चेन्नई: मंदिर-दरगाह विवाद को लेकर दक्षिणपंथी संगठन की रैली निकालने की याचिका खारिज़

दक्षिणपंथी संगठन भारत हिंदू मुन्नानी ने मदुरै के बाहरी इलाके में स्थित थिरुप्परनकुंड्रम पहाड़ी से जुड़े विवाद को लेकर 18 फरवरी को चेन्नई में जुलूस निकालने की अनुमति मांगी थी. मद्रास हाईकोर्ट ने याचिका ख़ारिज करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह शांति-सद्भाव बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाए.

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तमिलनाडु के मदुरै शहर के बाहरी इलाके में स्थित तीर्थ नगरी थिरुप्परनकुंड्रम की शांति और सद्भाव में किसी भी तरह की बाधा को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं. यहां हिंदू, मुस्लिम और जैन पीढ़ियों से एक साथ पूजा करते आ रहे हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जीके इलांथिरयन ने याचिकाकर्ता एस. युवराज, जो कि दक्षिणपंथी संगठन भारत हिंदू मुन्नानी के सदस्य हैं, द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.

युवराज ने थिरुपरनकुंड्रम पहाड़ी से जुड़े विवाद को लेकर 18 फरवरी को चेन्नई में जुलूस निकालने की अनुमति मांगी थी. थिरुपरनकुंड्रम में तनाव की स्थिति है, जहां पहाड़ी पर मंदिर और दरगाह दोनों हैं. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोग इस जगह का नाम बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

याचिकाकर्ता ने रासप्पा स्ट्रीट, नैनियप्पा स्ट्रीट, पेथु स्ट्रीट और थंगा सलाई का उपयोग करते हुए एगंबरेश्वर मंदिर से श्री मुथुकुमारस्वामी मंदिर तक भाला लेकर जुलूस निकालने की अनुमति मांगी. जुलूस का उद्देश्य थिरुप्पारनकुंड्रम हिल का नाम बदलकर उसका दूसरा नाम ‘श्री कंदार हिल’ रखकर ‘सिकंदर हिल’ करने के कथित प्रयासों की निंदा करना था.

अपने निर्देश में जस्टिस जीके ने विविधता में एकता के महत्व की पुष्टि की और कहा कि थिरुप्पराकुंड्रम जैसे स्थानों में विभिन्न समुदायों का सह-अस्तित्व हमारे राष्ट्र की ताकत का प्रमाण है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इलाके में सभी समुदायों और धर्मों के बीच सौहार्द को बनाए रखने में राज्य सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है, जबकि संगठित रूप से इसे बाधित करने की कोशिश की जा रही है.

न्यायाधीश ने राज्य के सरकारी वकील हसन मोहम्मद जिन्ना द्वारा उठाई गई चिंताओं को स्वीकार किया कि दरगाह को लेकर अचानक उठे विवाद के कारण चेन्नई में जुलूस निकालने की अनुमति देने से अनावश्यक सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है.

न्यायाधीश ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे. न्यायाधीश ने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी शांति और सद्भाव बनाए रखना है और उसे ऐसी किसी भी कार्रवाई की अनुमति नहीं देनी चाहिए जो इस संतुलन को बिगाड़ सकती हो.

सरकारी वकील ने जुलूस के लिए अनुमति देने का कड़ा विरोध किया और बताया कि प्रस्तावित मार्ग एक व्यस्त व्यावसायिक क्षेत्र से होकर गुजरता है, जहां विभिन्न समुदायों के लोगों द्वारा दुकानें चलाई जाती हैं, जिससे सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होने की संभावना है.

जब जज ने पूछा कि क्या वह किसी वैकल्पिक मार्ग पर विचार करेंगे तो याचिकाकर्ता ने मना कर दिया.

वकील जिन्ना ने यह भी कहा कि जुलूस को किसी भी मार्ग पर जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि इससे केवल एक ऐसा मुद्दा फिर से सुलगेगा जिसे न्यायिक और कार्यकारी अधिकारी पहले ही सुलझा चुके हैं.