किश्तवाड़: कोर्ट ने सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध वाले डीएम के आदेश पर रोक लगाई

बीते 10 फरवरी को किश्तवाड़ जिले के डीएम ने विरोध प्रदर्शन और सार्वजनिक समारोहों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था. अब कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए कहा कि किसी भी विरोध प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध मूल मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

किश्तवाड़ जिले में स्थानीय लोग मुफ्त बिजली की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. (फोटो साभार: X/@AnzerAyoob)

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में जिलाधिकारी (डीएम) द्वारा विरोध प्रदर्शन और सार्वजनिक समारोहों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाए जाने के एक दिन बाद मंगलवार (11 फरवरी) को एक अदालत ने ‘साम्राज्यवादी’ (imperialistic) आदेश को खारिज करते हुए कहा कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन स्वस्थ लोकतंत्र का अभिन्न अंग है.

किश्तवाड़ के मुख्य सत्र न्यायाधीश की अदालत ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 163 को रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री के अभाव में कमजोर आधार पर लागू नहीं किया जा सकता है.

अदालत ने आदेश पर रोक लगाते हुए कहा, ‘पूरे जिले (किश्तवाड़) में (विरोध प्रदर्शनों पर) पूर्ण प्रतिबंध नागरिकों की बुनियादी मौलिक स्वतंत्रता का हनन है और साम्राज्यवादी रवैये की बू आती है तथा यह तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतर सकता.’

द वायर ने पहले रिपोर्ट किया था, किश्तवाड़ के डीएम आरके शवन ने जिले में दो महीने के लिए सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन और पांच या उससे अधिक लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसमें कहा गया था कि ‘किसी भी अप्रिय घटना के घटित होने की उचित आशंका है, जो सार्वजनिक अशांति और सार्वजनिक शांति और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए आसन्न खतरा बन सकती है.’

हालांकि, अदालत ने फैसला सुनाया कि ऐसी कोई आपातकालीन स्थिति नहीं थी जिसके लिए धारा 163 बीएनएसएस के तहत प्रतिबंध लगाने जैसे कड़े उपाय करने की आवश्यकता हो.

धारा 163 जिला मजिस्ट्रेट, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट को सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार देती है, जब ‘मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरा या सार्वजनिक शांति में बाधा, दंगा या मारपीट के पर्याप्त आधार हों. बीएनएसएस की धारा 223, लोक सेवकों के विरुद्ध शिकायतों सहित शिकायतों की जांच करने और उन पर कार्रवाई करने के लिए मजिस्ट्रेट की शक्तियों से संबंधित है.

किश्तवाड़ में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन

मुख्य सत्र न्यायाधीश मंजीत सिंह मन्हास की अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा, डीएम के आदेश में बड़ी शरारत को रोकने के लिए कारण की पुष्टि की जानी चाहिए.’ साथ ही, शवन को प्रतिबंध लगाने के कारणों का रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, अदालत जिसकी जांच 18 फरवरी को करेगी.

अदालत का यह आदेश कुछ लोगों द्वारा मुफ्त बिजली की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन की पृष्ठभूमि में आया है, जो पिछले महीने से चेनाब घाटी के किश्तवाड़ जिले में जोर पकड़ने लगा है.

सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस, विपक्षी भारतीय जनता पार्टी और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के राजनीतिक नेताओं, नागरिक समाज के सदस्यों और धार्मिक हस्तियों सहित सैकड़ों लोग पिछले तीन सप्ताह से हर रविवार को मुफ्त बिजली की मांग को लेकर किश्तवाड़ में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

मुफ्त बिजली के लिए आंदोलन शुरू करने वाले वसीम अकरम भट ने मंगलवार (11 फरवरी) को बीएनएसएस की धारा 438 के तहत आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर कर अपने वकील सफदर अली शौकत के माध्यम से डीएम के आदेश को चुनौती दी.

यह धारा उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय को किसी निचली अदालत द्वारा दर्ज या पारित किसी निष्कर्ष, सजा या आदेश की शुचिता, वैधानिकता या औचित्य के बारे में स्वयं को संतुष्ट करने के लिए अभिलेखों की समीक्षा करने का अधिकार देती है.

भट की ओर से पेश वकील शौकत ने तर्क दिया कि किश्तवाड़ के स्थानीय निवासी मुफ्त बिजली की मांग को लेकर शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और डीएम का आदेश ‘शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने के वैध और संवैधानिक अधिकार को दबाने’ का एक प्रयास है.

वकील ने तर्क दिया कि विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध बिना किसी जांच या ‘भौतिक तथ्यों’ के यांत्रिक और औपचारिक तरीके से लगाया गया है, और धारा 163 बीएनएसएस को लागू करने की तत्परता का खुलासा नहीं किया है, जिसका इस्तेमाल राय या शिकायत की वैध अभिव्यक्ति या किसी भी लोकतांत्रिक अधिकार के प्रयोग को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता है.

वकील ने अपनी याचिका में तर्क दिया, ‘आज तक कोई आकस्मिक स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है और प्रतिवादी (डीएम) की ओर से आपत्तिजनक आदेश पारित करना दुर्भावना के समान है.’

अदालत ने फैसला सुनाया कि जिला मजिस्ट्रेट को प्रतिबंधों का कारण बताना होगा और विशिष्ट जानकारी या सामग्री उपलब्ध करानी होगी… (जिससे) वह संतुष्ट हो सके कि स्थिति चिंताजनक है और सार्वजनिक शांति और सौहार्द के हित में इन प्रावधानों को तुरंत लागू करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है.

किश्तवाड़ की अदालत ने कहा, ‘किसी भी विरोध प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध मूल मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है क्योंकि नागरिकों को विरोध प्रदर्शन के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीके से अपनी शिकायतों को उजागर करने का पूरा अधिकार है जो स्वस्थ लोकतंत्र का अभिन्न अंग है.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)