भारत ने कश्मीर और मणिपुर पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख की चिंताओं को निराधार बताया

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क के वैश्विक घटनाक्रम की जानकारी में भारत, विशेष तौर पर कश्मीर और मणिपुर में लोकतंत्र संबंधित टिप्पणी को लेकर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे बेबुनियाद और अतार्किक बताया है.

फ़ाइल फोटो: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क, एक महासभा की बैठक को संबोधित करते हुए. (फोटो साभार: यूएन फोटो/एस्किंडर डेबेबे)

नई दिल्ली: भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क के वैश्विक घटनाक्रम की जानकारी में भारत, विशेष तौर पर कश्मीर और मणिपुर में लोकतंत्र संबंधित टिप्पणी को लेकर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे बेबुनियाद और अतार्किक बताया है.

भारत की ओर से जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत अरिंदम बागची ने सोमवार (3 मार्च) को इस अपडेट को खारिज करते हुए कहा कि ये टिप्पणियां वास्तविकताओं से कोसों दूर हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 58वें सत्र में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने दुनिया भर में मानवाधिकार की स्थिति पर अपना अपडेट दिया. संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से लेकर चीन तक फैले इस गंभीर मूल्यांकन में उन्होंने कश्मीर पर विशेष ध्यान देने के साथ भारत की स्थिति का भी उल्लेख किया.

टर्क ने अपने बयान में कहा, ‘भारत का लोकतंत्र और संस्थाएं इसकी सबसे बड़ी ताकत हैं, जो इसकी विविधता और विकास को रेखांकित करती हैं. लोकतंत्र को समाज के सभी स्तरों पर भागीदारी और समावेशन को निरंतर बढ़ावा देने की आवश्यकता है. मैं मणिपुर हिंसा और विस्थापन को रोकने के लिए संवाद, शांति बनाने वाले और मानवाधिकार पर आधारित कोशिशों को तेज करने की मांग करता हूं. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और स्वतंत्र पत्रकारों के खिलाफ सख्त कानूनों के प्रयोग और उत्पीड़न से चिंतित हूं, जिसके चलते मनमानी हिरासत और कश्मीर सहित अन्य नागरिक अधिकारों में कमी आई है.’

टर्क ने मणिपुर में बातचीत, शांति-निर्माण और मानवाधिकारों के आधार पर राज्य की हिंसा और विस्थापन को संबोधित करने के लिए प्रयास तेज करने का भी आह्वान किया.

इस अपडेट को ‘वास्तविक अपडेट की ज़रूरत’: भारत

जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अरिंदम बागची ने टर्क के इस बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उनकी टिप्पणियां निराधार और तर्कहीन हैं, जिसका जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं हैं.

उन्होंने कहा कि भारत की जनता ने ऐसी निराधार चिंताओं को बार-बार गलत साबित किया है. बागची के अनुसार, ‘हम भारत एवं हमारी विविधता तथा खुलेपन की सभ्यता को बेहतर तरीके से समझने की सलाह देते हैं, जो हमारे चुनिंदा घटनाओं को परिभाषित करती है.’

बागची ने कहा कि टर्क ने वैश्विक अपडेट में गलती से जिसे कश्मीर कहा है, वो जम्मू-कश्मीर है और यह इस अंतर को सबसे ज्यादा दर्शाता है.

बागची ने तर्क दिया कि टर्क की जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में कही गईं बातें हक़ीकत के एकदम परे हैं. ये टिप्पणियां उस क्षेत्र (जम्मू-कश्मीर) की बेहतर होती शांति और समावेशी प्रगति के दौर में विरोधाभासी हैं. पंचायत चुनावों में भारी मतदान, पर्यटन में उछाल और तेज विकास दर इसकी मिसाल हैं.

वरिष्ठ भारतीय राजनयिक ने आगे कहा, ‘जम्मू-कश्मीर, जिसे ग़लती से कश्मीर कहा जाता है, का संदर्भ बिल्कुल उलट दिया गया है और ये विडंबना यह है कि साल 2024 में उस क्षेत्र की शांति और समावेशी प्रगति में सुधार देखे गए. फिर वो बड़े मतदान वाले प्रांतीय चुनाव हों या तेजी से बढ़ता पर्यटन और विकास.

उन्होंने आगे कहा, ‘स्पष्ट रूप से इस वैश्विक अपडेट को वास्तविक अपडेट की जरूरत  है!’

बागची ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख द्वार जटिल मुद्दों को अधिक सरल बनाने, व्यापक और सामान्यीकृत टिप्पणियां करने, ढीली शब्दावली का उपयोग करने और स्थितियों को स्पष्ट रूप से चुनकर पेश करने की आलोचना की.

मालूम हो कि अपनी टिप्पणी में टर्क ने कहा था कि आज की व्यापक बेचैनी का समाधान मानवाधिकारों के प्रति अधिक सम्मान में है, कम में नहीं.

इस वाक्यांश का संदर्भ देते हुए बागची ने कहा, ‘उच्चायुक्त ने एक व्यापक बेचैनी महसूस की है, लेकिन इसे दूर करने के लिए उनके कार्यालय को खुद को आईने में देखना जरूरी है.’