नई दिल्ली: तेलंगाना के उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्क ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मसौदा नियमों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा है कि ये राज्य की स्वायत्तता को खत्म कर देंगे. उन्होंने तर्क दिया कि ये नियम उच्च शिक्षा में राज्य की भूमिका को कमजोर करते हैं, जो संविधान की समवर्ती सूची में आता है.
भट्टी विक्रमार्क ने गुरुवार (20 फरवरी) को तिरुवनंतपुरम में उच्च शिक्षा पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए कहा, ‘यह अवधारणा संविधान की समवर्ती सूची (concurrent list of the constitution) के विषय में राज्य की भूमिका को खत्म करने जैसा है.’
उन्होंने कहा, ‘शिक्षा प्रणाली को नई दिल्ली से रिमोट के जरिये नियंत्रित नहीं किया जा सकता.’
भट्टी विक्रमार्क ने विशेष रूप से 3,000 छात्रों के नामांकन को रैंकिंग और फंडिंग के लिए मानदंड बनाने के प्रस्ताव की आलोचना की. उन्होंने दावा किया कि इससे तेलंगाना में उच्च शिक्षा संस्थानों को अनुचित रूप से नुकसान होगा जो पिछड़े क्षेत्रों और समाज के वंचित वर्गों की सेवा करते हैं. उपमुख्यमंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि नियम कॉरपोरेट हितों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाए गए हैं.
भट्टी विक्रमार्का ने कहा, ‘अगर 3,000 छात्रों के नामांकन का मानदंड लागू किया जाता है, तो ज़्यादातर संस्थान अपनी रैंकिंग और फ़ंडिंग खो देंगे, जिसका असर पिछड़े और वंचित वर्गों की सेवा करने वाले संस्थानों पर पड़ेगा, ख़ासतौर पर तेलंगाना जैसे राज्यों में. ऐसे प्रावधान सार्वजनिक शिक्षा के बजाय कॉरपोरेट को फ़ायदा पहुंचाने के लिए बनाए गए लगते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘शिक्षा का उद्देश्य दिमाग खोलना है, दरवाजे बंद करना नहीं.’
मालूम हो कि यूजीसी के नए नियम राज्यों में राज्यपालों को कुलपतियों की नियुक्ति के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करते हैं. साथ ही कहते हैं कि अब वीसी का पद शिक्षाविदों तक सीमित नहीं है, बल्कि उद्योग विशेषज्ञों और सार्वजनिक क्षेत्र के दिग्गजों को भी वीसी बनाया जा सकता है.
नए नियमों में कहा गया है, ‘कुलपति/विजिटर तीन विशेषज्ञों वाली खोज-सह-चयन समिति (Search-cum-Selection Committee) का गठन करेंगे.’ पहले, नियमों में उल्लेख किया गया था कि कुलपति के पद के लिए इस समिति द्वारा गठित 3-5 व्यक्तियों के पैनल द्वारा उचित पहचान के माध्यम से किया जाना चाहिए, लेकिन यह निर्दिष्ट नहीं किया गया था कि समिति का गठन कौन करेगा.
इस पर टिप्पणी करते हुए भट्टी विक्रमार्क ने कहा, ‘यदि यही स्थिति रही तो राज्य केवल भवनों के उद्घाटन के अवसर पर रिबन काटने के समारोह तक ही सीमित रह जाएंगे.’
इसके अलावा, उन्होंने मसौदा नियमों पर चर्चा करने के लिए एक सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए केरल की प्रशंसा की और प्रस्ताव दिया कि तेलंगाना एक एकीकृत कार्य योजना तैयार करने के लिए हैदराबाद में अगली बैठक की मेजबानी करे.
उपमुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि जब राज्य एक सामान्य उद्देश्य के साथ एकजुट होते हैं, तो केंद्र को सुनना पड़ता है क्योंकि राज्य केवल प्रशासनिक इकाइयां नहीं हैं, बल्कि ‘देश की प्रगति के लिए जीवन रेखा’ हैं.
उनकी टिप्पणियों में केरल सहित कई राज्य सरकारों की चिंताएं प्रतिबिंबित होती हैं, जिन्होंने मसौदा नियमों पर विरोध व्यक्त किया है.
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा है कि ये नियम उच्च शिक्षा क्षेत्र में ‘राजनीति से प्रेरित’ नियुक्तियों के लिए जगह बनाएंगे.
विजयन ने सम्मेलन में बोलते हुए कहा, ‘कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार कुलाधिपतियों को सौंप दिया गया है, जो केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल हैं. इससे राजनीतिक रूप से प्रेरित चयनों के लिए जगह बनती है, जो उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए हानिकारक हो सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘यह कोई अकेली घटना नहीं है. केंद्र सरकार लगातार राज्यों की स्वायत्तता का हनन कर रही है, यहां तक कि वित्तीय रूप से भी. राज्य योजनाओं के लिए केंद्र सरकार का आवंटन घट रहा है, जिससे राज्य सरकारों को अधिक योगदान देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.’
इसी तरह, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पहले इस कदम की आलोचना करते हुए इसे ‘अधिनायकवादी’, ‘संघवाद पर सीधा हमला’ और ‘असंवैधानिक’ बताया था.
स्टालिन ने जनवरी में एक्स पर लिखा था, ‘यूजीसी के नए नियम राज्यपालों को कुलपति नियुक्तियों पर व्यापक नियंत्रण प्रदान करते हैं और गैर-शैक्षणिकों को इन पदों पर रहने की अनुमति देते हैं, जो संघवाद और राज्य के अधिकारों पर सीधा हमला है. केंद्र की भाजपा सरकार का यह सत्तावादी कदम सत्ता को केंद्रीकृत करने और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को कमजोर करने का प्रयास करता है. शिक्षा को लोगों द्वारा चुने गए लोगों के हाथों में रहना चाहिए, न कि भाजपा सरकार के इशारे पर काम करने वाले राज्यपालों के हाथों में.’
5 फरवरी को कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और केरल सहित छह गैर-भाजपा राज्यों के प्रतिनिधियों ने बेंगलुरु में राज्य उच्च शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन, 2025 में मुलाकात की और यूजीसी के नए मसौदा नियमों के साथ-साथ नई शिक्षा नीति, 2020 के आधार पर उच्च शिक्षा संस्थानों की ग्रेडिंग का विरोध करते हुए 15 सूत्री संयुक्त प्रस्ताव पारित किया.