छत्तीसगढ़: कोल ब्लॉक भूमि अधिग्रहण पर केंद्र व राज्य सरकार को हाईकोर्ट का नोटिस

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गारे कोल ब्लॉक भू-अधिग्रहण से प्रभावित 49 किसानों की याचिका पर राज्य, केंद्र सरकार और जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड को नोटिस जारी किया है. किसानों का आरोप है कि नया भूमि अधिग्रहण क़ानून लागू होने के बावजूद पुराने क़ानून के तहत उनकी ज़मीन ली जा रहा है. 

(प्रतीकात्मक तस्वीर: द वायर)

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गारे कोल ब्लॉक भू अधिग्रहण से प्रभावित 49 किसानों की याचिका पर राज्य सरकार, केंद्र सरकार, कलेक्टर रायगढ़, एसडीओ घरघोड़ा और जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड को नोटिस जारी किया है.

किसानों का आरोप है कि नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू होने के बावजूद पुराने कानून के तहत उनकी जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है. उन्होंने छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता की धारा 247 के तहत किए जा रहे भूमि अधिग्रहण को चुनौती दी है.

याचिका में इस बात को भी चुनौती दी गई है कि जो मुआवजे का निर्धारण किया जा रहा है वह 2010 के अधिसूचना की दरों के आधार पर किया जा रहा है जबकि 15 साल में जमीनों के भाव बहुत बढ़ गए हैं.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की पीठ ने चंदन सिंह सिदार, रविशंकर सिंदर उत्तम सिंह महेश पटेल समेत 49 किसानों जिसमें अधिकतर आदिवासी समुदाय के हैं द्वारा अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और सुदीप वर्मा के माध्यम से लगाई गई याचिका पर सुनवाई की.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि गारे 4/60 कोल ब्लॉक का भूमि अधिग्रहण सितंबर 2024 में शुरू किया गया है परंतु इसका खनन पट्टा 2023 में ही दे दिया गया था. यह संविधान की धारा 300 A का खुला उल्लंघन है क्योंकि किसी भी निजी भूमि को बिना विधिवत कानून के अधिग्रहण कर मुआवजा दिए बगैर उसे जमीन का अधिकार किसी और को नहीं सौंपा जा सकता.

याचिका में कहा गया है कि नया भूमि अधिग्रहण कानून एकमात्र ऐसा कानून है जो पुनर्वास और पुनर्स्थापना पर प्रभावित व्यक्तियों को कानूनी अधिकार देता है. इस नए भू अधिग्रहण कानून के आने के पश्चात भू राजस्व संहिता की धारा 247 में राज्य की विधानसभा ने केवल मुआवजे के संबंध में नए कानून लागू होने का संशोधन किया परंतु पुनर्वास और पुनर्स्थापना के आदि पर कोई भी संशोधन नहीं है.

अदालत को यह भी बताया गया कि संविधान की धारा 254 के अनुसार यदि संसद के द्वारा किसी क्षेत्र में कानून बना दिया गया है तो उस क्षेत्र पर राज्य विधानसभा की ओर से बनाए गए कोई कानून लागू नहीं होते. अतः यह पूरी भू अधिग्रहण की कार्यवाही असंवैधानिक है.

याचिका में यह भी कहा गया कि कि राज्य सरकार या कलेक्टर किस आधार पर आदेश पारित कर रहे हैं वह भी नहीं बता रहे हैं और ना ही भूमि अधिग्रहण आदेश की प्रति दी गई है. इसके विपरीत कई किसानों की जमीनों पर जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड के द्वारा सितंबर-अक्टूबर 2024 से अवैध कब्जा कर लिया गया है.

याचिका में 2010 की राज्य सरकार की उसे अधिसूचना को भी चुनौती दी गई है जिसके द्वारा किसानों को प्रति एकड़ भूमि मुआवजे का निर्धारण आज 15 साल बाद भी पुराने दर पर किया जा रहा है.

राज्य सरकार की ओर से वकील प्रफुल्ल भारत और शशांक ठाकुर ने इस मामले पर सरकार का पक्ष रखा और कहा कि पूर्व में एक याचिका इसी संबंध में लगाई जा चुकी है जिसमें कलेक्टर को सभी समस्याओं को सुनकर निराकरण करने का आदेश दिया गया था और कलेक्टर ने उन सभी समस्याओं का निराकरण कर दिया है. इसलिए यह नई याचिका चलने योग्य नहीं है.

इसके जवाब में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पहले की याचिका केवल 8 प्रभावितों के द्वारा लगाई गई थी और यह याचिका 49 व्यक्तियों के द्वारा लगाई गई है. इसके अलावा कलेक्टर के आदेश में मिली जानकारी के आधार पर ही यह नई याचिका तैयार की गई है जिससे यह पहली बार पता लगा के भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया प्रारंभ होने के पहले ही माइनिंग लीज दी जा चुकी है.

अदालत ने भी 8 व्यक्तियों की पुरानी याचिका के आधार पर 49 व्यक्तियों की नई याचिका के विरोध के तर्क को स्वीकार नहीं किया.

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार, भारत सरकार कोयला मंत्रालय, जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड, कलेक्टर रायगढ़ और घरघोड़ा एसडीओ सभी को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब देने के लिए निर्देश दिए हैं.