आरएसएस प्रशिक्षण शिविर में पूर्व जज केटी थॉमस ने कहा, ‘अगर किसी संगठन को आपातकाल से देश को मुक्त कराने के लिए क्रेडिट दिया जाना चाहिए, तो मैं आरएसएस को दूंगा.’
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज केटी थॉमस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तारीफ़ करते हुए कहा कि संविधान, लोकतंत्र और सेना के बाद आरएसएस की वजह से ही देश में लोग सुरक्षित हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार रविवार को केरल के कोट्टायम में आरएसएस प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करते हुए थॉमस ने कहा, ‘अगर किसी संगठन को आपातकाल से देश को मुक्त कराने के लिए क्रेडिट दिया जाना चाहिए, तो मैं आरएसएस को दूंगा.’ थॉमस ने कहा उन्हें लगता है कि संघ अपने कार्यकर्ताओं को देश की सुरक्षा के लिए अनुशासन सिखाता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘सांपों के पास उनपर हमलों से बचाव के लिए एक हथियार के रूप में ज़हर होता है. मैं शारीरिक प्रशिक्षण के लिए आरएसएस की सराहना करता हूं और विश्वास करता हूं कि शारीरिक ताकत हमलों के खिलाफ (स्वयं) की रक्षा के लिए होती है. मैं समझता हूं कि आरएसएस के शारीरिक प्रशिक्षण का मकसद हमलों के समय देश और समाज की रक्षा करना है.’
पूर्व जज थॉमस ने आपातकाल पर बोलते हुए कहा, ‘भारत में लोग क्यों सुरक्षित हैं? तो मैं कहूंगा कि देश में एक संविधान है, लोकतंत्र है, सशस्त्र बल हैं और चौथा आरएसएस है. आपातकाल के खिलाफ आरएसएस के मजबूत और सुव्यवस्थित कार्य के चलते प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी समझ गईं कि यह लंबे समय तक नहीं चलेगा.’
धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पर थॉमस ने कहा कि यह विचार धर्म से दूर नहीं रखा जाना चाहिए और संविधान ने धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित नहीं किया है.
उन्होंने कहा, ‘अल्पसंख्यक अपनी सुरक्षा के लिए धर्मनिरपेक्षता का उपयोग करते हैं, लेकिन धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा उस तुलना में बहुत अधिक है. इसका मतलब है कि हर व्यक्ति की गरिमा को संरक्षित किया जाना चाहिए. एक व्यक्ति की गरिमा पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण, प्रभाव और गतिविधियों से ऊपर देखी जानी चाहिए.’
उन्होंने आगे कहा, धर्म के प्रति धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म की रक्षा के लिए है, इस बात से मैं सहमत नहीं हूं. भारत में हिंदू शब्द एक धर्म का उदाहरण है, लेकिन यह एक संस्कृति का विकल्प होना चाहिए. यही कारण है कि हिंदुस्तान शब्द का प्रयोग किया जा रहा है. अतीत में हिंदुस्तान ने सभी को प्रेरित किया. अब यह शब्द आरएसएस और भाजपा के लिए अलग रखा करके देखा जा रहा है.
उन्होंने संविधान पर कहा, ‘संविधान में धर्म का पांचवां स्थान है और धर्म का मौलिक अधिकार केवल एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के बाद आना चाहिए.’
थॉमस ने कहा कि भारत एकमात्र देश है जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए एक आयोग है. अल्पसंख्यकों के वर्ग को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है. लेकिन भारत में अल्पसंख्यक की अवधारणा धार्मिक विश्वास और जनसंख्या आकार पर आधारित है.
उन्होंने कहा, ‘अल्पसंख्यक केवल तब असुरक्षित महसूस करते हैं, जब वे अधिकारों की मांग करना शुरू करते हैं, जो बहुसंख्यक वर्गों के पास भी नहीं है.’