तेलंगाना जाति सर्वे: विपक्ष का आरोप, सरकार ने अतिपिछड़ा वर्ग की आबादी को जानबूझकर कम दिखाया

हाल में जारी तेलंगाना जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों में राज्य की अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 46.25% है. हालांकि, तेलंगाना सरकार द्वारा पूर्व में किए समग्र कुटुंब सर्वेक्षण में अति पिछड़ा आबादी 52% थी. ऐसे में आलोचक सरकार पर जानबूझकर अति पिछड़ा आबादी कम दिखाने का आरोप लगा रहे हैं.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने जातीय सर्वेक्षण के चुनिंदा अंशों को 4 फरवरी को राज्य की विधानसभा में पेश किया (फोटो: फेसबुक)

नई दिल्ली: तेलंगाना सरकार द्वारा राज्य भर में हुई जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने के बाद कई विवाद उठ खड़े हुए हैं. विपक्षी दल इन आंकड़ों पर प्रश्न कर रहे हैं, जबकि इसके पक्षधर इसे सामाजिक सुधार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बता रहे हैं.

आलोचक सरकार पर यह भी आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने जानबूझकर पिछड़ी जातियों की संख्या को कम दिखाया है. ताजा सर्वेक्षण के अनुसार पिछड़े वर्ग की आबादी कुल आबादी का 56.33% है, जिसके अंतर्गत मुसलमान पिछड़ी जातियों की संख्या 10.08% है.

कैबिनेट की मंजूरी के बाद इस सर्वेक्षण के चुनिंदा अंशों को 4 फरवरी को राज्य विधानसभा में पेश किया गया था.

तेलंगाना सरकार ने जाति सर्वेक्षण कराने का निर्णय ठीक एक साल पहले, पिछले साल 4 फरवरी को लिया था. इस निर्णय को 16 फरवरी, 2024 को राज्य विधानसभा की सहमति प्राप्त हुई. 19 अक्टूबर, 2024 को सर्वेक्षण की निगरानी के लिए एक कैबिनेट उप-समिति का गठन किया गया, उत्तम कुमार रेड्डी को इस समिति की अध्यक्षता सौंपी गई. सर्वेक्षण के लिए तेलंगाना सरकार के योजना विभाग को नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया था.

नवंबर 2024 से तेलंगाना के 3.54 करोड़ नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, रोजगार, राजनीतिक और जातीय स्थिति का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण किया गया. सर्वेक्षण को 94,261 मतगणना कर्मियों ने अंजाम दिया. प्रत्येक को लगभग 150 घर सौंपे गए थे. 50 दिनों तक चले इस सर्वे में 57 प्रश्नों वाले एक फॉर्म के तहत घर-घर जाकर जानकारी एकत्र की. जो लोग अपनी जाति और धर्म सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे, उनके लिए भी सर्वेक्षण में श्रेणियां बनाई गई थी.

सरकार के अनुसार, पहले सर्वेक्षण में 96.9 प्रतिशत परिवारों ने हिस्सा लिया था, जिनमें से कइयों ने अपनी जाति का विवरण देने से इनकार कर दिया था. आगामी 16 से 28 फरवरी के बीच बचे हुए 3.1 फीसदी परिवारों का सर्वेक्षण किया जाएगा.

इस महीने की 4 तारीख़ को मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने विधानसभा में इस जनगणना के प्रमुख निष्कर्षों की घोषणा की, जिसके अनुसार राज्य में विभिन्न जाति वर्गों की आबादी इस प्रकार है:

आंकड़ों में पिछड़ी जाति की आबादी 56.33% है, जिसमे पिछड़ी जाति के मुसलमान की संख्या 10.08% है.

इन आंकड़ों को पेश करते हुए मुख्यमंत्री रेड्डी ने कहा, ‘राहुल गांधी जी के इस दृष्टिकोण और सिद्धांत से प्रेरित होकर कि सामाजिक न्याय की मांग है कि संसाधनों का आवंटन उनकी जनसंख्या प्रतिशत के अनुपात में होना चाहिए, हमने पूरे देश के लिए एक आदर्श स्थापित किया है.’ उन्होंने उस दिन को ‘इतिहास में लाल अक्षर वाला दिन’ घोषित कर दिया.

विपक्ष के सवाल 

जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद पिछड़ी जातियों की संख्या में गिरावट को लेकर विपक्षी पार्टियां इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रही है.

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सर्वेक्षण की पद्धति और निष्कर्षों की तीखी आलोचना की है. बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को पत्र लिखकर सर्वेक्षण में जानबूझकर अति पिछड़ा आबादी को कम दिखाने का आरोप लगाया.

वहीं, भाजपा विधायक पायल शंकर ने कहा कि कांग्रेस गैरमुसलमान पिछड़ी जातियों का हक छीनकर मुसलमान पिछड़ी जातियों को देना चाहती है.

क्या कहते हैं आंकड़े

इन आंकड़ों के अनुसार राज्य में अति पिछड़ा वर्ग अब आबादी का 46.25% है. हालांकि, पूर्व में तेलंगाना सरकार द्वारा किए गए समग्र कुटुंब सर्वेक्षण (व्यापक घरेलू सर्वेक्षण या सीएचएस) में अति पिछड़ा आबादी 52% बताई थी.

पिछले एक दशक में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी में वृद्धि दर्ज की गई है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जाति की जनसंख्या 15.45% थी, जो अब लगभग 2% की वृद्धि के साथ 17.43% हो गई है.

इसी प्रकार, एसटी जनसंख्या 2011 में 9.08% से बढ़कर 10.45% हो गई है. विश्लेषकों का कहना है कि इसी तरह अति पिछड़ा आबादी कि जनसंख्या भी बढ़नी चाहिए थी.

पारदर्शिता का प्रश्न 

इसके पहले बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों में जातिगत जनगणना हो चुकी है. गौरतलब है कि बिहार और कर्नाटक की तरह तेलंगाना सरकार ने भी जातिगत जनगणना के संपूर्ण आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया है.

मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने व्यक्तिगत आंकड़ों की गोपनीयता का हवाला देते हुए सिर्फ़ प्रमुख निष्कर्षों का सारांश सार्वजनिक किया है. इन आंकड़ों के आधार पर मुख्यमंत्री ने भविष्य में शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण बढ़ाने का संकेत भी दिया है.

इसी बीच राज्य के उपमुख्यमंत्री भटी विक्रमार्का ने कहा है कि मार्च महीने में होने वाले विधानसभा के बजट सत्र के दौरान एक बिल पेश किया जाएगा, जिसमें अति पिछड़ी जातियों के लिए स्थानीय निकाय चुनावों में 42% आरक्षण का प्रावधान होगा.

आंकड़े सार्वजनिक न करने के सरकार के फ़ैसले ने पारदर्शिता का प्रश्न खड़ा कर दिया है.

विधानसभा सत्र के दौरान सीएम रेड्डी ने कहा कि सर्वेक्षण का चौथा खंड, जिसमें व्यक्तिगत स्तर का आंकड़ा शामिल है, उसे डेटा गोपनीयता प्रतिबंधों के कारण जारी नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि सरकार नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक न करने के लिए प्रतिबद्ध है.

विपक्षी पार्टियां संपूर्ण आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग पर अड़ी है.

क्यों अहम है तेलंगाना में जातिगत जनगणना ?

पिछड़े वर्ग एवं अन्य वंचित समूहों द्वारा लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग की जा रही है, ताकि आरक्षण नीतियों और कल्याणकारी योजनाओं में असमानताओं को दूर किया जा सके और किसी भी जाति वर्ग को उसकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का लाभ मिल सके.

तेलंगाना कांग्रेस शासित प्रदेश है, इसलिए यह जातिगत जनगणना और भी अहम हो जाता है. किसी भी कांग्रेस शासित प्रदेश में यह पहला जातिगत जनगणना है. यह मुद्दा कांग्रेस के 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान का अहम हिस्सा था. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने वादा किया था कि अगर केंद्र में कांग्रेस की सरकार आती है तो वह पूरे देश में जातिगत जनगणना कराएगी.

इससे पहले कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने सात साल पहले जाति सर्वेक्षण कराया था. इस कार्यकाल में भी कांग्रेस के सत्ता में आए लगभग दो साल हो चुके हैं. लेकिन अभी तक उस सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश नहीं की है.

जातिगत जनगणना के मध्यम से कांग्रेस ओबीसी समाज का वोट अपनी और साधने की कोशिश कर सकती है. ओबीसी समाज का एक बड़ा हिस्सा भाजपा को वोट करता है.

जातिगत जनगणना का इतिहास 

भारत में आखिरी बार साल 1931 में जाति आधारित जनगणना की गई थी. उसके बाद से केवल एससी और एसटी समुदायों की ही जातिगत जनगणना की गई है. वर्ष 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना में जातिगत आंकड़ों को एकत्र किया गया था, लेकिन इन आंकड़ों को जारी नहीं किया गया.

कुछ बरस पहले बिहार सरकार ने राज्य की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनसांख्यिकी पर विस्तृत आंकड़ा इकट्ठा करने के लिए जाति-आधारित सर्वेक्षण किया था, जिसके परिणाम का सारांश 2 अक्टूबर 2023 को सार्वजनिक किया था.

आंकड़ों के मुताबिक़, राज्य में पिछड़ी जाति की आबादी तक़रीबन 63% थी. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की आबादी क्रमशः 19.65% और 1.68% थी. सामान्य जातियों की आबादी 15.52% दर्ज की गई थी.

जाति-आधारित सर्वेक्षण के आंकड़ों के जारी होने के बाद बिहार सरकार शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण बढ़ाने के लिए नवंबर 2023 में दो संशोधन कानून लेकर आई. इसके तहत कुल आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% करने का प्रस्ताव था, साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण के प्रावधान को बरकरार रखा गया था. लेकिन 20 जून, 2024 को पटना हाईकोर्ट ने इन संशोधनों को यह कह कर खारिज कर दिया था कि यह आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित 50% सीमा का उल्लंघन है.