नई दिल्ली: सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों से पहले मुफ्त उपहारों/सौगातों (फ्रीबीज़) की घोषणा पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा घोषित ‘फ्रीबीज़ परजीवियों का एक वर्ग’ तैयार कर रहे हैं और मुफ्त राशन और पैसा देकर लोगों को काम करने से हतोत्साहित कर रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने बेघर लोगों के लिए आश्रय गृहों के संबंध में ईआर कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ‘राष्ट्र के विकास में योगदान देकर उन्हें मुख्यधारा के समाज का हिस्सा बनाने के बजाय क्या हम परजीवी वर्ग का निर्माण नहीं कर रहे हैं.’
याचिकाकर्ता और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि नीतियां केवल अमीरों के लिए बनाई गई हैं, गरीबों के लिए नहीं. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में शहरी आश्रय योजना के लिए धन देना बंद कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य और केंद्र शासित प्रदेश कह रहे हैं कि उनके पास धन नहीं है और वे आश्रय प्रदान नहीं कर सकते. इसका अर्थ यह है कि बेघर लोग सड़कों पर तड़प रहे हैं.
स्थिति की गंभीरता पर जोर देते हुए उन्होंने बताया कि इस सर्दी में ठंड के कारण 750 से अधिक बेघर लोगों की मौत हो चुकी है.
कुमार ने कहा, ‘मुख्य पीड़ित गरीब लोग, बेघर लोग हैं. दुर्भाग्य से बेघर होने के कारण पर ध्यान नहीं दिया जाता. इस देश में यह सबसे कम प्राथमिकता है. मुझे यह कहते हुए खेद है कि दया केवल अमीरों के लिए है, गरीबों के लिए नहीं.’
हालांकि, जस्टिस गवई ने इस दलील पर आपत्ति जताई और उनसे अदालत में ‘राजनीतिक भाषण’ न देने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा, ‘इस कोर्ट में रामलीला मैदान जैसा भाषण मत दीजिए. कोर्ट में खुद को बहस तक सीमित रखिए. अगर आप किसी के पक्ष में बोल रहे हैं, तो उसे उसी तक सीमित रखिए. बेवजह आरोप मत लगाइए. यहां राजनीतिक भाषण मत दीजिए. हम अपने कोर्ट हॉल को राजनीतिक मंच में तब्दील नहीं होने देंगे.’
अधिवक्ता भूषण ने यह स्पष्ट करने की मांग की कि याचिकाकर्ता क्षेत्र के सौंदर्यीकरण के लिए आश्रय स्थलों को हटाने का मुद्दा उठा रहा है. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि आश्रय स्थल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं.
इस पर जस्टिस गवई ने कहा, ‘दुर्भाग्य से इन मुफ्त सुविधाओं की वजह से, जिनकी घोषणा चुनाव से ठीक पहले की जाती है- कुछ लाडली बहन, कुछ अन्य योजनाएं – लोग काम करने को तैयार नहीं हैं. उन्हें मुफ्त राशन मिल रहा है, उन्हें बिना काम किए ही राशि मिल रही है. उन्हें क्यों मिलना चाहिए? क्या उन्हें मुख्यधारा के समाज का हिस्सा बनाना बेहतर नहीं होगा? उन्हें देश के विकास में योगदान करने की अनुमति दी जानी चाहिए.’
भूषण ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि अगर उनके पास नौकरी होगी तो वे मुख्यधारा के समाज का हिस्सा होंगे. उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि आश्रय चाहने वाले लोग आमतौर पर छोटे-मोटे काम करते हैं और रात बिताने के लिए आश्रय का खर्च नहीं उठा सकते. उन्होंने कहा, ‘इस देश में शायद ही कोई ऐसा होगा जो काम मिलने पर काम नहीं करना चाहेगा.’ उन्होंने आगे कहा कि लोग शहरों की ओर इसलिए आते हैं क्योंकि उनके गांवों में काम नहीं है.
जस्टिस गवई ने इसे ‘एकतरफा जानकारी’ बताते हुए खारिज कर दिया और अपना निजी अनुभव बताया. उन्होंने कहा, ‘मैं एक किसान परिवार से आता हूं. महाराष्ट्र में चुनाव से पहले घोषित मुफ्त सुविधाओं की वजह से किसानों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं. हर किसी को घर पर मुफ्त (राशन) मिल रहा है.’
यह पहली बार नहीं है जब जस्टिस गवई ने अदालत में मुफ्त सुविधाओं की बहस छेड़ी हो. बीते 7 जनवरी को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और पेंशन के भुगतान पर एक मामले की सुनवाई करते हुए उन्होंने कहा था, ‘राज्यों के पास उन लोगों के लिए सारा पैसा है जो कोई काम नहीं करते… चुनाव आते ही आप लाडली बहना और अन्य नई योजनाओं की घोषणा करते हैं, जिसमें आपको निश्चित राशि का भुगतान करना होता है. दिल्ली में अब किसी न किसी पार्टी की ओर से घोषणाएं आ रही हैं कि अगर वे सत्ता में आए तो 2,500 रुपये देंगे.’
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट भी ‘फ्रीबीज़’ के मुद्दे से जुड़ी याचिकाओं से घिरा हुआ है. 2022 में शीर्ष अदालत ने राजनीतिक दलों द्वारा ‘फ्रीबीज़’ देने के वादे करने की प्रथा से संबंधित याचिकाओं को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था. यह भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका के जवाब में था, जिसमें चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार के दौरान मुफ़्त उपहार देने का वादा करने की अनुमति न देने के निर्देश देने की भी मांग की गई थी.
इस बीच, पीठ ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी से आश्रयों के बारे में याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत सभी आंकड़ों को सत्यापित करने के लिए कहा है.
एजी ने कहा कि सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन पर नए मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, जिसमें आश्रयों के प्रावधान सहित गरीबी से संबंधित कई मुद्दों को संबोधित किया जाएगा.