नई दिल्ली: उत्तराखंड के चमोली में शुक्रवार ( 28 फरवरी) की सुबह हुए हिमस्खलन में फंसे मजदूरों को निकालने का काम तीसरे दिन भी जारी है. अब तक 54 लोगों में से 51 लोगों को बाहर निकाला जा चुका है, इनमें से 5 की मौत हो चुकी है. फिलहाल 3 मजदूरों की तलाश जारी है.
इससे पहले बर्फ़ में फंसे कुल श्रमिकों की संख्या 55 बताई जा रही थी. लेकिन एक कर्मचारी अनाधिकृत छुट्टी पर होने की बात सामने आने के बाद यह आंकड़ा 54 हो गया है.
मालूम हो कि मौसम विभाग द्वारा इस घटना के एक दिन पहले 27 फरवरी को ही उत्तरखंड में बर्फबारी और बारिश की चेतावनी जारी गई थी. बावजूद इसके ये मजदूर सड़क निर्माण के कार्य में लगे रहे, जिसके बाद ये बड़ा हादसा देखने को मिला.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, भारतीय सेना, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) की टीमें अभी भी 3 मजदूरों की तलाश में जुटी हुई है. इस अभियान में ड्रोन, रडार सिस्टम, स्निफर डॉग और थर्मल इमेज कैमरा की मदद ली जा रही है. सेना के 6 हेलीकॉप्टर भी तैनात हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, बचावकर्मियों का कहना है कि लापता श्रमिकों का पता लगाने के लिए सेना कड़ी मेहनत कर रही है, लेकिन तीन कंटेनरों को ढूंढना सबसे महत्वपूर्ण कदम है, जहां ये लोग रह रहे थे. पांच कंटेनरों का पता लगा लिया गया है, लेकिन छह फीट गहरी बर्फ के कारण तीन का अभी तक पता नहीं चल पाया है.
अधिकारियों का कहना है कि तीन कंटेनरों का पता लगाने के लिए सेना के खोजी कुत्तों को तैनात किया गया है और तीन टीमें गहन गश्त कर रही हैं. बर्फ के नीचे दबे कंटेनरों का पता लगाने के लिए दिल्ली से ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार मंगवाया गया है.
अखबार ने सूत्रों के हवाले से बताया कि ये मजदूर माणा गांव को बद्रीनाथ के रास्ते माणा पास से जोड़ने की परियोजना पर काम कर रहे थे. उत्तराखंड में भारतीय सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष श्रीवास्तव ने कहा कि श्रमिक बीआरओ की शिवालिक परियोजना में शामिल एक टीम का हिस्सा थे, जो गढ़वाल क्षेत्र में बुनियादी ढांचे से संबंधित है.
ज्ञात हो कि बीआरओ भारत-चीन सीमा के पास माणा में सड़कों का निर्माण कर रहा है. वहां तैनात सुरक्षा बलों के लिए सड़कों को सुलभ बनाने हेतु इन श्रमिकों पर बर्फ साफ करने से लेकर सड़क पर तारकोल डालने और मशीनें चलाने तक के काम का जिम्मा है. प्रोजेक्ट शिवालिक में चार धाम परियोजना के हिस्से के रूप में सड़क बुनियादी ढांचे का निर्माण भी शामिल है.
इस संबंध में चमोली के ज़िला मजिस्ट्रेट संदीप तिवारी ने बताया, ‘कल डॉक्टरों ने 4 लोगों की मौत की पुष्टि की है. पहले कुल संख्या 55 थी, लेकिन अब हमें जानकारी मिली है कि एक कर्मचारी अनाधिकृत छुट्टी पर था और वह घर पर है. जिसके बाद कुल संख्या घटकर 54 हो गई है, जिनमें से 4 लोग अभी भी लापता हैं.’
माणा हिमस्खलन में फंसे श्रमिकों के रेस्क्यू ऑपरेशन की जानकारी देते जिलाधिकारी चमोली श्री संदीप तिवारी। pic.twitter.com/vU0SGzeit0
— Uttarakhand DIPR (@DIPR_UK) March 2, 2025
इस घटना के संबंध में राज्य आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने जानकारी देते हुए कहा kf बचाव अभियान में लगे सभी कर्मी लगन से काम कर रहे हैं. फंसे हुए 55 लोगों में से 51 का पता लगा लिया गया है, चार अभी भी लापता हैं.
बचाए गए मजदूरों में से ज्यादातर को पीठ, सिर, हाथ और पैरों में चोटें आई हैं. सामान्य घायल मजदूरों को सेना अस्पताल में भर्ती किया गया है. वहीं, 2 मजदूरों की हालत गंभीर है, जिन्हें इलाज के लिए एम्स ऋषिकेश भेजा गया है. इनमें बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 11-11, हिमाचल प्रदेश के 7 और जम्मू-कश्मीर और पंजाब का एक-एक मजदूर शामिल हैं.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बीते दिन शनिवार को सुबह घटनास्थल का दौरा किया और मजदूरों से मुलाकात की. इससे पहले सीएम से प्रधानमंत्री मोदी ने बातचीत कर रेस्क्यू ऑपरेशन का जायजा लिया था. सीएम धामी ने कहा कि पीएम द्वारा हर संभव मदद का भरोसा दिया गया है.
चमोली जिले में माणा के पास हिमस्खलन प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर मौके पर जारी राहत एवं बचाव कार्यों का जायजा लिया। इस दौरान सुरक्षित बाहर निकाले गए श्रमिकों का कुशलक्षेम जाना।
साथ ही बचाव कार्य में जुटे सैन्य अधिकारियों एवं प्रशासनिक टीमों से विस्तृत जानकारी प्राप्त कर आवश्यक… pic.twitter.com/ibSm5qARh6
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) March 1, 2025
बचाए गए मजदूरों ने अपनी आपबीती सुनाई
हिंदुस्तान टाइम्स से बचाए गए 40 वर्षीय मजदूर मनोज भंडारी ने कहा, ‘कंटेनर ढलान से सैकड़ों मीटर दूर लुढ़क गया. उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए. मैं और मेरे 2 साथी बर्फीली ढलान पर गिर गए. हमारे फोन, बैग और दूसरा सामान कंटेनर के साथ बह गया. बर्फ पर नंगे पांव चलते हुए सेना के अतिथि कक्ष पहुंचे. हमारे पैर ठंड से सुन्न हो गए थे और शरीर अकड़ गया था.’
चमोली जिले के नारायणबागर के गोपाल जोशी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, ‘जैसे ही हम कंटेनर से बाहर निकले, हमने गड़गड़ाहट सुनी और देखा कि बर्फ का बड़ा ढेर हमारी ओर बढ़ रहा है. मैं साथियों को सचेत करने के लिए चिल्लाया और दौड़ा. कई फीट बर्फ के कारण हम नहीं भाग पा रहे थे. 2 घंटे बाद आईटीबीपी ने हमें बचाया.’
हिमाचल प्रदेश के विपिन कुमार जो फिलहाल सेना के ज्योतिर्मठ अस्पताल में भर्ती हैं. वे करीब 15 मिनट तक बर्फ में दबे रहे थे. उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, ‘मैंने तेज आवाज सुनी. इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता, सब दूर अंधेरा हो गया. मुझे लगा सबकुछ खत्म हो गया है. मैं बर्फ से तभी बाहर निकल पाया, जब हिमस्खलन रुक गया. ऐसा लगा जैसे मेरा दूसरा जन्म हुआ हो.’