दिल्ली चुनाव परिणाम: हिंदुत्व की पिच पर फिसली ‘आप’

दिल्ली में 27 साल बाद भाजपा की सत्ता में वापसी हो रही है. आम आदमी पार्टी हिंदुत्व की पिच पर भाजपा का मुकाबला करने में नाकाम रही. अरविंद केजरीवाल की सनातन सेवा समिति और पुजारी-ग्रंथी योजना भी चुनावी हार नहीं रोक सकीं.

(फोटो: फेसबुक/अरविंद केजरीवाल)

नई दिल्ली: हिंदुत्व के पिच पर खेलने की कोशिश में आम आदमी पार्टी (आप) फिसल गई है. 27 साल बाद भाजपा सत्ता में वापसी कर रही है. अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज और सत्येंद्र जैन जैसे दिग्गजों को मुंह की खानी पड़ी है.

कुल 70 विधानसभा सीटों में से 48 पर भाजपा और 22 पर आप को जीत मिली है. जिन 22 सीटों पर जीत मिली है, उनमें से 14 दलित-मुस्लिम बाहुल्य सीटें हैं. आप ने दलित समुदाय के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित कुल 12 सीटों में से आठ पर जीत दर्ज की है. सात मुस्लिम बाहुल्य सीटें हैं- बाबरपुर, बल्लीमारान, चांदनी चौक, मटिया महल, मुस्तफाबाद, ओखला और सीलमपुर. आप ने मुस्तफाबाद के अलावा शेष सभी सीटों पर जीत दर्ज की है.

आप को सीटें भले ही दलित-मुस्लिम इलाकों से मिली हो लेकिन चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी का फोकस ख़ुद को भाजपा से अधिक हिंदू दिखाने का था.

चुनाव परिणाम से ठीक एक महीने पहले आठ जनवरी को दिल्ली में आप ने धूमधाम से अपनी ‘सनातन सेवा समिति’ के पदाधिकारियों की घोषणा की थी. इस समिति का उद्देश्य सनातन धर्म के प्रति समर्पित पुजारियों और संतों को मंच प्रदान करना है.

इस चुनाव में केजरीवाल की पहली घोषणा मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को हर महीने 18,000 रुपये देने की थी. जबकि दिल्ली में बौद्ध मठ, रविदास मंदिर, वाल्मीकि मंदिर और कबीर मंदिर भी हैं, जिससे बड़ी संख्या दलित जुड़े हुए हैं, लेकिन आप ने उनके संचालकों के लिए इस तरह की किसी योजना की घोषणा नहीं की. केजरीवाल जिस डॉ. आंबेडकर की बार-बार दुहाई देते हैं, उन्होंने ख़ुद बौद्ध धर्म अपना लिया था.

चुनाव प्रचार के दौरान भी केजरीवाल ने खूब मंदिर-मंदिर गए, ख़ासकर हनुमान मंदिरों में, वह भाजपा की ‘राम भक्त’ वाली छवि के बरक्स अपनी ‘कट्टर हनुमान भक्त’ की छवि गढ़ना चाहते हैं. हालांकि, ऐसा करते हुए वह शायद भूल जाते हैं कि भाजपा की नींव में ‘राम मंदिर आंदोलन’ का पत्थर है, जबकि उन्होंने धर्म और राजनीति का घालमेल ताज़ा-ताज़ा शुरू किया है.

आप के पिछले कुछ वर्षों का इतिहास देखें तो पार्टी अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए खड़ी नज़र नहीं आती है. भाजपा द्वारा फैलाए जा रहे संकीर्णतावाद को रोकने के बजाए आप उसे ओर और हवा देती है, जैसे- रोहिंग्या मुसलमानों और बांग्लादेशी मुसलमानों का मामला. 

साल 2022 में आतिशी ने जहांगीरपुरी में हुई तोड़फोड़ के बाद शहर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा को रोहिंग्या और बांग्लादेशी शरणार्थियों से जोड़ते हुए कहा था, ‘भाजपा नेताओं ने पूरे भारत में बांग्लादेशी और रोहिंग्या बस्तियां बसाई, ताकि उन्हें दंगों और हिंसा के लिए मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके.’

आप सरकार ने ही दिल्ली की सरकारी स्कूलों से ‘बांग्लादेशी प्रवासियों’ के बच्चों को बाहर करने का फैसला किया था. दिल्ली में हुई बुलडोजर की कार्रवाइयों पर भी आप ने चुप्पी साध रखी थी. 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने का भी आप ने स्वागत किया था. 

केजरीवाल अयोध्या में उस स्थान पर सरकारी पैसे से लोगों को ‘तीर्थयात्रा’ करवा रहे थे, जहां बाबरी मस्जिद को तोड़कर राम मंदिर का निर्माण किया गया है. वह ख़ुद भी अपने परिवार के सदस्यों और सहयोगी भगवंत मान के साथ दर्शन के लिए राम मंदिर गए थे. 

अयोध्या में जब राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठान का कार्यक्रम चल रहा था, तब अरविंद केजरीवाल ने सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का बड़े पैमाने पर आयोजन कर दिल्ली को ‘राममय’ कर दिया था. जबकि जाहिर तौर पर अधूरे मंदिर को लेकर वह पूरा आयोजन भाजपा अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रही थी.

आप इस चुनाव में ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ के सहारे भाजपा का मुकाबला करना चाहती थी. लेकिन वह भूल रही थी कि जब उसने ‘सनातन सेवा समिति’ के पदाधिकारियों की घोषणा की थी, उससे कई महीने पहले भाजपा का मंदिर प्रकोष्ठ सक्रिय था, और दिल्ली के लगभग 80 प्रतिशत मंदिरों में हर मंगलवार हनुमान चालीसा करवा रहा था. उनका एक प्रकोष्ठ शिव-चर्चा करवा रहा था. भाजपा इस खेल में आप से हमेशा बहुत आगे रही है.  

भाजपा का वैचारिक स्त्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को माना जाता है. चुनाव के दौरान आप के प्रत्याशी संघ के अनुषांगिक संगठन के कार्यक्रम में जाते नजर आए थे. संघ का अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद दिसंबर से ही दिल्ली में बड़े पैमाने पर हथियार बांटने का कार्यक्रम आयोजित कर युवाओं को भाजपा की तरफ मोड़ने का काम कर रहा था. 

ऐसे में हिंदुत्व की पिच पर भाजपा से मुकाबला तो महंगा पड़नी ही था.