हाथरस भगदड़: जांच कर रहे न्यायिक पैनल ने ‘भोले बाबा’ को नहीं, प्रशासन को दोषी ठहराया

जुलाई 2024 को हाथरस में आयोजित एक धार्मिक सभा में मची भगदड़ में कम से कम 121 लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे. इसकी जांच कर रहे न्यायिक आयोग ने घटना के लिए स्वयंभू संत भोले बाबा को दोषी न ठहराते हुए पुलिस, प्रशासन और आयोजकों की चूक की ओर इशारा किया है.

सूरजपाल उर्फ 'भोले बाबा'. (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में पिछले साल एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में लगभग 121 लोगों की मौत की जांच कर रहे न्यायिक आयोग ने इस त्रासदी के लिए विवादास्पद धर्मगुरु सूरज पाल उर्फ़ भोले बाबा को दोषी ठहराने से परहेज किया, लेकिन पुलिस, प्रशासन और आयोजकों की ओर से ‘गंभीर चूक’ की ओर इशारा किया और राज्य सरकार को बदनाम करने की साजिश की संभावना का संकेत दिया.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार द्वारा बुधवार को विधानसभा में पेश की गई 1,670 पृष्ठों की रिपोर्ट ने उस थ्योरी को खारिज कर दिया, जो सबसे पहले पाल के वकीलों द्वारा पेश की गई थी कि अज्ञात लोगों द्वारा जहरीली गैस का छिड़काव करने के कारण भगदड़ मची थी.

रिपोर्ट ने कहा कि कार्यक्रम स्थल पर भीड़ स्वीकृत संख्या (अनुमानित संख्या 80,000) से कम से कम तीन गुना अधिक थी, लेकिन किसी भी व्यक्ति या अधिकारी को जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया.

इसने पुलिस के इस आरोप पर भी कोई रुख अपनाने से इनकार कर दिया कि पाल ने अपने भक्तों से अपने पैरों से छुई धूल इकट्ठा करने का आह्वान किया था, जिसके कारण भीड़ उमड़ी और भगदड़ मच गई.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऐसा नहीं लगता कि कुछ लोगों ने जहरीला स्प्रे छिड़का हो, जिससे भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हुई हो. गवाहों के बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते और ऐसा लगता है कि उन्हें जांच को भटकाने के लिए यह कहानी सुनाने के निर्देश दिए गए थे… हलफनामों में इस्तेमाल की गई भाषा भी काफी हद तक एक जैसी है. भोले बाबा के वकील ने भी ऐसा ही हलफनामा दिया था, जिसे उन्होंने जांच के दौरान नकार दिया.’

आयोग ने इतने बड़े कार्यक्रम की अनुमति देने में अधिकारियों की गंभीरता पर सवाल उठाया.

इसमें कहा गया है, ‘अनुमति देने से पहले मौके पर कोई निरीक्षण करने नहीं गया. अनुमति के लिए आवेदन जमा करने की प्रक्रिया एक दिन में पूरी कर ली गई. यह स्पष्ट है कि किसी भी पुलिस अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी ने कार्यक्रम की अनुमति देने के संबंध में कोई गंभीरता नहीं दिखाई… केवल कागजी कार्रवाई करने के बाद अनुमति दे दी गई.’

इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में गठित आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हेमंत राव और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी भावेश कुमार सिंह शामिल थे. आयोग ने यह भी सिफारिश की थी कि सरकार को भ्रम, मायाजाल, अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए कठोर सजा और भारी जुर्माने का कानून बनाना चाहिए.

रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘ऐसी घटना को सार्वजनिक चर्चा में लाने, सरकार को बदनाम करने या अन्य कोई लाभ प्राप्त करने के लिए एक सुनियोजित योजना के तहत आपराधिक साजिश रचे जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है तथा इस तथ्य को इस बात से भी बल मिलता है कि सभी प्रायोजित हलफनामों/आवेदनों में जांच की दिशा को भटकाने के इरादे से भ्रामक तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं, लेकिन अपराध की जांच कर रही एसआईटी द्वारा इस आपराधिक पहलू की गहराई से जांच की जाए तो यह विधिसम्मत होगा.’

रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा ने कहा कि स्थानीय प्रशासन की ओर से चूक शुरू से ही स्पष्ट थी.

भाजपा प्रवक्ता एचसी श्रीवास्तव ने कहा, ‘अब आयोग ने स्थानीय पुलिस और जिला प्रशासन की ओर से भी चूक की ओर इशारा किया है. अब सरकार रिपोर्ट का अध्ययन करेगी और उसके अनुसार दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी.’

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा है कि भाजपा सरकार प्रशासनिक विफलताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय हमेशा साजिश का कोण खोजने में व्यस्त रहती है, चाहे वह हाथरस हो या महाकुंभ.

सपा प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा, ‘हाथरस में जो कुछ भी हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था और प्रशासनिक विफलता का परिणाम था, लेकिन जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय भाजपा सरकार किसी भी तरह साजिश का कोण खोजने में अधिक उत्सुक है. चाहे वह हाथरस या महाकुंभ में प्रशासनिक विफलता हो, जवाबदेही तय नहीं की गई और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.’

बता दें कि जुलाई 2024 को हाथरस में अव्यवस्थित रूप से आयोजित एक धार्मिक सभा से निकलने का प्रयास करते समय मची भगदड़ में कम से कम 116 लोग मारे गए, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे. यह 2008 के बाद से भारत में हुई सबसे घातक घटना थी.

यह त्रासदी अलीगढ़ के कासगंज इलाके के 65 वर्षीय भोले बाबा द्वारा आयोजित एक सत्संग में हुई, जिनका मूल नाम सूरज पाल था और जो कभी उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल थे. अनुमान लगाया गया था कि कम से कम 2,50,000 लोग इस आयोजन स्थल पर मौजूद थे.

2 जुलाई 2024 को उत्तर प्रदेश सरकार ने भगदड़ की जांच के लिए एक विशेष जांच दल और एक न्यायिक आयोग का गठन किया. एसआईटी ने 9 जुलाई, 2024 को अपनी रिपोर्ट पेश की.

2 जुलाई को हाथरस के सिकंदराराऊ थाने में दर्ज एफआईआर में आरोपी के रूप में धर्मगुरु भोले बाबा का उल्लेख नहीं किया गया था. एफआईआर में नामजद दो महिला सेवादारों सहित 11 आरोपियों के खिलाफ हाथरस की अदालत में 1 अक्टूबर, 2024 को पुलिस द्वारा दायर 3,200 पृष्ठों की चार्जशीट में भी उनका नाम गायब था.

आयोग की रिपोर्ट में भीड़ प्रबंधन के लिए पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था में गंभीर खामियों की ओर इशारा करते हुए कहा गया कि आयोजकों ने पुलिस और प्रशासन को अपना कर्तव्य निभाने से रोका.

इसने पाया कि पुलिस, प्रशासन और कई गवाहों ने कहा कि ‘इस संबंध में एक घोषणा के बाद सभी समस्याओं को हल करने के लिए चरण रज (पैरों से छुई धूल) लेने के लिए भीड़ का दौड़ना’ घटना का कारण बना. लेकिन इसने इस चूक के लिए बाबा को दोषी ठहराने से परहेज किया.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भोले बाबा और उनके कई अनुयायियों ने इस बात से इनकार किया है कि ‘चरण रज’ लेने की कोई परंपरा थी. हालांकि, कुछ अनुयायी, जो लंबे समय से सत्संग में भाग ले रहे हैं, ने कहा कि नए अनुयायी ‘चरण रज’ लेते हैं… आयोग द्वारा जांचे गए वीडियो से यह बात साबित नहीं होती. हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अनुयायी ‘चरण रज’ लेते थे. यह भी नहीं कहा जा सकता कि यह घटना इसलिए हुई क्योंकि अनुयायी चरण रज लेना चाहते थे.’

आयोग ने कहा कि आयोजकों ने 80,000 लोगों की भीड़ का अनुमान लगाया था, लेकिन वास्तव में 250,000 से 300,000 लोग ही जुटे.

आयोग ने कहा कि आयोजकों ने अनुयायियों के लिए न्यूनतम सुविधाएं भी मुहैया नहीं कराईं और मीडिया को कार्यक्रम को कवर करने की अनुमति नहीं दी गई और न ही फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी की अनुमति दी गई.