‘सरकार द्वारा लाया जा रहा बिल जनविरोधी है इससे ​मेडिकल क्षेत्र में भ्रष्टाचार बढ़ेगा’

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 (मेडिकल बिल) को विचार के लिए संसद की स्थायी समिति को भेज दिया है.

(फोटो साभार: www.ima-india.org)

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 (मेडिकल बिल) को विचार के लिए संसद की स्थायी समिति को भेज दिया है.

(फोटो साभार: www.ima-india.org)
(फोटो साभार: www.ima-india.org)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 (मेडिकल बिल) को मंगलवार को विचार के लिए संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया. समिति इस बारे में अपनी रिपोर्ट बजट सत्र से पहले पेश करेगी. संसद का बजट सत्र इस महीने के अंत में शुरू होने की संभावना है. इस विधेयक का इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने विरोध किया है.

द वायर के साथ बातचीत में आईएमए के पूर्व अध्यक्ष और हार्ट केयर फाउंडेशन के वर्तमान अध्यक्ष डॉक्टर केके अग्रवाल ने बताया कि इस बिल को ‘राष्ट्रीय’ आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक नहीं कहा जाना चाहिए क्योंकि इसमें राष्ट्र के हर राज्य के प्रतिनिधि नहीं होंगे, न ही उनकी कोई सुनवाई होगी.

डॉक्टर केके अग्रवाल के मुताबिक यह बिल पूरी तरह से एसोसिएशन और डॉक्टर के खिलाफ होगा. साथ ही इसका प्रभाव मेडिकल के छात्रों पर भी पड़ेगा.

उन्होंने कहा, ‘यह गरीब विरोधी, जनविरोधी, लोकतंत्र विरोधी है. इससे देश में मेडिकल क्षेत्र बर्बाद हो जाएगा. डॉक्टर पूरी तरह से नौकरशाही एवं गैर चिकित्सक प्रशासकों के प्रति जवाबदेह हो जाएंगे.’

अग्रवाल ने बताया कि इस विधेयक में भ्रष्टाचार बढ़ने की भी बहुत आशंका है. प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को अपने तरीके से 40 प्रतिशत सीटों पर फीस निर्धारित करने देना पूरी तरह से अनुचित है क्योंकि इससे प्राइवेट मेडिकल कॉलेज अपनी मर्जी की फीस वसूलेंगे. जिससे आम आदमी के लिए चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करना लगभग नामुमकिन होगा. यह बिल प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की जुबान बोलेगा और ‘प्रो प्राइवेट मैनेजमेंट’ होगा जिससे सीटों के माध्यम से भ्रष्टाचार का नया रास्ता खुलेगा.

उनके अनुसार, ‘राज्य मेडिकल काउंसिल जो राज्य के मेडिकल कॉलेजों पर नियंत्रण करती है उसका वजूद लगभग खत्म हो जाएगा. इसमें डॉक्टर चुनाव की प्रक्रिया से लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाते थे बल्कि अब सारे काम सरकार द्वारा नियुक्त लोग करेंगे जो सरकार के हित में ही फैसले लेंगे.’

अग्रवाल ने बताया, ‘अगर कोई व्यक्ति किसी सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है तो वह उसका कर्मचारी होता है वो उसके खिलाफ कोई फैसला कैसे लेगा? यह पूरी तरह से गलत है. इससे हमारी स्वायत्तता छिन जाएगी आखिर एक स्वायत्त काउंसिल, निर्देशों के अनुसार कैसे चल सकती है.’

उन्होंने यह भी कहा कि यह बिल विज्ञान के भी खिलाफ है क्योंकि इसमें गैर वैज्ञानिक पद्धति को आयुष नाम से एलोपैथी में मिलावट की जा रही है. यह बिल मरीजों के जीवन के साथ भी खिलवाड़ कर सकता है.