नई दिल्ली: दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया में 13 फरवरी की सुबह गेट नंबर सात के अंदर विरोध प्रदर्शन कर रहे 14 छात्रों को सेंट्रल कैंटीन के सामने सोते समय जगाया गया और विश्वविद्यालय के मुख्य सुरक्षा अधिकारी सैयद अब्दुल रशीद के मार्गदर्शन में संस्थान के सुरक्षा गार्डों द्वारा उन्हें जबरन उठा लिया गया.
इसके बाद इन छात्रों को दिल्ली पुलिस को सौंप दिया गया, जो दूसरे गेट पर पहले से ही मौजूद थी. बाद में इन छात्रों को बिना कोई आधार बताए हिरासत में ले लिया गया और बिना वकीलों तक पहुंच के लगभग 12 घंटे तक दिल्ली के अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में रखा गया.
मालूम हो कि ये 14 छात्र 10 फरवरी को विश्वविद्यालय में सेंट्रल कैंटीन के सामने शुरू हुए धरने का हिस्सा थे. वे चार छात्रों – सौरभ, ज्योति, फ़ुज़ैल शब्बर और निरंजन के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द करने की मांग कर रहे थे. इन चारों छात्रों को 15 दिसंबर, 2019 को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (सीएए-एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस कार्रवाई की पांचवीं वर्षगांठ मनाने के लिए 16 दिसंबर को एक स्मृति दिवस कार्यक्रम आयोजित करने के लिए निशाना बनाया गया था.
एमए प्रथम वर्ष समाजशास्त्र की छात्रा उथारा, उन 14 छात्रों में से एक थीं, जिन्हें पुलिस ने हिरासत में लिया था और बाद में विश्वविद्यालय ने निलंबित कर दिया था.
उन्होंने बताया, ‘गार्ड तीन तरफ से आए, जब मैं सो रही थी. उन्होंने मेरे बालों ने मुझे पकड़ लिया. मेरी नींद खुली तो पुरुष गार्ड मेरी टांग खींच रहे थे, उन्होंने हमें चप्पल तक पहनने नहीं दिया. मुझे एक पुरुष और एक महिला गार्ड द्वारा ले जाया गया. मैं चिल्ला रही थी और उनसे कह रही थी कि कम से कम मुझे अपने कपड़े ठीक करने दो. जितना अधिक मैं विरोध कर रहा थी, वे उतने ही अधिक आक्रामक होते गए.’
विरोध के कारण
ज्ञात हो कि प्रदर्शनकारी छात्रों ने 15 दिसंबर को स्मृति दिवस मनाने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रॉक्टर कार्यालय से अनुमति मांगी थी. लेकिन प्रशासन द्वारा उन्हें अनुमति नहीं दी गई.
इन छात्रों ने अगले दिन (16 दिसंबर) शाम 5.30 बजे कक्षाओं के बाद अपने कार्यक्रम का आयोजन किया. इसकी शुरुआत एक मार्च से हुई, जो सेंट्रल कैंटीन पर शुरू और समाप्त हुई. इसके बाद छात्रों ने भाषण के जरिए 2019 में हुई पुलिस बर्बरता पर प्रकाश डाला और शैक्षणिक संस्थानों पर चल रहे फासीवादी हमले की ओर ध्यान आकर्षित किया. यह कार्यक्रम करीब एक घंटे तक चला.
17 दिसंबर को कार्यक्रम के आयोजकों में से एक हिंदी विभाग के पीएचडी स्कॉलर और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आईसा) के सदस्य सौरभ को प्रॉक्टर कार्यालय से एक कारण बताओ नोटिस मिला, जिसमें कहा गया था कि इस कार्यक्रम का एक दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक एजेंडा था, जो अकादमिक स्थानों को पंगु बना देता है.
हालांकि, सौरभ ने यूनिवर्सिटी प्रशासन के दावों को खारिज किया.
सौरभ ने द वायर को बताया, ‘इस कार्यक्रम में कोई दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक एजेंडा नहीं था. 15 दिसंबर, 2019 को पुलिस की कार्रवाई पूरे विश्वविद्यालय पर एक क्रूर हमला था, हमारा कोई व्यक्तिगत राजनीतिक एजेंडा नहीं था.’
सौरभ ने इसके बाद प्रशासन को 20 दिसंबर को 16 पन्नों का अपना जवाब भेजा, जिसे प्रशासन द्वारा ‘असंतोषजनक’ माना गया.
इसके बाद सौरभ को 3 फरवरी को एक नोटिस मिला, जिसमें बताया गया कि उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक अनुशासनात्मक समिति का गठन किया जाएगा, लेकिन इसके लिए किसी तारीख का कोई उल्लेख नहीं किया गया.
इस संबंध में ज्योति, जो हिंदी विभाग की पीएचडी स्कॉलर और दयार-ए-शौक छात्र चार्टर (डीआईएसएससी) की सदस्य भी हैं ने कहा, ‘अब तक हमें समझ आ गया था कि हमें निष्कासित किया जा रहा है. उन्होंने छात्रों के रूप में हमारे अधिकारों को पूरी तरह से कुचल दिया है.’
10 फरवरी को प्रशासन द्वारा सौरभ के खिलाफ की गई कार्रवाई के विरोध में धरना-प्रदर्शन का आयोजन किया गया था. हालांकि, इससे एक दिन पहले (9 फरवरी) तीन अन्य छात्रों – ज्योति, फ़ुज़ैल और निरंजन को भी अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए नोटिस दे दिया गया. फुजैल कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीटेक प्रथम वर्ष के छात्र हैं और डीआईएसएससी के सदस्य हैं. वहीं निरंजन, चौथे वर्ष के कानून के छात्र हैं और अखिल भारतीय क्रांतिकारी छात्र संगठन (एआईआरएसओ)
ज्योति कहती हैं, ‘अब विरोध करना जरूरी था क्योंकि सभाओं के लिए इन व्यर्थ कारण बताओ नोटिस से कई छात्र प्रभावित हो रहे थे. प्रशासन चाहता है कि हम हर आयोजन के लिए अनुमति लें और जिसे बाद में वे अस्वीकार कर दें. अब परिसर की यही स्थिति है.’
विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार द्वारा 29 अगस्त, 2022 को जारी एक ज्ञापन में कहा गया है, ‘प्रॉक्टर की पूर्व अनुमति के बिना परिसर के किसी भी हिस्से में छात्रों की किसी भी बैठक/सभा की अनुमति नहीं दी जाएगी, ऐसा न करने पर दोषी छात्रों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.’
पिछले साल 29 नवंबर को जारी एक अन्य ज्ञापन में कहा गया कि विश्वविद्यालय परिसर के किसी भी हिस्से में किसी भी संवैधानिक गणमान्य व्यक्ति के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन, धरना, नारे लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
इसके साथ ही कैंपस परिसर में भित्तिचित्र और पोस्टरबाजी करने पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना है.
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एमए समाजशास्त्र के प्रथम वर्ष के छात्र मिश्कत तहरीम को भी विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए हिरासत में लिया गया था और बाद में उन्हें भी निलंबित कर दिया गया.
वे बताते हैं, ‘जब हमने फ़िलिस्तीनी लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता दिवस के दौरान एक अध्ययन मंडल आयोजित करने की अनुमति मांगी, तो प्रशासन ने इससे इनकार कर दिया. हमें पर्चे बांटने का सहारा लेना पड़ा. फिर भी हमें ऐसे फोन आए कि हम ऐसी गतिविधियों में शामिल न हों. परिसर में कुछ भी आयोजित करने की कोई स्वतंत्रता नहीं है.’
छात्र बताते हैं कि संगठित होने और प्रदर्शन करने का अधिकार अनुच्छेद 19 में दी गई छह स्वतंत्रताओं का हिस्सा है. हालांकि, क्रूर राज्य दमन और सैन्यीकरण ने विश्वविद्यालय में छात्रों के इन अधिकारों को कम कर दिया है.
इसके साथ ही कैंपस के अंदर पुलिस की मौजूदगी छात्रों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है.
उथरा कहती हैं, ‘यह पहली बार नहीं है जब पुलिस ने परिसर में प्रवेश किया है. यह 2019 में सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुआ था. इस समय यह बहुत आश्चर्य की बात नहीं है कि पुलिस पहले से ही परिसर के अंदर थी.’
मालूम हो कि अन्य छात्र और मीडिया जब कालकाजी पुलिस स्टेशन पहुंचे तो, उन्हें हिरासत में लिए गए लोगों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई और उन्हें कहां ले जा रहे हैं, इसकी जानकारी भी नहीं दी गई.
सुबह करीब 10 बजे जब कालकाजी स्टेशन के बाहर ज्यादा लोग जमा हो गए तो इन छात्रों को कैंपस में वापस ले जाने के बहाने फतेहपुर बेरी स्टेशन ले जाया गया. उन्हें शाम 4 बजे तक वहीं रखा गया, कई बार अनुरोध करने के बाद भी उन्हें उनके वकीलों से मिलने नहीं दिया गया.
इसके साथ ही छात्रों को उन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया, जिनकी सामग्री वे पढ़ नहीं सकते थे – क्योंकि उन्हें धमकी दी गई थी कि जब तक वे इस पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे, उन्हें रिहा नहीं किया जाएगा.
मिश्कत ने कहा, ‘हमारे माता-पिता को भी हमें उन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करने को कहा गया, उन्हें इसके लिए पुलिस स्टेशन भी बुलाया गया था.’
छात्रों ने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारियों द्वारा उनके साथ अपराधियों की तरह व्यवहार किया गया, शारीरिक और मौखिक रूप से परेशान किया गया.
उदाहरण के लिए बदरपुर पुलिस स्टेशन में हिरासत में ली गई हबीबा को फोन देने का विरोध करने पर एक पुलिस अधिकारी ने कथित तौर पर थप्पड़ मार दिया था.
एक अन्य छात्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि उन्हें इस्लामोफिक अपशब्द कहे गए थे, जैसे कि ‘ये मुसलमान लोग सिर्फ डांगे फसाद करते हैं (ये मुसलमान हर जगह दंगे और झगड़े पैदा करते हैं).’
छात्रों का कहना है कि इतना ही नहीं प्रशासन ने उनके धरना-प्रदर्शन को खत्म करने के लिए विभिन्न उपायों का उपयोग किया.
10 फरवरी को विरोध प्रदर्शन की पहली रात अधिकारियों ने परिसर में बिजली काट दी, शौचालय बंद कर दिए और कैंटीन क्षेत्र बंद कर दिया. इसके साथ ही कुलपति मजहर आसिफ ने कथित तौर पर छात्रों के साथ किसी भी तरह की बातचीत से इनकार किया है.
11 फरवरी को इन प्रदर्शनकारी छात्रों के माता-पिता को पुलिस अधिकारियों ने बुलाया और उन्हें निर्देश दिया कि वे अपने बच्चों को विरोध प्रदर्शन से हटने के लिए कहें.
मिश्कत कहते हैं, ‘इसका मतलब यह था कि प्रशासन ने हमारे नंबर पुलिस के साथ साझा किए थे.’
सजाहन कहते हैं, टहमें हिरासत में लेने से एक दिन पहले, जामिया नगर पुलिस ने मेरे पिता को फोन किया और उनसे मुझे विरोध प्रदर्शन से पीछे हटने के लिए मजबूर करने को कहा. वह कोलकाता में एक ऑटो-रिक्शा चलाते हैं, उन्हें पुलिस से कई बार धमकी भरे फोन आए कि उनके बेटे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी और उसे कॉलेज से निकाल दिया जाएगा, यह उन्हें और मुझे डराने के लिए किया गया था.’
हिरासत से एक रात पहले 12 फरवरी को सजहान सहित सात छात्रों को विरोध स्थल से 800 मीटर दूर हुई झड़प के लिए निलंबन पत्र मिला था.
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बता दें कि धरना-प्रदर्शन में शामिल सभी 17 छात्रों को निलंबित कर दिया गया है. निलंबन पत्रों में से एक में उद्धृत कारणों में व्यक्तियों के एक अनियंत्रित और उपद्रवी समूह का नेतृत्व करना और विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, परिसर के सामान्य कामकाज को बाधित करना, परिसर के अंदर हंगामा करना, अन्य छात्रों के लिए घोर असुविधा पैदा करना और विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना शामिल है.
उथारा कहती हैं, ‘निलंबन ऐसे नहीं हो सकता, इसके लिए एक उचित प्रक्रिया है. आपको कारण बताओ नोटिस मिलना चाहिए. जवाब असंतोषजनक होने पर एक अनुशासनात्मक समिति इस मुद्दे को देखेगी और वह तय करेगी कि क्या निलंबन आवश्यक है और यदि हां, तो इसका विवरण दें.’
उथारा आगे कहती हैं, ‘इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. आम तौर पर निलंबन दो सप्ताह तक रहता है. हमें जो पत्र मिले, उनमें समय का जिक्र नहीं है. अगर मैं दो सप्ताह के बाद परिसर में प्रवेश करने का प्रयास करती हूं तो वे मुझे फिर से निलंबित कर सकते हैं.’
14 फरवरी को हिरासत में लिए गए छात्रों को रिहा किए जाने के बाद विश्वविद्यालय की मुहर के साथ उनके नाम, फोन नंबर, ईमेल आईडी और राजनीतिक संबद्धता प्रदर्शित करने वाले पोस्टर संस्थान के गेट नंबर सात, आठ और 13 के अंदर चिपकाए गए थे.
एक आधिकारिक बयान में विश्वविद्यालय ने इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि कुछ व्यक्ति और असामाजिक तत्व भ्रामक, अपमानजनक और दुर्भावनापूर्ण संदेश फैलाकर विश्वविद्यालय और उसके छात्रों की छवि को बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं.
बयान में निजी जानकारी फैलाने का दोष प्रदर्शनकारी छात्रों पर मढ़ा गया है और कहा गया है कि प्रशासन इस तरह के निर्लज्ज और गैर-जिम्मेदाराना कृत्यों की निंदा करता है.
निलंबित की गई एक अन्य छात्रा सोनाक्षी गुप्ता का नाम और नंबर पोस्टरों पर प्रदर्शित होने के बाद से उसे अज्ञात नंबरों से कॉल और संदेश आ रहे हैं.
सजहान ने 16 फरवरी को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जामिया के विभिन्न छात्र राजनीतिक दलों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में पूछा, ‘अगर यूनिवर्सिटी इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है तो उन पोस्टरों पर उनकी मुहर कैसे लगी?’
अपने निलंबन को रद्द करने की मांग करते हुए इन छात्रों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पांच अन्य मांगें भी रखीं. इसमें मौलिक अधिकारों का उपयोग करने वाले छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी करना तत्काल बंद करना, अपनी आवाज उठाने के लिए छात्रों को जारी किए गए सभी कारण बताओ नोटिस को रद्द करना, 29 अगस्त, 2022 और 29 नवंबर, 2024 के आधिकारिक ज्ञापन को रद्द करना, असहमति व्यक्त करने के लिए छात्रों के खिलाफ विच-हंट को समाप्त करना और दंडित करने वाले नोटिस को वापस लेना शामिल है.
निलंबित छात्रों द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों और राजनीतिक संगठनों के छात्रों ने बड़े पैमाने पर भागीदारी की.
यह रेखांकित करते हुए कि विश्वविद्यालय परिसरों में ‘लोकतांत्रिक जगह’ कैसे सिकुड़ रहे हैं, ज्योति ने बताया, ‘हम अपने लोकतांत्रिक हक़ों को वापस चाहते हैं. यदि प्रशासन को विश्वविद्यालय की राजनीतिक संस्कृति से कोई समस्या है, तो वे इस्तीफा दे सकते हैं. या फिर उन्हें छात्रों की स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.’
ज्ञात हो कि विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के छात्रों ने निलंबित छात्रों के समर्थन में एकजुटता के बयान जारी किए हैं. इसी के तहत 17 फरवरी को विश्वविद्यालय में कक्षाओं का भी बहिष्कार किया गया था. हालांकि, प्रशासन निलंबित छात्रों के समर्थन में किसी भी प्रकार के प्रतिरोध और आवाज को दबाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है.
ज्योति पूछती हैं, ‘रजिस्ट्रार, महताब आलम रिज़वी ने कहा है कि अगर कोई 17 फरवरी को कक्षाओं का बहिष्कार करता है, तो पूरी कक्षा को निलंबित कर दिया जाएगा. यह किस तरह का अधिनायकवाद है.’
हालांकि, बहिष्कार में छात्रों की भारी भागीदारी देखी गई और कक्षाएं खाली रहीं. उसी दिन छात्रों ने छात्र कल्याण के डीन को एक ज्ञापन सौंपकर 48 घंटे के अल्टीमेटम के साथ सभी निलंबन पत्रों को तत्काल रद्द करने की मांग की.
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