रज़ा साहब ने समय की कमी के कारण पहले संवाद लिखने से मना कर दिया था.
नई दिल्ली: राही मासूम रज़ा ने शुरुआत में समय की कमी का हवाला देते हुए महाभारत के टेलीविज़न रूपांतरण के लिए डायलॉग लिखने की बीआर चोपड़ा की गुज़ारिश ठुकरा दी थी.
लेकिन, हिंदू धर्म के कुछ स्वयंभू संरक्षकों की ओर से उन पर टिप्पणी किए जाने के बाद उर्दू कवि राही मासूम रज़ा न केवल इस भव्य टीवी सीरियल से जुड़े बल्कि उन्होंने महाभारत के संवाद भी लिखे, जो आज भी घर-घर में लोकप्रिय हैं.
यह किस्सा ‘सीन-75’ के पूनम सक्सेना द्वारा किए गए अंग्रेज़ी अनुवाद में मिलता है. यह रज़ा का हिंदुस्तानी भाषा में लिखा गया एक उपन्यास है, जिसका सबसे पहला प्रकाशन 1977 में हुआ था.
सक्सेना किताब के संबंध में लिखे अपने लेख में कुंवरपाल सिंह का एक संस्मरण उद्धृत करती हैं. कुंवरपाल सिंह दिग्गज कवि एवं पटकथा लेखक और रज़ा के करीबी मित्र और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सहपाठी थे.
वह कुंवरपाल सिंह के ज़रिये यह कहानी सुनाती हैं, जब फिल्म निर्माता बीआर चोपड़ा ने रज़ा साहब से संवाद लिखने की गुज़ारिश की, तो उन्होंने समय की कमी का हवाला देते हुए संवाद लिखने से इंकार कर दिया. लेकिन बीआर चोपड़ा ने एक संवाददाता सम्मेलन में उनके नाम की घोषणा कर दी.
उन्होंने लिखा, ‘हिंदू धर्म के स्वयंभू संरक्षकों ने इसका विरोध किया और पत्र पर पत्र आने शुरू हो गए जिनमें लिखा था: क्या सभी हिंदू मर गए हैं, जो चोपड़ा ने एक मुसलमान को इसके संवाद लेखन का काम दे दिया.’
किताब के अनुसार, ‘चोपड़ा ने यह पत्र रज़ा साहब के पास भेज दिए. इसके बाद अगले ही दिन भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब के पैरोकार रज़ा साहिब ने चोपड़ा को फोन किया और कहा, चोपड़ा साहिब… मैं महाभारत लिखूंगा. मैं गंगा का पुत्र हूं. मुझसे ज़्यादा भारत की सभ्यता और संस्कृति के बारे में कौन जानता है.’
साल 1990 के दौरान इंडिया टुडे पत्रिका को दिए साक्षात्कार में रज़ा से हिंदू कट्टरपंथियों के विरोध के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे बहुत दुख हुआ… मैं हैरान था कि एक मुसलमान द्वारा पटकथा लेखन को लेकर इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है. क्या मैं एक भारतीय नहीं हूं.’
ये बातें रज़ा साहब के दिल से निकली थीं, जो हमेशा अपने आप को गंगा-पुत्र, गंगा किनारे वाला कहा करते थे. सक्सेना ने हार्पर कॉलिंस के हार्पर पेरेनिअल द्वारा प्रकाशित लेख ‘सीन-75’ में ये किस्से लिखे हैं.
उल्लेखनीय है कि राही मासूम रज़ा का जन्म पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे स्थित गाज़ीपुर में 1927 में हुआ था. उन्हें आधा गांव, दिल एक सादा काग़ज़ और टोपी शुक्ला जैसे उपन्यासों के लिए जाना जाता है. उनकी पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई.
इसके बाद वह हिंदी फिल्मों में अपनी किस्मत आज़माने के लिए साल 1967 में मुंबई चले गए और वह 1992 में अपनी मृत्यु तक यहां काम करते रहे.
हिंदी फिल्मों में काम के दौरान उन्होंने 300 से ज़्यादा फिल्मों की पटकथा और संवाद लिखे, जिसमें मिली (1975), मैं तुलसी तेरे आंगन की (1978), गोलमाल (1979), क़र्ज़ (1980), लम्हे (1991) प्रमुख हैं.
‘सीन-75’ 1970 के दशक में बॉम्बे पर आधारित लघु उपन्यास है जिसमें एक कहानी के अंदर दूसरी कहानी शामिल है. यह एक युवा लेखक और उसके तीन दोस्तों के संघर्ष की कहानी है जो हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी जगह बनाना चाहते है.