अगर प्राधिकरण अपनी आंखें खुली रखते तो दिल्ली प्रदूषित शहर नहीं बनता: उच्च न्यायालय

न्यायालय ने 1706 औद्योगिक परिसरों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई सुनिश्चित करने या उन्हें दूसरी जगह ले जाने का निर्देश दिया है. न्यायालय ने कहा कि एमसीडी अपने कर्तव्यों के निर्वहन में गंभीर लापरवाही बरत रहा है.

(फोटो: पीटीआई/विकिपीडिया)

न्यायालय ने 1706 औद्योगिक परिसरों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई सुनिश्चित करने या उन्हें दूसरी जगह ले जाने का निर्देश दिया है. न्यायालय ने कहा कि एमसीडी अपने कर्तव्यों के निर्वहन में गंभीर लापरवाही बरत रहा है.

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नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शहर के प्राधिकरणों की खिंचाई करते हुए कहा है कि यदि वे अपनी आंखें खुली रखते, तो राष्ट्रीय राजधानी एक प्रदूषित शहर नहीं बनता.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की एक पीठ ने आवासीय और नॉन-कंफर्मिंग क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयों को इजाज़त देने में नगर निगम अधिकारियों की मिलीभगत पर नाराज़गी ज़ाहिर की.

पीठ ने दिल्ली के तीनों नगर निगमों को जांच करने और अदालत को उद्योगों का क्षेत्रवार ब्योरा अगले साल 19 फरवरी से पहले देने का निर्देश दिया है.

पीठ ने दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं बुनियादी ढांचा निगम लिमिटेड (डीएसआईआईडीसी) को 1706 औद्योगिक परिसरों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई सुनिश्चित करने, या उन्हें दूसरी जगह ले जाने का भी निर्देश दिया है. अदालत ने कहा कि यदि प्राधिकरण अपनी आंखें खुली रखते, तो दिल्ली एक प्रदूषित शहर नहीं बनता. यहां अस्पतालों में कम रोगी होते.

अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये निर्देश दिए. यह याचिका बवाना फैक्ट्री वेलफेयर एसोसिएशन ने दायर की है जिसमें औद्योगिक इकाई को आवासीय इलाके से दूसरे स्थान पर भेजने में प्राधिकरणों की विफलता को इंगित किया गया है.

याचिका में इस तथ्य का भी ज़िक्र किया गया है कि औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योगों को आवंटित किए गए औद्योगिक भूखंडों का किस तरह से आज तक उपयोग नहीं हुआ जबकि दूसरे क्षेत्रों में ये फैक्ट्रियां काम करती रहीं.

दिल्ली नगर निगम अपने कर्तव्यों के निर्वहन में कर रहा गंभीर लापरवाही: उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि उसके सामने आई ढेरों याचिकाओं में राष्ट्रीय राजधानी में अनधिकृत निर्माण के लगाए गए आरोपों का सही पाया जाना नगर निगमों द्वारा अपने कर्तव्य के निर्वहन में भारी लापरवाही दर्शाता है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने एक पंजीकृत सोसायटी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. सोसायटी ने याचिका में पूर्वी दिल्ली में अनधिकृत निर्माणों की ओर इशारा किया है.

पीठ ने पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) को उसके अंतर्गत आने वाले अपने क्षेत्रों में हुए अवैध निर्माणों का सर्वेक्षण कराने और कानून के अनुसार उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का निर्देश दिया.

पीठ ने इस संबंध में उसके द्वारा उठाए गए क़दमों पर स्थिति रिपोर्ट पेश करने का भी निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई अगले साल चार अप्रैल को होगी. न्यायालय ने कहा कि दिल्ली नगर निगम अधिनयम, 1957 के प्रावधानों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करना नगर निगमों की महती ज़िम्मेदारी है.

पीठ ने कहा, ‘वाकई, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस अदालत में अनधिकृत निर्माणों की ओर इशारा करने वाली रिट याचिकाओं की बाढ़ आ गई हैं. निर्विवाद रूप से सभी शिकायतें नगर निगमों की स्थिति रिपोर्टों में सही पाई जा रही है. ये सारी बातें नगर निगमों के अधिकारियों की गंभीर लापरवाही दर्शाती हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ) 

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