2016 में भाजपा में शामिल हुए कर्नल दीप्तांशु चौधरी ने कहा कि भाजपा की प्राथमिकता विकास की बजाय जनता के बीच दरार पैदा करना है.
2016 में पश्चिम बंगाल विधानसभा से ऐन पहले भाजपा में शामिल हुए कर्नल (रिटा) दीप्तांशु चौधरी ने पार्टी छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है. चौधरी बंगाल में भाजपा की ‘इंटेलेक्चुल सेल’ (बुद्धिजीवी इकाई) के संयोजक थे.
द हिंदू की ख़बर के अनुसार वे शनिवार को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये.
गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव चौधरी भाजपा के टिकट पर पश्चिम बर्धमान की आसनसोल दक्षिण सीट से चुनाव लड़े थे, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
चौधरी कारगिल युद्ध के समय सेना का हिस्सा थे, जिन्होंने विधानसभा चुनाव प्रचार में कारगिल से जुड़ी कहानियां याद कर राष्ट्रवाद की भावना जगाने का प्रयास किया था.
द हिंदू से बात करते हुए चौधरी ने कहा, ‘मैं गलत पार्टी में था जिसकी प्राथमिकता विकास के बजाय लोगों में फूट डालना और ध्रुवीकरण करना है. मैं तृणमूल इसलिए जॉइन कर रहा हूं क्योंकि ये धर्म के परे जाकर विकास के लिए काम करती है.’
सूत्रों के अनुसार प्रदेश में भाजपा के नेताओं को पार्टी के इंटेलेक्टुअल सेल के ख़राब प्रदर्शन के लिए केंद्रीय नेतृत्व की कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी. हालांकि चौधरी ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की.
वहीं तृणमूल महासचिव और राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा, ‘कर्नल चौधरी तृणमूल में इसलिए शामिल हुए हैं क्योंकि वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विकास अभियान का हिस्सा बनना चाहते थे.’
पार्थ चटर्जी ने चौधरी के भाजपा छोड़ने के कारण के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन भाजपा के महासचिव सायंतन बासु का कहना है कि पार्टी उन्हें पद से हटानेवाली थी.
बासु ने कहा, ‘कर्नल चौधरी इस सेल के संयोजक के बतौर बिल्कुल सक्रिय नहीं थे. हम उन्हें जल्द हटाने ही वाले थे.’
बासु ने यह भी बताया कि की बीते 6 महीनों से कर्नल चौधरी पार्टी की गतिविधियों से दूरी बनाये हुए थे, साथ ही इस सेल की बैठकों में भी नहीं जा रहे थे.
दैनिक जागरण के अनुसार चौधरी के साथ दो और नेताओं ने तृणमूल का हाथ थामा है. कई वाणिज्यिक मंडलों के क्षेत्रीय अध्यक्ष रह चुके सुपर्ण मैत्रा व कांग्रेस नेता मृणाल सिंह राय की बहन सोनाली सिंह राय भी शनिवार को तृणमूल में शामिल हुए हैं. ज्ञात हो कि ये तीनों नेता मुकुल रॉय के करीबी माने जाते हैं.