नई दिल्ली: ‘मेरे छोटे भाई की 12 साल की बेटी का कपड़ा उतर गया था, बहुत मुश्किल से उसे लोगों के नीचे से खींचकर निकाला’ यह बताते हुए संजय के चेहरे पर शर्म, ग्लानि और भय के मिश्रित भाव तैर जाते हैं. वह आंखें भींच लेते हैं, फिर अपनी टूटती आवाज़ को समेटने की नाकाम कोशिश करते हुए कहते हैं, ‘बहुत भीड़ थी, बहुत…’
15 फरवरी की रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में अपनी 37 वर्षीय बहन पिंकी देवी को खोने वाले संजय का मानना है कि ‘वहां भगदड़ नहीं हुई थी. बस भीड़ को संभाला नहीं गया.’
वह कहते हैं, ‘ये सब शासन-प्रशासन की लापरवाही से हुआ. अगर पुलिस वाले भीड़ संभालने के लिए खड़े होते तो ऐसा नहीं होता. लोग पुलिस को देखकर आराम से चलते हैं. वहां कोई पुलिस नहीं थी और लोग एक दूसरे को धक्का देते हुआ आगे बढ़ रहे थे.’
संजय पूछते हैं, ‘क्या रेलवे वालों को सीसीटीवी कैमरे में नहीं लोगों की बढ़ती भीड़ नहीं दिख रहा ही? उन्हें तो सब पता होता है. फिर भीड़ संभालने के लिए कुछ किया क्यों नहीं गया?’
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घर के हर कोने से उठती चीख-पुकार
मूलरूप से बिहार के गया निवासी संजय अपने परिवार के साथ दक्षिणी दिल्ली के सघन आबादी वाले संगम विहार में रहते हैं. संजय के माता-पिता, भाई और बहन का परिवार भी आस-पास ही बसा हुआ है. अब न सिर्फ संजय के घर से बल्कि पास के अन्य घरों से भी चीख-पुकार की आवाज़ आ रही है. एक चुप होता है तो दूसरा रो पड़ता है.
‘दादी तो सुबह से दस बार बेहोश हो चुकी है’ संजय की बेटी रोते हुए कहती हैं.
पिंकी के बुजुर्ग पिता सभी महिलाओं को बार-बार चुप रहने की समझाइश दे रहे हैं, लेकिन ख़ुद के आंसू उनकी काबू में नहीं आ पा रहे. ‘हम चार भाई थे, किसी से कोई मदद नहीं ली थी, अकेले सब किया था.’ पिंकी की शादी के समय को याद करते हुए पिता कहते हैं.
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15 फरवरी की शाम साढ़े छह बजे इस परिवार के 12 सदस्य नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए निकले थे. सभी को प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में पहुंचना था. करीब आठ बजे सभी रेलवे स्टेशन पहुंचे. प्लेटफॉर्म नंबर 14 पर रात 10:10 में ट्रेन आने वाली थी. ‘फुटओवर ब्रिज के रास्ते प्लेटफॉर्म पर पहुंचने के लिए हम सीढियों से उतर ही रहा था कि अचानक लोग एक दूसरे पर गिरने लगे.’ संजय याद करते हैं.
‘चारों तरफ लाशें पड़ी थीं’
संजय ने बताया कि स्टेशन पर भीड़ देखकर वे लोग लौटने का मन बना रहे थे. लेकिन पीछे से आ रहे लोगों के धक्के से यह मुमकिन नहीं हो पाया और वे भीड़ का हिस्सा बन गए.
‘हम लोग सीढ़ी पर फंसे हुए थे. यह क़रीब साढ़े आठ की बात है. लोग पीछे से धक्का दे रहे थे. तभी कोई आगे गिरा और उसके बाद लोग एक-दूसरे पर गिरते चले गए. इंसान-इंसान को रौंदकर निकल रहा था.’ संजय कहते हैं.
दर्द के कराह रही संजय की पत्नी सीमा तेज-तेज सांसों की बीच आवाज़ समेटते हुए कहती हैं, ‘मेरे ऊपर से न जाने कितने लोग गुजरे.’ सीमा अपने शरीर के अंदरूनी चोटों की तरफ इशारा करते हुए कहती, ‘सब बहुत दुख रहा है.’
संजय ने बताया कि उनके परिवार के कई सदस्य दबे हुए थे. लेकिन पिंकी देवी के अलावा सब जल्द ही मिल गए, ‘मेरी बहन आधे घंटे बाद सीढ़ियों पर ही मिली. हम सब कई मिनट तक बारी-बारी से सीपीआर देते रहे. लेकिन जान नहीं आई.’
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परिवार के मुताबिक़, काफी देर बाद तक सीढ़ियों की हालत ऐसी नहीं थी, उससे लौटा जा सके. ‘इधर-उधर लाशें पड़ी थी. कोई देखने वाला नहीं थी. हम लोग प्लेटफॉर्म पर उतरे. वहां से पटरियों को पार करना शुरू किया. बीच में ट्रेन भी खड़ी तो उसका दरवाजा खुलवाकर उसके बीच से निकले. बहुत मुश्किल से प्लेटफॉर्म नंबर-1 पर पहुंचे, वहां से बाहर निकले तो एम्बुलेंस मिली.’ संजय की जुबानी इस संघर्ष से पिंकी देवी के बेसुध शरीर को स्टेशन से निकला गया.
एम्बुलेंस पहले लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल गई, जहां चिकित्सकों ने पिंकी देवी को मृत घोषित कर दिया. उसके बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल भेज दिया गया. परिवार को अब तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट नहीं मिली है.
पिंकी अपने पीछे एक चौदह साल बेटी और ग्यारह साल के बेटे को छोड़ गई हैं. दोनों सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, बेटी नौवीं कक्षा में है और बेटा सातवीं में. पिंकी के पति उपेंद्र शर्मा दिहाड़ी पर कारपेंटर का काम करते हैं. ‘मुझसे कुछ मत पूछिए, मैं कुछ नहीं बता पाऊंगा.’ इतना भर कह उपेंद्र फिर से शून्य में ताकने लगे.
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‘जिंदगी में पहली बार कुंभ जा रहे थे’
संजय ने बताया कि वह जिंदगी में पहली बार कुंभ जा रहे थे, ‘पहले कभी जाने का ऐसा मन नहीं बना था, लेकिन इस बार बच्चे और बाकी सब लोग ज़िद कर रहे थे कि चलते हैं, चलते हैं, अब भीड़ कम हो गई है.’
परिवार के अन्य सदस्यों ने भी बताया कि कुंभ की इतनी चर्चा चल रही थी कि बच्चे जाने की ज़िद करने लगे थे. संजय के माता-पिता कुछ दिन पहले ही कुंभ से लौटे थे.
अब संजय का परिवार अपने फैसले पर पश्चात कर रहा है, ‘हमारा तो घर बिखर गया.’ संजय के मुताबिक, सरकार का कोई प्रतिनिधि अब तक पीड़ित परिवार से मिलने नहीं पहुंचा है.
दूसरी तरफ पुलिस है, जो मीडिया से पीड़ित परिवारों का पता छिपाने में लगी हुई है. 16 फरवरी की दोपहर ऐसे परिवारों का पता पूछने पर संगम विहार पुलिस स्टेशन के अधिकारी अनुप कुमार ने द वायर हिंदी से कहा कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है क्योंकि लाश को घर नहीं ले जाया गया, अस्पताल से सीधे श्मशान घाट ले जाया गया. जबकि संजय ने बताया कि लाश को न केवल घर लाया गया बल्कि संगम विहार थाने की पुलिस भी उनके दरवाजे पर पहुंची थी.
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सरिता विहार की शीला देवी की भी भगदड़ में जान गई है, लेकिन सरिता विहार पुलिस स्टेशन अधिकारी ने भी दावा किया कि उनके पास पीड़ित परिवार का पता नहीं है.