साल 2017 एक तरह से किसान आंदोलनों का साल रहा. पूरे बरस भर देश के किसी न किसी हिस्से में किसान आंदोलन करते रहे.
मीडिया में खबर है कि भाजपा ने ‘कर्नाटक फतह‘ की योजना बना ली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी तारीख की घोषणा से पहले पूरे राज्य के सभी ज़ोन में कम से कम 7 बड़ी रैलियां करेंगे.
दूसरी खबर यह है कि अकेले कर्नाटक में पिछले 5 साल में 3515 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इतनी ज्यादा संख्या में किसानों की आत्महत्या पर प्रधानमंत्री विचलित हुए हों, ऐसी कोई खबर नहीं है. ऐसी खबर कभी किसी प्रधानमंत्री के कार्यकाल में नहीं आती.
पिछले कुछ दशकों में किसानों की समस्या पर सबसे ज़्यादा बोलने वालों की सूची तैयार की जाए तो निश्चित तौर पर नरेंद्र मोदी पहले पायदान पर होंगे. लेकिन उन्हीं के कार्यकाल में किसान आत्महत्या की दर 42 फीसदी बढ़ गई है.
साल 2017 एक तरह से किसान आंदोलन का साल रहा. पूरे बरस भर देश के किसी न किसी हिस्से में किसान आंदोलन करते रहे. अपनी उपज को विरोध स्वरूप सड़कों पर फेंका. जून में मंदसौर के छह किसान आंदोलन के दौरान पुलिस की गोली से मारे गए. किसानों के 184 संगठनों ने मिलकर एक साझा मोर्चा बनाया और देश भर में किसान मुक्ति यात्रा निकाली.
हाल ही में इस मोर्चे की तरफ से दिल्ली में एक किसान संसद लगाई गई और किसानों के संघर्ष को आगे ले जाने का ऐलान किया गया. अभी साल के अंत मे असम के किसान नेता और आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई को जेल से रिहा किया गया, लेकिन किसानों की समस्या सुलझाने वाली उनकी या अन्य किसान संगठनों की कोई मांग मानी नहीं गई.
नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसानों से वादा किया था कि यदि वे सत्ता में आएंगे तो किसानों को कृषि में लागत से 50 प्रतिशत अधिक का मुनाफा देंगे, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू करेंगे, किसानों की आय दोगुनी करेंगे, वगैरह. लेकिन जबसे वे प्रधानमंत्री बने हैं, तबसे किसानों के बारे में शायद ही कोई बात की हो.
जब पूरे देश मे किसानों ने आय दोगुनी करने संबंधी वादा पूरा करने की मांग की तो सरकार ने ऐसा करने से मना कर दिया. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बार बार दोहराया कि केंद्र किसानों का कर्ज माफ नहीं कर सकता. राज्य अगर ऐसा करते हैं तो इसका खर्च वे खुद उठाएंगे. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में भी हलफनामा लगाया कि किसानों की कर्जमाफी संभव नहीं है. नतीजा यह है कि देश भर में किसान ताबड़तोड़ आत्महत्या कर रहे हैं.
कर्नाटक में 5 साल में 3515 किसान आत्महत्याएं
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, कर्नाटक में पिछले पांच सालों में 3515 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. कर्नाटक के कृषि विभाग के मुताबिक अप्रैल 2013 से लेकर नवंबर 2017 के बीच 3515 किसानों ने सूखे और फसल बर्बाद होने की वजह से आत्महत्या की है.
राज्य के कृषि निदेशक बीवाई श्रीनिवास का कहना है कि 2015-16 में आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आए. श्रीनिवास ने बताया कि आत्महत्या करने वाले किसानों में गन्ना किसान सबसे ऊपर हैं इसके बाद कपास और धान उत्पादक किसान हैं. यहां पर सत्ता में कांग्रेस की सरकार है लेकिन उसने कितने कदम उठाये इस पर चर्चा करना व्यर्थ है.
तेलंगाना में तबाही
बीते जून में जारी एक आंकड़े के मुताबिक, तेलंगाना राज्य बनने के बाद से अब तक वहां पर 3,000 से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग राज्य बनने के बाद से तेलंगाना में अब तक 3,026 किसानों ने आत्महत्या कर ली है. एक एनजीओ के हवाले से इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 में 792, 2015 में 1147 और 2016 में 784 किसानों ने आत्महत्या की. इस साल जनवरी से जून तक 294 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
छत्तीसगढ़ भी पीछे नहीं
छत्तीसगढ़ के विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार ने बताया कि छत्तीसगढ़ में मौजूदा वित्तीय वर्ष के आठ माह में 61 किसानों ने आत्महत्या की है. इसके अलावा पिछले ढाई सालों में राज्य में 1344 किसानों ने आत्महत्या कर ली.
महाराष्ट्र: 17 साल में 26,339 किसानों ने जान दी
महाराष्ट्र सरकार ने छह महीने पहले किसानों की क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा की थी, लेकिन क़र्ज़ माफ़ी का कर्मकांड भी किसानों के लिए नाकाफी साबित हुआ है. क़र्ज़ माफ़ी के बाद छह महीने में 1497 किसानों ने आत्महत्या कर ली है.
महाराष्ट्र में 2001 से अक्टूबर, 2017 के बीच करीब 26,339 किसानों ने आत्महत्या की है. इनमें से 12,805 ने कर्ज और बंजर जमीन के कारण यह कदम उठाया.
राजस्व मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने विधानसभा में कहा, वर्ष 2001 से अक्टूबर 2017 के बीच करीब 26,339 किसानों ने आत्महत्या की.
विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल ने किसानों की आत्महत्या का मामला उठाया था जिसके बाद चंद्रकांत पाटिल ने यह जानकारी दी. पाटिल ने कहा, इस साल एक जनवरी से 15 अगस्त के बीच मराठवाड़ा क्षेत्र के 580 किसानों ने आत्महत्या की. इस साल केवल बीड़ जिले में 115 किसानों की आत्महत्या की जानकारी मिली.
महाराष्ट्र में विधानसभा सत्र शुरू होने के पहले विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि राज्य में पिछले तीन साल की भाजपा सरकार के कार्यकाल में 10,000 किसानों ने फ़सल ख़राब होने और क़र्ज़ के चलते आत्महत्या कर ली है. सरकार द्वारा किसानों की कर्जमाफी की घोषणा के बाद भी राज्य में किसानों को कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है. संकटग्रस्त इलाकों में आत्महत्याएं जारी हैं.
एक आंकड़े के मुताबिक अकेले महाराष्ट्र में 1995 से लेकर अब तक 60,000 से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
मध्य प्रदेश में 13 साल में 15,129 ने की खुदकुशी
मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में सरकार ने सदन में बताया कि राज्य में पिछले 13 साल में 15,129 किसानों और खेतिहर मज़दूरों ने आत्महत्या की है.
मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए मध्य प्रदेश के गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह ने बताया था कि वर्ष 2004 से वर्ष 2016 के दौरान प्रदेश में 15,129 किसानों और खेतिहर मज़दूरों ने आत्महत्या की है. ये आंकड़े मध्य प्रदेश अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हैं.
यह ध्यान रखने की बात है कि जून में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसानों ने उग्र आंदोलन किया था और मंदसौर में पुलिस गोलाबारी में छह किसान मारे गए थे. उसके बाद भी लगातार किसान आत्महत्याएं दर्ज हुई हैं.
मध्य प्रदेश में दो किसानों ने की आत्महत्या
समाचार एजेंसी भाषा ने खबर दी है कि मध्य प्रदेश के सीहोर एवं हरदा जिलों में कर्ज से परेशान होकर दो किसानों ने जहर खाकर कथित रूप से आत्महत्या कर ली.
मृतक किसानों की पहचान हरजी लाल (60) एवं अंतरसिंह (45) के रूप में की गई है. इन दोनों की मौत दिसंबर के आखिरी सप्ताह को हुई है.
हरदा पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार सिंह ने बताया, ‘हरदा जिले की टिमरनी तहसील के ग्राम खोड्याखेड़ी में किसान अंतर सिंह राजपूत ने सल्फास खाकर ख़ुदकुशी कर ली.’ उन्होंने बताया कि मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने मामले में जांच शुरू कर दी है. पुलिस को किसान की जेब से सल्फास की शीशी मिली है.
सिंह ने बताया कि मामले में जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है कि उसने यह जघन्य कदम क्यों उठाया. वहीं, इछावार पुलिस थाना प्रभारी एम एस खान ने बताया, ‘सीहोर जिले की तहसील इछावर के ग्राम आर्या के किसान हरजी लाल की भोपाल में उपचार के दौरान मौत हो गई. उसने पिछले सप्ताह आर्या गांव स्थित अपने घर में जहरीला पदार्थ पिया था.’ उन्होंने कहा कि मामले की जांच चल रही है. अभी यह बताया जा सकता है कि उन्होंने यह कदम क्यों उठाया.
हरजी लाल के बेटे शिवचरण ने बताया, ‘मेरे पिताजी पर दो लाख रुपये से अधिक का कर्ज था, जिसको लेकर वह परेशान थे. इसी के चलते उन्होंने यह कदम उठा लिया.’
उत्तर प्रदेश में भी पहुंचा किसानों का काल
अभी तक देश के कुछ ही राज्यों- महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब आदि राज्यों में मुख्य रूप से किसान आत्महत्या कर रहे थे, लेकिन हाल के महीनों में सरकारी क़र्ज़ रूपी काल उत्तर प्रदेश भी पहुंच गया है.
कन्नौज में किसान ने फांसी लगाई
न्यूज18 की खबर के मुताबिक, ‘कन्नौज में आर्थिक तंगी और बैंक के कर्ज से परेशान एक किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. किसान को आलू की फसल में काफी घाटा हुआ और बैंक के कर्ज में भी उसे राहत नहीं मिली थी. हादसे के बाद किसान के घर में कोहराम मचा हुआ है. कन्नौज के छिबरामऊ तहसील के निगोह खास गांव के सर्वेश सविता ने देर रात गांव के बाहर एक पेड़ पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. परिजनों की मानें तो एक साल से परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ हुई थी. पिछले साल आलू में घाटा हुआ था.’
लखीमपुर में किसान ने जान दी
लखीमपुर में धौरहरा के गांव सोहरिया के 45 वर्षीय किसान कपिल वर्मा ने बुधवार को फांसी लगाकर जान दे दी. अमर उजाला की ख़बर के मुताबिक, उन पर करीब 25 लाख का कर्ज था, 20 लाख रुपये गांव के सूदखोरों का और 5 लाख रुपये बैंक का.
उक्त ख़बर के मुताबिक, कपिल के घर वालों का कहना है कि गन्ने की फसल के लिए उन्होंने काफी कर्ज ले रखा था. एक तरफ सूदखोरों का दबाव था, दूसरी तरफ पर्ची न आने से गन्ने की बिक्री भी नहीं हो पा रही थी जिससे वह तनाव में थे. बुधवार की सुबह करीब आठ बजे वह खेत पर जाने की बात कहकर घर से निकले थे. दोपहर तक घर नहीं पहुंचे तो परिवार के लोगों ने उनकी तलाश शुरू की. अपराह्न तीन बजे गांव के निकट ही उनके ही बाग में एक पेड़ से शव लटकता मिला.’
धौरहरा के एसडीएम घनश्याम त्रिपाठी ने अमर उजाला से कहा, ‘कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या करने की बात सामने आ रही है. पूरे मामले की जांच कराई जाएगी. जो दोषी होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी.’
प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी अच्छे दिन आने की बात कहते थे, अब न्यू इंडिया की बात करते हैं. साल 2015 में 12,602 किसानों ने आत्महत्या की थी.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में कहा गया कि नरेंद्र मोदी के शासन काल में 2014-15 के दौरान किसानों के आत्महत्या करने की दर 42 प्रतिशत बढ़ गई.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का वर्ष 2016 का आंकड़ा अभी जारी नहीं हुआ है. हालांकि, दूसरे आंकड़े ब्यूरो ने जारी कर दिए. इस पर विपक्ष का कहना है कि बीजेपी के दबाव में ब्यूरो ने ऐसा किया ताकि चुनावी नुकसान न उठाना पड़े.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, पिछले 22 सालों में देश भर में तकरीबन सवा तीन लाख से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. भारत के कई राज्यों में हज़ारों की संख्या में किसान क़र्ज़, फ़सल की लागत बढ़ने, उचित मूल्य न मिलने, फ़सल में घाटा होने, सिंचाई की सुविधा न होने और फ़सल बर्बाद होने के चलते आत्महत्या कर लेते हैं.
ब्यूरो के मुताबिक, 2015 में कृषि से जुड़े 12,602 किसानों ने आत्महत्या की. 2014 में यह संख्या 12,360 थी. इसके पहले 2013 में 11,772, 2012 में 13,754, 2011 में 14 हजार, 2010 में 15 हजार से अधिक, 2009 में 17 हजार से अधिक किसानों ने कृषि संकट, क़र्ज़, फ़सल ख़राब होने जैसे कारणों के चलते आत्महत्या कर ली.
उधर मरते हुए किसानों का अपमान करने का सिलसिला भी जारी है. भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय का कहना है कि किसानों की आत्महत्या की वजह सरकार या फसल नहीं है.
दैनिक भास्कर के मुताबिक, ‘भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने शुक्रवार को हरदा में सरकार को क्लीन चिट देते हुए कहा कि प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का कारण सरकार या फसल नहीं है. इसके और भी कारण हो सकते हैं. शिवराज सरकार ने किसानों के हित में बहुत से काम किए हैं और कर रही है. आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी की सरकार तीन चौथाई बहुमत से बनेगी.’
उधर, टीकमगढ़ के बरगोला खिरक में एक किसान ने आर्थिक तंगी, सूखे और कम मजदूरी जैसी परेशानियों से आजिज़ आकर आत्महत्या कर ली.
नई दुनिया के अनुसार, ‘किसान मिट्ठू कुशवाहा के पुत्र धनीराम कुशवाहा (28) ने घर के पास ही लगे नीम के पेड़ के सहारे रात करीब 12 बजे फांसी लगा ली. मृतक के पिता किसान मिट्ठू कुशवाह ने बताया कि घर पर उनके नाम मात्र दो एकड़ जमीन है. जिस पर इस सूखे के समय जैसे तैसे ही खेती चलती थी, लेकिन सूखा होने से इस साल कुछ भी फसल नहीं हुई, उसका मुआवजा भी अभी तक नहीं मिल पाया, स्थिति इतनी खराब चल रही थी कि उनका और उनके परिवार का भरण पोषण जैसे-तैसे चल पा रहा है. उनका पुत्र मजदूरी कर अपना भरण पोषण कर रहा था. पिता मिट्ठू ने बताया कि धनीराम को दिल्ली जाना था, जहां वह कुछ काम कर सके. लेकिन उन्होंने उससे कहा कि यहीं मजदूरी करो लेकिन उसे यहां भी मजदूरी कम मिल रही थी. धनीराम की आर्थिक स्थिति भी काफी खराब हो गई. जिससे परेशान होकर उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. सुबह किसान के पुत्र को शव वाहन भी नहीं मिला, जिससे उसे खटिया पर रखकर पैदल अस्पताल ले गए.’
ओडिशा के नौपाड़ा में फसल खराब होने के चलते एक किसान ने आत्महत्या कर ली. ओडिशा टीवी के मुताबिक किसान अगनू राउत पर 50,000 का कर्ज था और कीटनाशक एवं बारिश के कारण उसकी फसल भी खराब हो गई थी.
प्रधानमंत्री जी अभी अभी गुजरात और हिमाचल जीत कर लौटे हैं, अब कर्नाटक जा रहे हैं. गुजरात में उन्होंने 50 से अधिक रैलियां कीं. अब कर्नाटक में रैलियां करेंगे. उसके अलावा 7 अन्य राज्यों में इसी वर्ष चुनाव है. फिर उसके बाद लोकसभा चुनाव आएगा. उन्हें पूरा भारत जीतना है.
फिर मोहन भागवत और अनंत कुमार हेगड़े की घोषणाओं के मुताबिक संविधान बदल कर हिंदू राष्ट्र के प्रोजेक्ट को भी आगे बढ़ाना है. हज़ारों किसानों की मौत पर ध्यान देने के लिए मोदी जी के पास वक़्त नहीं है.
क्या यही न्यू इंडिया है जहां देश के प्रधानमंत्री एक के बाद एक चुनाव लड़ेंगे और किसान हज़ारों की संख्या में आत्महत्या करते रहेंगे?