बाबरी ध्वंस मामले में हाईकोर्ट ने आडवाणी समेत शीर्ष भाजपा नेताओं को आरोप मुक्त कर दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि इन सभी पर फिर आपराधिक साज़िश रचने का केस चल सकता है.
बाबरी मस्ज़िद ध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत 13 नेताओं की मुश्किलें फिर से बढ़ सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर 22 मार्च को फ़ैसला सुनाएगा. इन नेताओं पर बाबरी ध्वंस मामले में आपराधिक साज़िश रचने का मुक़दमा चल सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा है कि इन नेताओं को सिर्फ़ तकनीकी आधार पर कोई राहत नहीं दी जा सकती है. इसके साथ ही कोर्ट ने सीबीआई से इस मामले में सभी 13 आरोपियों के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश की पूरक चार्जशीट दाखिल करने को कहा है.
जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस आरएफ नरीमन की पीठ ने कहा कि विवादित ढांचा गिराए जाने की घटना के बाद दर्ज दो प्राथमिकी से संबंधित मामलों पर संयुक्त सुनवाई करने का आदेश देने का विकल्प भी है.
पीठ ने कहा, तकनीकी आधार पर 13 व्यक्तियों को आरोप मुक्त किया गया था. आज, हम कह रहे हैं कि दोनों मुकदमों को क्यों नहीं हम एक-साथ कर देते और इनकी संयुक्त रूप से सुनवाई कराएं. पीठ ने कहा, हम तकनीकी आधार पर आरोप मुक्त करना स्वीकार नहीं करेंगे और हम पूरक आरोप पत्र की अनुमति देंगे. शीर्ष अदालत मौखिक रूप से ये टिप्पणी की और फिर अगली सुनवाई के लिए 22 मार्च की तारीख़ तय कर दी है.
हालांकि, दोनों प्राथमिकियों को एक में मिलाने का आरोपियों के वकील ने विरोध किया और कहा कि दोनों मामलों में अलग-अलग व्यक्ति आरोपी हैं और इनके मुकदमों की सुनवाई अलग-अलग स्थानों पर काफी आगे बढ़ चुकी है. वकीलों का कहना था कि इसकी संयुक्त सुनवाई का मतलब नए सिरे से कार्यवाही शुरू करना होगा.
मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित 13 व्यक्तियों को आपराधिक साजिश के आरोप से मुक्त कर दिया गया था. इस मामले की सुनवाई रायबरेली की विशेष अदालत में हो रही है. दूसरा मामला अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ है जो विवादित ढांचे के ईद-गिर्द थे. इस मुकदमे की सुनवाई लखनऊ में हो रही है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में इन सभी नेताओं को आपराधिक षडयंत्र के आरोपों से मुक्त कर दिया था. सीबीआई ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और हाईकोर्ट के आदेश को ख़ारिज़ करने का आग्रह किया था. सीबीआई की उसी याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह संकेत दिया है कि इन आरोपियों को मात्र तकनीकी आधार पर राहत नहीं दी जा सकती है.
Babri Masjid case: SC expresses concern over delay in trial against people involved in demolition of Babri,favours joint trial of accused. pic.twitter.com/cEaJJo4JiW
— ANI (@ANI) March 6, 2017
छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराने के मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और 19 अन्य के खिलाफ साज़िश के आरोप ख़त्म करने के आदेश के विरुद्ध हाजी महबूब अहमद (अब मृत) और सीबीआई ने अपील दायर की थी.
सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी कहा कि पूरक आरोप पत्र आरोप मुक्त किए गए 13 व्यक्तियों के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि आठ व्यक्तियों के ख़िलाफ़ दायर किया गया था.
भाजपा नेताओं आडवाणी, जोशी, उमा भारती के अलावा कल्याण सिंह (इस समय राजस्थान के राज्यपाल), शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे और विश्व हिंदू परिषद के नेता गिरिराज किशोर (दोनों अब मृत) के खिलाफ भी साजिश के आरोप ख़त्म कर दिए गए थे.
इनके अलावा, विनय कटियार, विष्णु हरि डालमिया, सतीश प्रधान, सीआर बंसल, अशोक सिंघल (अब मृत), साध्वी रितंबरा, महंत अवैद्यनाथ (अब मृत), आरवी वेदांती, परमहंस राम चंद्र दास (अब मृत), जगदीश मुनि महाराज, बीएस शर्मा, नृत्य गोपाल दास, धरम दास, सतीश नागर और मोरेश्वर सावे (अब मृत) के ख़िलाफ़ भी साज़िश के आरोप ख़त्म कर दिए गए थे.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 20 मई, 2010 को विशेष अदालत का फैसला बरक़रार रखते हुए इन सभी के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी के तहत आपराधिक साज़िश का आरोप हटा दिया था. इस आदेश के ख़िलाफ़ दायर अपील में हाईकोर्ट का आदेश निरस्त करने का अनुरोध किया गया है.
सीबीआई ने सितंबर, 2015 को शीर्ष अदालत से कहा था कि उसके निर्णय लेने की प्रक्रिया को किसी ने भी प्रभावित नहीं किया है और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के ख़िलाफ़ इस मामले में आपराधिक साज़िश के आरोप उसकी पहल पर नहीं हटाए गए थे.
जांच एजेंसी ने यह भी कहा था कि उसके निर्णय लेने की प्रक्रिया सीबीआई की अपराध मैनुअल के प्रावधानों के अनुरूप होती है और निर्णय लेने की प्रक्रिया में ऐसी व्यवस्था है जो हर स्तर पर अधिकारियों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने और तर्कसंगत सिफारिशें करने की अनुमति देती है.
हाईकोर्ट के मई, 2010 के आदेश में कहा गया था कि विशेष अदालत के चार मई, 2001 के आदेश के ख़िलाफ़ सीबीआई की पुनरीक्षण याचिका में कोई दम नहीं है. विशेष अदालत ने इसी आदेश के तहत आपराधिक साजिश के आरोप हटाए थे.
सीबीआई ने अपने आरोप पत्र में आडवाणी और 20 अन्य आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए (विभिन्न वर्गो के बीच कटुता पैदा करना), धारा 153-बी (राष्ट्रीय एकता को ख़तरा पैदा करने वाले दावे करना) और धारा 505 (सार्वजनिक शांंति भंग करने या विद्रोह कराने की मंशा से गलत बयानी करना, अफवाह आदि फैलाना) के तहत आरोप लगाए थे.
सीबीआई ने बाद में धारा 120-बी के तहत आपराधिक साजिश का भी आरोप लगाया था जिसे विशेष अदालत ने निरस्त कर दिया था.
एनडीटीवी की ख़बर के मुताबिक, ‘लालकृष्ण आडवाणी की ओर से इसका विरोध किया गया और कहा गया कि इस मामले में 183 गवाहों को फिर से बुलाना पड़ेगा जो काफ़ी मुश्किल है. कोर्ट को साज़िश के मामले की दोबारा सुनवाई के आदेश नहीं देने चाहिए. वहीं सीबीआई ने कहा कि वह दोनों मामलों का साथ ट्रायल के लिए तैयार है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अंतिम सुनवाई 22 मार्च को रखी है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)