीं किए थे. इस कारण न वह पहचान के नाम पर अल्पसंख्यक महिला मतदाताओं के बुर्के उठाकर अपमानित करने, न सपा समर्थकों को मतदान से रोकने और न भाजपा के पक्ष में फर्जी मतदान कराने की शिकायतों की बिना पर मतदाताओं में कोई नैतिक आलोड़न पैदा कर पाई. वह ऐसा कर पाती और आम मतदाता अपने मताधिकार के इस्तेमाल के पक्ष और मतदान में धांधली के विरुद्ध उठ खड़े होते तो नतीजा कुछ और हो सकता था.
लेकिन आलोड़न पैदा करने में नाकाम सपा को चुनाव आयोग को कायर और मरा हुआ करार देकर उसके लिए ‘सफेद कपड़ा’ प्रदर्शित करके रह जाना पड़ा. अलबत्ता, वाराणसी में उसकी लोहिया वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने चुनाव आयोग का पिंडदान भी कर डाला और उसके नेता आईपी सिंह ने एक्स पर भाजपा की जीत के ‘खास नायकों’ में दर्जन भर से ज्यादा मंत्रियों, 40 से अधिक विधायकों के साथ अयोध्या के कमिश्नर, जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, मिल्कीपुर के पुलिस क्षेत्राधिकारी, तीनों थाना इंचार्जों और ‘बूथ लुटेरों’ धर्मेंद्र सिंह, पूर्व विधायक खब्बू, जिला पंचायत अध्यक्ष रोली सिंह के पति और योगी के दुलारे डॉ रजनीश सिंह के नाम गिनाए. साथ ही चेताया कि ‘याद रखना, समय जल्द बदलेगा.’
ज्ञातव्य है कि इस उपचुनाव से पहले एक पत्रकार सम्मेलन में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से पूछा गया कि अगर मिल्कीपुर में भी मतदाताओं को गन प्वाइंट पर रोका गया तो वे क्या करेंगे, तो उन्होंने कहा था कि यह बड़ा प्रश्न है और वे अपने कार्यकर्ताओं से कहेंगे कि उस वक्त वे जो कुछ भी जरूरी समझें, करें. लेकिन अंततः फिर पार्टी की बेचारगी ही सामने आई.
दूसरी ओर समाजवादी जनता पार्टी (चंद्रशेखर) के प्रदेश अध्यक्ष अशोक श्रीवास्तव कहते हैं कि मिल्कीपुर में मतदान की शुचिता से जो खेल हुआ, उसमें कुछ भी नया नहीं है और वह विधानसभा के पिछले उपचुनावों में नजर आई सरकारी पार्टी और चुनाव आयोग की मिलीभगत की पुनरावृत्ति भर है.
श्रीवास्तव कहते हैं कि अभी यह पुनरावृत्ति भाजपा को बहुत रास आ रही है, लेकिन उसे समझना चाहिए कि गत लोकसभा चुनाव में उसे समाजवादी पार्टी ने नहीं, जनता ने हराया था और फैजाबाद ही नहीं प्रदेश की आधी से ज्यादा सीटों पर हराया था. समाजवादी पार्टी तो जनता द्वारा अपनी नाराज़गी प्रकट करने का माध्यम भर थी.
ऐसे में जनता से जनादेश का बदला लेने के लिए भाजपा अपने सत्ताबल के बूते जनादेश के अपहरण पर ही तुली रही तो इसका नतीजा खुद उसके लिए भी शुभ नहीं ही होने वाला.
शुभ सिद्ध होगी हार!
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सूर्यकांत पांडेय के पास इस सबका एक और ही अनूठा विश्लेषण है. वे कहते हैं कि मिल्कीपुर में सपा की हार प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों में विपक्ष की संभावनाओं के लिहाज से बहुत शुभ सिद्ध होगी. कहीं भाजपा यह उपचुनाव हार जाती और उसके चलते योगी आदित्यनाथ हटा दिए जाते तो उनसे जुड़ी वह ऐंटीइन्कंबैंसी, जो दिल्ली के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध दर्ज हुई ऐंटीइन्कंबैंसी से कहीं ज्यादा ही है, खत्म हो जाती और भाजपा नए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में नए सब्जबाग दिखा कर अपनी संभावनाएं उजली कर फिर सत्ता पा लेती. पांडेय के अनुसार विपक्ष को खुश होना चाहिए कि अब भाजपा ऐसा नहीं कर सकेगी.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)