बिहार में कई स्थानों पर गंगा नदी का पानी नहाने लायक नहीं: सर्वेक्षण

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, बिहार के अधिकांश स्थानों पर गंगा नदी का जल नहाने लायक नहीं है, क्योंकि इसमें बैक्टीरिया अधिक संख्या में मौजूद है. यह मुख्य रूप से गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे शहरों से निकलने वाले सीवेज/घरेलू अपशिष्ट जल के कारण है.

गंगा नदी. (फोटो साभार: X/@CallingGanga)

नई दिल्ली: बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, बिहार में गंगा नदी का पानी राज्य के अधिकांश स्थानों पर नहाने लायक नहीं है, क्योंकि इसमें ‘बैक्टीरिया’ अधिक संख्या में मौजूद है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने बताया कि बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (बीएसपीसीबी) राज्य में 34 स्थानों पर गंगा के पानी की गुणवत्ता की हर पखवाड़े निगरानी करता है.

हाल ही में राज्य विधानसभा में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, ‘गंगा के पानी में बैक्टीरिया की उच्च संख्या (कोलीफॉर्म और फीकल कोलीफॉर्म की कुल मात्रा) में मौजूदगी का संकेत मिलता है. यह मुख्य रूप से गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे शहरों से निकलने वाले सीवेज/घरेलू अपशिष्ट जल के कारण है.’

सर्वेक्षण में बीएसपीसीबी के ताजा जल गुणवत्ता जांच के परिणामों का हवाला दिया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अन्य पैरामीटर… पीएच (अम्लता या क्षारीयता), घुलित ऑक्सीजन और जैव-रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) नदी और बिहार में उसकी सहायक नदियों में निर्धारित सीमा के भीतर पाए गए हैं, जो दर्शाता है कि पानी जलीय जीवन, वन्यजीव प्रसार, मत्स्य पालन और सिंचाई के लिए उपयुक्त है.’

नदी के तट पर स्थित महत्वपूर्ण शहरों में बक्सर, छपरा (सारण), दिघवारा, सोनपुर, मनेर, दानापुर, पटना, फतुहा, बख्तियारपुर, बाढ़, मोकामा, बेगुसराय, खगड़िया, लखीसराय, मनिहारी, मुंगेर, जमालपुर, सुल्तानगंज, भागलपुर और कहलगांव शामिल हैं.

रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए बीएसपीसीबी के अध्यक्ष डीके शुक्ला ने पीटीआई को बताया कि गंगा नदी में बैक्टीरिया की अधिक संख्या की मौजूदगी चिंता का विषय है.

शुक्ला ने कहा, ‘मलमूत्र में ‘फीकल कोलीफॉर्म’ बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो अनुपचारित सीवेज के माध्यम से पानी को दूषित करते हैं. इसका स्तर जितना अधिक होगा, पानी में रोग पैदा करने वाले रोगाणुओं की उपस्थिति उतनी ही अधिक होगी. सीपीसीबी मानकों के अनुसार, फीकल कोलीफॉर्म की अनुमेय सीमा 2,500 एमपीएन प्रति 100 मिली है.’

उन्होंने कहा कि अधिकांश स्थानों पर गंगा में कुल कोलीफॉर्म और फीकल कोलीफॉर्म की उपस्थिति बहुत अधिक है, जो दर्शाता है कि यह नहाने के लिए उपयुक्त नहीं है.

वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बीएसपीसीबी यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रहा है कि राज्य में सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) ठीक से काम करें.

शुक्ला ने कहा, ‘हमने संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि राज्य में कुछ एसटीपी पर निर्माण कार्य जल्द से जल्द पूरा हो.’

सर्वेक्षण में कहा गया है, ‘बीएसपीसीबी औद्योगिक इकाइयों के साथ-साथ एसटीपी/सीवरेज नालों से उत्पन्न अपशिष्ट/सीवेज की गुणवत्ता की भी निगरानी कर रहा है. फिलाहाल बोर्ड द्वारा विभिन्न स्रोतों से 2,561 जल/अपशिष्ट/सीवेज नमूने एकत्र किए गए हैं.’

गंगा की गुणवत्ता से संबंधित बीएसपीसीबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, कच्ची दरगाह-बिदुपुर ब्रिज पर मापा गया फीकल कोलीफॉर्म का स्तर 3,500 एमपीएन/100 मिली, गुलाबी घाट (5,400 एमपीएन/100 मिली), त्रिवेणी घाट (5,400 एमपीएन/100 मिली), गायघाट (3,500 एमपीएन/100 मिली), केवाला घाट (5,400 एमपीएन/100 मिली), गांधी घाट, एनआईटी (3,500 एमपीएन/100 मिली) और हाथीदह में 5,400 एमपीएन/100 मिली पाया गया.

उल्लेखनीय है कि बीते दिनों उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में चल रहे महाकुंभ के दौरान सामने आया था कि वहां गंगा के जल में मानव और पशु मल के चलते फीकल कोलीफॉर्म अधिक है, जिसके चलते यह नहाने योग्य नहीं है. तब एनजीटी ने सीपीसीबी की रिपोर्ट के हवाले से कहा था कि विभिन्न अवसरों पर सभी मॉनिटर किए गए स्थानों पर फीकल कोलीफ़ॉर्म के संदर्भ में गंगा के जल की गुणवत्ता नहाने के योग्य नहीं थी.

इसके बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में इससे इनकार करते हुए दावा किया था कि गंगा का जल स्नान ही नहीं आचमन के लिए भी उचित है. हालांकि, उन्होंने इसके लिए कोई वैज्ञानिक रिपोर्ट या प्रमाण नहीं दिए थे.