फिल्म देखने वालों को थियेटर से ही खाने की सामग्री क्यों ख़रीदनी चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट

महाराष्ट्र के सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्सों में बाहर का खाना ले जाने की मनाही के नियम को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

महाराष्ट्र के सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्सों में बाहर का खाना ले जाने की मनाही के नियम को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को उस जनहित याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया है जिसमें प्रदेश भर में थियेटरों और मल्टीप्लेक्सों में बाहर से खाने का सामान ले जाने की मनाही को चुनौती दी गई है.

बृहस्पतिवार को मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पूछा कि जब सुरक्षा गार्ड सिनेमा हॉल में घुसने वाले लोगों की तलाशी लेते हैं और उनके बैग की जांच करते हैं तब उसमें से खाने के सभी सामान को निकालकर अपने पास रखने और उन्हें थियेटर से खाने की सामग्री ख़रीदने के लिए मजबूर करने की क्या आवश्यकता है.

न्यायमूर्ति आरएम बोर्डे और राजेश केतकर की एक पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तीन हफ्ते के अंदर बताए कि राज्य के अधिकांश सिनेमाघरों में लगाई गई इस तरह की पाबंदी के पीछे का क्या तर्क है और यह भी कि क्या यह क़ानून के मुताबिक है या नहीं.

इस मामले में मुंबई निवासी जैनेंद्र बक्शी ने अपने वकील आदित्य प्रताप के ज़रिये जनहित याचिका दायर की थी.

याचिका में दावा किया गया कि ऐसा कोई कानूनी या वैधानिक प्रावधान नहीं है जो सिनेमाघरों के अंदर अपना पानी या खाद्य सामग्री ले जाने से रोकता हो.

प्रताप ने अदालत को यह भी बताया कि महाराष्ट्र सिनेमा (नियामक) नियम सिनेमाघरों और प्रेक्षागृहों के अंदर फेरी वालों और खाने के सामान की बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है.

याचिका में कहा गया है कि थियेटर में बाहर का खाना लाने की मनाही पर विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिक और वे लोग प्रभावित होते हैं जो चिकित्सकीय कारणों से बाहर का खाना न खाने के लिए बाध्य होते हैं. सिनेमाघरों में खाने के स्टॉलों पर जंक फूड बेचे जाते हैं.

पीआईएल में कहा गया है कि थियेटर मालिकों, प्रबंधन और राज्य की चिंता का विषय वहां पहुंच रहे लोगों की सुरक्षा और कुशलता होनी चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)