नई दिल्ली: एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय अपनी आय का एक तिहाई हिस्सा लोन की किश्तों का भुगतान करने में खर्च कर रहे हैं.
पीडब्ल्यूसी और परफियोस (PwC and Perfios) की रिपोर्ट ‘भारत कैसे खर्च करता है’ ने 30 लाख लोगों के खर्च व्यवहार का विश्लेषण किया, जो मुख्य रूप से फिनटेक, गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (एनबीएफसी) और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं.
अध्ययन में भाग लेने वाले लोग तृतीय श्रेणी के शहरों से लेकर महानगरों तक के थे, जिनकी आय 20,000 रुपये से लेकर 1,00,000 रुपये प्रति माह तक थी.
रिपोर्ट के अनुसार, ईएमआई का भुगतान करने वालों में उच्च-मध्यम स्तर के कमाने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक थी, जबकि शुरूआती स्तर के कमाने वालों की संख्या सबसे कम थी. इसमें यह भी पाया गया कि कम वेतन वाले लोग औपचारिक स्रोतों के बजाय दोस्तों, परिवार या स्थानीय उधार देने वालों से उधार लेने की अधिक संभावना रखते थे.
रिपोर्ट में खर्च को तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है – अनिवार्य खर्च (39%), आवश्यकताएं (32%) और विवेकाधीन (discretionary) खर्च (29%).
रिपोर्ट के अनुसार, अनिवार्य खर्च को ऋण चुकौती और बीमा पॉलिसियों के लिए प्रीमियम पर खर्च के रूप में परिभाषित किया गया है, जबकि विवेकाधीन खर्च में ऑनलाइन गेमिंग, बाहर खाने या भोजन का ऑर्डर देना, मनोरंजन आदि पर खर्च शामिल है. आवश्यकताओं में बुनियादी घरेलू जरूरतें जैसे उपयोगिताएं (पानी, बिजली, गैस, आदि), ईंधन, दवा, किराने का सामान आदि शामिल हैं.
आवश्यकताएं बनाम विवेकाधीन खर्च
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कम वेतन वाले लोग अपनी आय का ज़्यादातर हिस्सा ज़रूरी आवश्कताओं को पूरा करने या कर्ज चुकाने में लगा रहे हैं. इसके विपरीत, उच्च वेतन वाले लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा अनिवार्य और विवेकाधीन खर्च में लगा रहे हैं.’
रिपोर्ट बताती है कि उच्च आय वर्ग में ऋण उच्च जीवन-यापन खर्च के साथ-साथ विलासिता की वस्तुओं और छुट्टियों के प्रति बढ़ती आकांक्षाओं का संकेत है.
रिपोर्ट में पाया गया कि शुरूआती स्तर की आय श्रेणी से उच्च आय श्रेणी में आने पर विवेकाधीन खर्च 22% से बढ़कर 33% हो गया.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अनिवार्य खर्चों के लिए भी यही प्रवृत्ति देखी गई है, जहां खर्च का प्रतिशत प्रवेश स्तर के आय वालों के लिए 34% से बढ़कर उच्च आय वालों के लिए 45% हो जाता है. हालांकि, आवश्यकता खर्च के लिए एक विपरीत प्रवृत्ति देखी गई है, जहां वेतन में वृद्धि के साथ खर्च किए गए धन का प्रतिशत घटता है – प्रवेश स्तर के आय वालों के लिए 44% से घटकर उच्च आय वालों के लिए 22% हो जाता है.’
रिपोर्ट में पाया गया कि जीवनशैली से जुड़ी खरीदारी विवेकाधीन खर्चों का 62% से अधिक है, उच्च आय वर्ग के लोग ऐसी वस्तुओं पर लगभग तीन गुना अधिक खर्च करते हैं (3,207 रुपये प्रति माह) जबकि प्रवेश स्तर के लोग (958 रुपये) ऐसे उत्पादों पर खर्च करते हैं. ऑनलाइन गेमिंग कम आय वालों (22%) के बीच सबसे लोकप्रिय है, जो उच्च आय वालों के लिए घटकर 12% रह गया है.
अध्ययन में यह भी पाया गया कि द्वितीय श्रेणी के शहरों में रहने वाले लोग चिकित्सा पर सबसे अधिक खर्च करते हैं, जो कि प्रथम श्रेणी के शहरों की तुलना में औसतन 20% अधिक प्रति माह है.
अनिवार्य खर्च
रिपोर्ट में पाया गया कि वेतनभोगी व्यक्ति अपनी आय का औसतन 34-45% अनिवार्य खर्च, 22-44% आवश्यकताओं और 22-33% विवेकाधीन खर्च के लिए आवंटित करते हैं. हालांकि, यह विभिन्न वेतन वर्गों में भिन्न होता है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एम्बेडेड फाइनेंस, पीयर-टू-पीयर लोन और क्रेडिट कार्ड तथा अन्य पारंपरिक ऋण श्रेणियों जैसे कि होम लोन, शिक्षा लोन और ऑटो लोन के माध्यम से व्यक्तिगत लोन के बढ़ने से विवेकाधीन खर्च और भविष्य के दायित्वों के बीच की रेखाएं धुंधली हो गई हैं.’
बचत में भारी गिरावट
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, भारत की घरेलू बचत पांच साल के निचले स्तर पर आ गई है, जो जीडीपी का मात्र 5.1% है. यह खपत में वृद्धि के बावजूद है. घरेलू परिसंपत्तियों में गिरावट व्यक्तिगत ऋणों में वृद्धि के साथ हुई है, जो साल-दर-साल 13.7% की दर से बढ़े हैं.
परफियोस के सीईओ सब्यसाची गोस्वामी ने मिंट को बताया, ‘उपभोग में वृद्धि हुई है, हमने वित्तीय परिसंपत्तियों और बचत में गिरावट देखी है.’ उन्होंने कहा कि उपभोग में वृद्धि हो रही है, लेकिन कम बचत से परिवारों पर दबाव बढ़ रहा है.
गोस्वामी ने कहा, ‘यह पिछले छह वर्षों में वेतन में 9.1% की सालाना वृद्धि के बावजूद है. हम देखते हैं कि जैसे-जैसे परिवार वाहन और घर खरीद रहे हैं, कर्ज का स्तर बढ़ रहा है.’