बेघर शहरियों के लिए आश्रय के इंतज़ामों से जुड़ी एक रिपोर्ट में सरकार ने राज्यसभा में स्वीकार किया कि बेघरों की संख्या और मौजूदा आश्रय स्थलों की क्षमता में बहुत अंतर है.
नई दिल्ली: देश में शहरी आबादी के बढ़ते बोझ के साथ ही बेघरों की संख्या में इज़ाफा और इन्हें आश्रय मुहैया कराना सरकार के लिए चुनौती बन गया है.
आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय की ओर से हाल ही में संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र में पेश आंकड़ों से साफ जाहिर है कि शहरी क्षेत्रों में बेघरों की संख्या और इनके लिए आश्रय की उपलब्धता के बीच की खाई बहुत चौड़ी हो गई है.
शहरी बेघरों के लिए आश्रय के इंतजामों से जुड़ी एक रिपोर्ट में मंत्रालय ने राज्यसभा में स्वीकार किया कि बेघरों की संख्या और मौजूदा आश्रय स्थलों की क्षमता में फिलहाल बहुत अंतर है.
शहरी बेघरों को आश्रय मुहैया कराने के लिए उच्चतम न्यायालय के आदेश पर नवंबर 2016 में मंत्रालय द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के शहरी क्षेत्रों में 90 फीसदी बेघरों के पास आश्रय का कोई ठिकाना नहीं है.
रिपोर्ट के हवाले से सरकार द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों के बारे में बताया गया है कि राज्य सरकारों की इस मामले में उदासीनता, इस दिशा में चल रहे काम की धीमी गति का प्रमुख कारण है.
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार की पहल पर देश भर में 30 नवंबर, 2017 तक 1331 आश्रय स्थलों को मंजूरी दी गई है. इनमें से सिर्फ 789 आश्रय स्थल ही कार्यरत हैं. शेष या तो निर्माणाधीन हैं या इन्हें दुरुस्त किया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित समिति की रिपोर्ट में इसे ना काफी बताते हुए समस्या के कारणों के बारे में कहा गया है. आश्रय उपलब्ध कराने में धीमी प्रगति के प्रमुख कारणों में राज्यों के स्थानीय प्रशासन में इच्छाशक्ति का अभाव, आश्रयस्थल के निर्माण हेतु जगह की अनुपलब्धता, जमीन की ऊंची कीमत, बेघरों की सही संख्या का नामालूम होना, आश्रयों का गलत प्रबंधन, केंद्र सरकार द्वारा दी गई राशि का सही से उपयोग न होना तथा स्थानीय निकायों और अन्य संबद्ध एजेंसियों के बीच आपसी तालमेल का अभाव शामिल हैं.
समस्या के समाधान के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में मंत्रालय द्वारा बताया गया है कि सरकार ने साल 2013 में राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत बेघरों के लिए आश्रय स्थल बनाने के लिए दीन दयाल अंत्योदय योजना 790 शहरों में शुरू की थी. बाद में इसे 4041 कस्बों तक विस्तारित कर दिया गया.
योजना के तहत अब तक 25 राज्य और संघ शासित राज्यों में 1331 आश्रय स्थलों के निर्माण की राशि जारी की जा चुकी है. राज्यों में काम की धीमी गति का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल 30 नवंबर तक सिर्फ 789 आश्रय स्थल ही कार्यरत हो सके.
इनमें सबसे धीमा काम उत्तर प्रदेश और बिहार में देखने को मिला है. मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक बिहार को मंजूर 114 आश्रय स्थलों में सिर्फ 31 बन सके जबकि उत्तर प्रदेश को मंजूर 92 आश्रय स्थलों में महज 5 आश्रय स्थल कार्यरत हो सके हैं.
वहीं दिल्ली, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और मिजोरम का इस मामले में प्रदर्शन श्रेष्ठ रहा.
रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा सर्वाधिक 216 मंजूर आश्रय स्थलों में से 201 रैन बसेरे बेघरों को आश्रय मुहैया करा रहे हैं. जबकि मध्य प्रदेश के लिए मंजूर 133 में से 129 आश्रय स्थल बन गए हैं. तमिलनाडु को मंजूर 141 में से 102 और मिजोरम में 59 मंजूर आश्रय स्थलों में से 48 कार्यरत हैं.
मंत्रालय ने बेघरों और आश्रय स्थलों के बीच के अंतर को कम करने के लिए केंद्रीय स्तर पर प्रयास तेज करने का भरोसा दिलाया है. इस दिशा में न सिर्फ राज्य सरकारों से लगातार संपर्क और संवाद को बढ़ाया गया है बल्कि कड़ाके की सर्दी को देखते हुए अंतरिम व्यवस्था के रूप में किराए पर भवन लेने और बेघरों की पहचान करने के लिए स्वतंत्र एजेंसियों से सर्वेक्षण कराने जैसे उपाय किए गए हैं.
इतना ही नहीं मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र हेबीटैट की वर्ल्ड सिटी रिपोर्ट 2016 के अनुपालन में शहरी बेघरों की भारत में बढ़ती समस्या से निपटने के लिये राष्ट्रीय शहरी नीति बना कर इस पर अमल करने की पहल की है. इसके तहत नीति का प्रारूप बनाने के लिये मंत्रालय ने पिछले साल अक्तूबर में समिति का गठन कर दिया है.
उल्लेखनीय है कि वर्ल्ड सिटी रिपोर्ट 2016 के अनुसार भारत में साल 2015 तक शहरी क्षेत्रों में रहने वालों की संख्या 37.7 करोड़ के मौजूदा स्तर से बढ़कर लगभग 68 करोड़ हो जाएगी.
मंत्रालय ने भविष्य की इस चुनौती से निपटने के लिए राष्ट्रीय शहरी नीति बना कर इस पर अभी से अमल शुरू करने की पहल तेज कर दी है.