गुजरात से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी और जेएनयू के छात्रनेता उमर ख़ालिद ने भीमा-कोरेगांव हिंसा के संबंध में भड़काऊ भाषण देने के आरोपों को नकारा.
नई दिल्ली: गुजरात से निर्दलीय विधायक और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने इस आरोप को नकारा कि पुणे में उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया. उन्होंने कहा कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) उन्हें निशाना बना रहे हैं.
बीते 31 दिसंबर को पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों के मामले में मेवाणी और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के छात्र नेता उमर ख़ालिद के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज किए जाने के एक दिन बाद गुजरात से विधायक मेवाणी ने कहा कि उन्हें साज़िश की बू आ रही है.
ख़ालिद ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी तौर पर जुड़े असल आरोपी को बचाने की कोशिश के तहत उन्हें निशाना बनाया जा रहा है.
शुक्रवार को राजधानी नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान मेवाणी ने कहा, ‘न तो मैंने कोई भड़काऊ भाषण दिया और न ही महाराष्ट्र में बंद में हिस्सा लिया. किसी संवैधानिक विशेषज्ञ को मेरे भाषण का विश्लेषण करने और कुछ भी अभद्र ढूंढने को कहा जाए.’
मेवाणी ने कहा कि 31 दिसंबर को हुई जनसभा के बाद उन्हें माइग्रेन (सिरदर्द) हो गया.
उन्होंने कहा, ‘जनसभा के बाद मुझे भयंकर माइग्रेन हो गया. न तो मैंने मुंबई में किसी गतिविधि में हिस्सा लिया, न ही बंद में हिस्सा लिया और न ही भीमा-कोरेगांव गया.’
नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में उन्होंने पत्रकारों को बताया, ‘इसके बावजूद, जब मुझे निशाना बनाया जा रहा है तो मुझे साज़िश की बू आ रही है. भाजपा और संघ मुझे निशाना बना रहे हैं.
बीते 31 दिसंबर को पुणे में भीमा-कोरेगांव की लड़ाई के 200 साल पूरे होने की याद में आयोजित कार्यक्रम ‘एलगार परिषद’ में मेवाणी और ख़ालिद ने हिस्सा लिया था.
पुणे के एक निवासी की ओर से दाख़िल शिकायत के मुताबिक, ‘उनके भड़काऊ भाषणों का मक़सद समुदायों के बीच दुर्भावना पैदा करना था, जिसकी वजह से एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव में हिंसा हुई.’
ख़ालिद ने बताया, ‘भीमा-कोरेगांव पुणे से 30 किलोमीटर की दूरी पर है और 31 दिसंबर को हुई जनसभा के बाद मैंने कहीं नहीं बोला. हिंसा का वीडियो साक्ष्य होने के बावजूद यह हास्यास्पद है कि हमें निशाना बनाया जा रहा है. यह संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे से ध्यान भटकाने के एजेंडे का हिस्सा है.’
गौरतलब है कि समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे और शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के संभाजी भिड़े भीमा-कोरेगांव में सुनियोजित तरीके से हिंसा कराने के आरोपों से घिरे हैं.
ख़ालिद ने कहा, ‘महाराष्ट्र में जनवरी 2014 में हुई एक रैली में मोदी ने संभाजी भिड़े को तपस्वी या महापुरुष कहा था. इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस भी मौजूद थे.’
गुजरात की वडगाम विधानसभा सीट से हाल ही में विधायक चुने गए मेवाणी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की कि वह देश के दलितों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा पर चुप्पी तोड़ें.
मेवाणी ने कहा, ‘ख़ुद को आंबेडकरवादी बताने वाले पीएम मोदी चुप क्यों हैं उन्हें अपना रुख़ साफ करना चाहिए कि दलितों को शांतिपूर्ण तरीके से रैलियां करने का हक़ है कि नहीं.’
अपनी सामाजिक न्याय रैली के दौरान मेवाणी ने कहा कि वह मनुस्मृति एवं संविधान की प्रतियां लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय पीएमओ जाएंगे और मोदी से कहेंगे कि वह दोनों में से किसी एक को चुनें.
200 साल पहले लड़ी गई लड़ाई की वर्षगांठ पर पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के विरोध में दलित संगठनों की ओर से कराए गए बंद के कारण तीन जनवरी को महाराष्ट्र में आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था.
दलित संगठन भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में महाराष्ट्र के पेशवा के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों की जीत को याद करते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि महार समुदाय के सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी के बलों का हिस्सा थे.
पेशवा ब्राह्मण थे और भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में मिली इस जीत को दलितों की जीत के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है. यह लड़ाई एक जनवरी 1818 को लड़ी गई थी.
इस युद्ध की 200वीं सालगिरह पर दलित संगठनों ने भीमा-कोरेगांव में बीते एक जनवरी का कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसका कुछ लोगों ने विरोध किया था.
इसके बाद भड़की हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. दलित संगठनों की ओर से महाराष्ट्र बंद का आयोजन किया गया था. महाराष्ट्र बंद के दौरान हुई हिंसा ने महाराष्ट्र के दूसरे शहरों को भी अपनी चपेट में ले लिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)