लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री ने बताया कि पिछले पांच वर्ष की अवधि के दौरान बैंकों के 2,30,287 करोड़ रुपये के क़र्ज़ को बट्टे खाते में डाल दिया गया.
नई दिल्ली: सरकार ने शुक्रवार को कहा कि देश के वाणिज्यिक बैंकों ने पिछले पांच वर्षों की अवधि में 2,30,287 करोड़ रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया यानी बैंकों ने अब इस राशि को वापस पाने की उम्मीद छोड़ दी है.
लोकसभा में सीएन जयदेवन और के. मरगथम के प्रश्न के लिखित उत्तर में वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने यह जानकारी दी.
उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार मार्च, 2016 को समाप्त हुए पिछले पांच वर्ष की अवधि के दौरान अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के 2,30,287 करोड़ रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया गया.
मंत्री ने आरबीआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि वित्त वर्ष 2017-18 की पहली छमाही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा 53,625 करोड़ रुपये की राशि को बट्टे खाते में डाला गया.
उल्लेखनीय है कि सितंबर तिमाही तक नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) बढ़कर 10,000 अरब रुपये हो गया है. यह राशि बैंक के कुल कर्ज के 10 प्रतिशत से भी ज्यादा है.
रिजर्व बैंक ने परियोजनाओं के लिए कर्ज देते समय उनकी ठीक ढंग से जांच-परख नहीं करने के लिए मर्चेंट बैंकरों के बीच हितों के टकराव को अहम वजह बताया है जिसकी वजह से बैंकों का गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है.
चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के लिए अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में रिजर्व बैंक ने कहा है, बैंकों में कर्ज नुकसान का जो संकट खड़ा हुआ है उससे दीर्घावधि परियोजनाओं के लिए कर्ज देते समय उनकी जांच परख में खामियां उजागर हुई हैं.
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि मार्च तिमाही तक बैंकों का सकल एनपीए 10.8 प्रतिशत तक पहुंच सकता है और सितंबर 2018 तक यह 11.1 प्रतिशत हो सकता है. सकल एनपीए में इस वृद्धि के लिए निजी क्षेत्र के बैंकों पर भी दोष मढ़ा गया है जो कि अपने फंसे कर्ज के आंकड़े को कम बताते रहे हैं. इस साल सितंबर तिमाही में सकल एनपीए छह माह पहले के 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 10.2 प्रतिशत पर पहुंच गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)