ग्राउंड रिपोर्ट: खेलों की पहचान बने हरियाणा में युवा खिलाड़ियों की मौत पर कोई जवाबदेही नहीं

बीते दिनों हरियाणा में प्रैक्टिस के दौरान बास्केटबॉल पोल गिर जाने के चलते दो प्रतिभाशाली युवा खिलाड़ियों की जान चली गई. राज्य के खेल विभाग ने कुछ अधिकारियों को निलंबित तो किया मगर ख़ुद को क्लीन चिट देते यह भी कह दिया कि जहां हादसा हुआ, उस जगह का ज़िम्मा विभाग के पास नहीं था. शोकाकुल परिवार कहते हैं कि भले 'विश्वस्तरीय' सुविधा न मिले पर ऐसा इंतज़ाम तो हो कि खेलते हुए किसी बच्चे की जान न जाए.

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(एकदम दाएं) अमन की माता जी, हार्दिक राठी और अमन को मिले मेडल्स और पुरस्कार. (फोटो: सोनिया यादव और श्रुति शर्मा/ द वायर हिंदी)

बहादुरगढ़, रोहतक: राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय मैदानों तक सबसे अधिक पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को तैयार करने वाले राज्य हरियाणा में बीते दिनों बुनियादी खेल सुविधाओं की बदहाली ने दो युवा खिलाड़ियों की जान ले ली. रोहतक के 16 वर्षीय हार्दिक राठी और बहादुरगढ़ के 15 वर्षीय अमन, दोनों की मौत उस सिस्टम की लापरवाही का नतीजा बनी, जो खिलाड़ियों को सुरक्षित और बेहतर प्रशिक्षण माहौल देने में नाकाम रहा.

अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी लेब्रॉन और ब्रॉनी जेम्स की तरह एक दिन बास्केटबॉल की दुनिया में अपना नाम बनाने की चाहत रखने वाले रोहतक के हार्दिक की बीते 25 नवंबर को मौत हो गई.

हार्दिक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी थे और कई पदक अपने नाम कर चुके थे. उनके पिता के अनुसार, हार्दिक को सबसे ज्यादा बास्केटबॉल से प्यार था. वे इस खेल को ही अपनी जिंदगी मानते थे, लेकिन ये विडंबना ही रही कि हार्दिक की मौत भी उसी बास्केटबॉल के जर्जर हुए पोल (खंबे) के चलते हुई, जिसने उन्हें जीवन में हमेशा ऊंची उड़ान के लिए प्रेरित किया.

हरियाणा का लाखन माजरा गांव, जहां से यूं तो कई सालों से बास्केटबॉल और कबड्डी के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम दर्ज करवाते रहे हैं, लेकिन ये गांव सुर्खियों में तब आया, जब यहां के युवा स्पोर्ट्स क्लब में एक बास्केटबॉल पोल के गिरने से हार्दिक की मौत हो गई.

हार्दिक के कोच मोहित राठी द वायर हिंदी से बातचीत में बताते हैं कि ये खेल का मैदान पंचायत के अंतर्गत आता है, लेकिन बीते कई सालों से इसमें रखरखाव का कोई काम नहीं किया गया. गांव वाले ही अक्सर चंदा इकट्ठा करके यहां छोटा-मोटा काम करवाते रहते हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से कई बार मदद की गुहार लगाने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.

हार्दिक के कोच मोहित राठी. (फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

कोच हार्दिक के साथ हुए हादसे के दिन के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘करीब 10-10.30 रोज़ाना की तरह ही हार्दिक प्रैक्टिस के लिए ग्राउंड पर आया था. बाकी सभी बच्चे अपने वार्म-अप की तैयारी कर रहे थे. वहीं हार्दिक अकेला कोर्ट पर खेल रहा था. थोड़ी ही देर में पोल हार्दिक के ऊपर गिर गया और वह पूरी तरह अचेत हो गया. उसे अस्पताल भी ले जाया गया, लेकिन वो अपनी जिंदगी की जंग हार गया.’

कोच के अनुसार, बास्केटबॉल के ये पोल साल 2008-2009 के दौरान लगाए गए थे, लेकिन इसके बाद इनकी कोई देख-रेख नहीं की गई.

ये पोल जो अब हादसे के बाद अलग हटाकर रख दिए गए हैं, जगह-जगह से जंग खाए हुए और खस्ताहाल हैं. इसकी कहानी तस्वीरों में साफ बयां होती है.

युवा स्पोर्ट्स क्लब का बास्टकेटबॉल कोर्ट, जहां हार्दिक के साथ हादसा हुआ. (फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

इस बीच, इस मैदान और खिलाड़ी की मौत को लेकर राजनीति भी अपने चरम पर है. नेताओं का यहां आना-जाना लगा हुआ है. राज्य के खेल विभाग ने कुछ अधिकारियों को निलंबित तो किया है, लेकिन साथ ही मामले में खुद को क्लीन चिट भी दे दी है, ये कहते हुए कि जिस जगह हादसा हुआ, उसकी जिम्मेदारी खेल विभाग के पास नहीं थी.

पक्ष-विपक्ष संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीएलएडी फंड), रखरखाव की जिम्मेदारी और बुनियादी ढांचे के बजट को लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.

कोच सहित यहां उपस्थित कई लोगों ने बताया कि रोहतक के सांसद दीपेंद्र हुड्डा द्वारा यहां के लिए लाखों का फंड स्वीकृत किया गया, लेकिन इसके बावजूद यहां कोई काम नहीं किया गया. जब भी स्थानीय लोगों द्वारा इस बारे में प्रशासन से शिकायत की, उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

युवाओं ने कहा- खेलने के लिए कोई सुविधाएं नहीं हैं

द वायर हिंदी ने इस मैदान में खेलने वाले कुछ युवाओं से बात की, जिन्होंने बताया कि यहां खेलने के लिए कोई सुविधाएं नहीं हैं. बाहर कूड़े का ढेर लगा है, तो वहीं अंदर धूल भरे और टूटे ट्रैक हैं. यहां पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं है. बच्चे अपना पानी खुद लाते हैं, गेंद खरीदने के लिए पैसे जमा करते हैं और अपने किट खुद तैयार करते हैं. कोच और गांव के लोग अपने पैसे से जितना कर पाते हैं, उतना ही हो पाता है.

युवा स्पोर्ट्स क्लब का गेट. (फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

इस खेल के मैदान की सुरक्षा व्यवस्था भी भगवान भरोसे ही है. कई कबड्डी खेलने वाले खिलाड़ियों ने बताया कि यहां आवारा कुत्ते खुलेआम घूमते हैं, जो कई बच्चों को काट चुके हैं. थोड़ा अंधेरा होते ही नशाखोर और शराबी इसे अपना अड्डा बना लेते हैं. लाइटें कभी काम करती हैं, कभी बंद हो जाती हैं. कुछ कैमरे जरूर लगे हैं, लेकिन उनसे सुरक्षा में कोई खास मदद मिले, ऐसा नहीं है.

हालांकि, इन सीसीटीवी कैमरों की मदद से ही हार्दिक की मौत की सच्चाई दुनिया के सामने आ पाई. नहीं तो, रोहतक से महज़ 41 किलोमीटर दूर अमन के साथ भी दो दिन पहले एक ऐसा ही हादसा हुआ था, जिसकी खबर लगभग न के बराबर ही लोगों के कानों तक पहुंची थी.

इस संबंध में हार्दिक के कोच मोहित कहते हैं, ‘हमें अगर अमन की मौत का पता पहले चल गया होता, तो शायद हार्दिक के साथ ऐसा नहीं होता. क्योंकि हम इसे लेकर ज्यादा सतर्क होते और अपने यहां लगे सभी पोल की जांच करवा लेते.’

ये विडंबना ही है कि खेलों में सबसे आगे रहने वाले हरियाणा में स्थानीय ज़िला स्तर पर खेल के मैदान बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं. यहां पदक मिलने पर नकद पुरस्कार, सरकारी नौकरी और वाह-वाही की गूंज तो सभी को सुनाई पड़ती है, लेकिन जंग लगे खंभे, टूटे-फूटे ट्रैक और बांस के पोल का कामचलाऊ जुगाड़ शायद ही किसी को दिखाई देता है.

‘अमन की दुनिया उसके खेल के आस-पास ही घूमती थी’

अमन, जो दसवीं कक्षा के छात्र थे और बहादुरगढ़ के शहीद ब्रिगेडियर होशियार सिंह स्टेडियम में बास्केटबॉल की प्रैक्टिस के लिए रोज़ाना जाया करते थे, 23 नवंबर को अभ्यास के दौरान पोल के गिरने से बुरी तरह घायल हो गए. पहले सिविल अस्पताल और फिर रोहतक पीजीआई में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.

द वायर हिंदी से बातचीत में उनकी मां कांता देवी ने बताया कि अमन हमेशा जीतने की बातें करता था. उसकी दुनिया उसके खेल के आर-पास ही घूमती थी. घर में कोई त्यौहार हो, किसी का शादी-ब्याह हो, उसे खेल के आगे कुछ नहीं दिखता था.

कांता देवी आगे बताती हैं, ‘अमन को खेल से बहुत प्यार था. वो बाकी बच्चों की तरह अपना समय कभी इधर-उधर बर्बाद नहीं करता था. उसने स्कूल में कई मेडल जीते लेकिन जब भी सिल्वर मेडल मिलता, तो हमें घर में लगाने नहीं देता, क्योंकि उसका हमेशा कहना था कि वो गोल्ड लेकर आएगा.’

अमन की मां कांता देवी. (फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

अमन के पिता सुरेश कुमार दिल्ली के डीआरडीओ ऑफिस में अनुबंध कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं. वे हादसे वाले दिन के बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहते क्योंकि वे अब बेटे को खोने के सदमे में हैं. उन्हें लगता है कि उनके बेटे की मौत नहीं हुई बल्कि प्रशासन की लापरवाही ने उसकी हत्या की है.

सुरेश कुमार कहते हैं, ‘23 तारीख को रविवार का दिन था, लड़का दोपहर करीब दो बजे के आस-पास खेलने गया था. घर में कोई पारिवारिक आयोजन था, तो सभी ने उसे मना किया, लेकिन उस पर खेलने की धुन सवार थी और वो एक भी दिन अपनी प्रैक्टिस छोड़ना नहीं चाहता था. उसके जाने के थोड़े समय बाद एक फोन आया, जो उसके किसी दोस्त का था, जिससे अमन के चोटिल होने की सूचना मिली.’

वे आगे बताते हैं कि ‘अमन को पहले बहादुरगढ़ के सिविल अस्पताल ले जाया गया और फिर रोहतक के पीजीआई. बहादुरगढ़ से रोहतक जाने में करीब डेढ़ घंटे का समय लगता है, उस दौरान अमन दर्द में जरूर था, लेकिन पूरे होशोहवास में था और बातें कर रहा था. उसे कोई बाहरी चोट नहीं लगी थी. लेकिन पीजीआई पहुंचने के बाद उसे करीब घंटा-डेढ़ घंटा बिना इलाज के रखा गया, जिसके चलते उसकी स्थिति ज्यादा खराब हो गई और आखिर में उसने दम तोड़ दिया.’

इस बारे में और जानकारी देते हुए अमन के ताऊ के बेटे रोहित कहते हैं, ‘हमने रोहतक पीजीआई पहुंचते ही डॉक्टर से कई बार संपर्क करने की कोशिश की, उन्हें ये भी बताया कि मेरे भाई की हालत नाजुक है, लेकिन ट्रामा सेंटर के डॉक्टर ने कोई ध्यान नहीं दिया. हमने बार-बार मदद की गुहार लगाई लेकिन हमारे साथ बदसलूकी की गई और आखिरकार इलाज में लापरवाही के चलते अमन की जान चली गई.’

रोहित का आरोप है कि डॉक्टर के खिलाफ आवाज़ उठाने और इलाज में देरी के लिए नाराज़गी जाहिर करने के बाद उन्हें अस्पताल की ओर से समझौते के लिए संपर्क किया गया था. उनसे एक वॉट्सऐप कॉल पर कहा गया कि वे इस मामले की शिकायत आगे न करें और आमने-सामने बैठकर इसे निपटा लें.

द वायर हिंदी ने इस संबंध में रोहतक पीजीआई से संपर्क करने की कोशिश की है. संस्थान के निदेशक और सुपरिटेंडेंट को मेल के माध्यम से सवाल भेजे गए हैं. खबर लिखे जाने तक हमें कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ है. जवाब आने पर खबर अपडेट की जाएगी.

रोहित अमन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी गलतियां दिखाते हैं और बताते हैं कि इसमें अमन को दूसरे पेज पर ‘मेल’ की जगह ‘फीमेल’ लिखा गया है, उसकी उम्र 15 की जगह 25 लिख दी गई है. और अस्पताल में भर्ती का समय भी 00.00 यानी रात के 12 बजे का लिखा गया है, जो गलत है.

सिस्टम की खामी को लेकर रोहित एक और घटना की ओर इशारा करते हैं, जो  में हुई थी. रोहित बताते हैं कि करीब तीन साल पहले 2022 में उसी शहीद ब्रिगेडियर होशियार सिंह स्टेडियम में बास्केटबॉल खेलते समय पहले भी एक बच्चा घायल हो चुका है, जो आजतक पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है.

अमन का पूरा परिवार चाहता है कि शासन-प्रशासन अपनी गलतियों को सुधारे. बच्चों के खेल के मैदान की खस्ता स्थिति ठीक की जाए और उन्हें बेहतर सुविधाएं मिलें, जिससे अमन की तरह किसी और परिवार का बच्चा इस बदहाली का शिकार न हो.

रोहतक का युवा स्पोर्ट्स क्लब और बहादुरगढ़ के शहीद ब्रिगेडियर होशियार सिंह स्टेडियम की तस्वीर. (फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

स्टेडियम में खेल की कोई व्यवस्था नहीं

द वायर हिंदी ने उस स्टेडिम का भी दौरा किया, जहां अमन के ऊपर बास्केटबॉल का पोल गिरा था. खेल का ये मैदान गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति सीनियर सेकेंडरी स्कूल, जो 1928 में स्थापित किया गया था, के ठीक सामने है.

इस स्टेडियम में मौजूद लोगों ने बताया कि ये स्कूल का ही मैदान है, जिसमें कोई भी, कभी भी आ-जा सकता है. यहां आने-जाने पर कोई रोक-टोक नहीं है. लोगों के अनुसार, यहां केवल एक कुश्ती कोच आधिकारिक तौर पर तैनात हैं, बाकी कोच अनौपचारिक रूप से खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देते हैं. ज्यादातर बच्चे यहां बिना किसी कोच के ही खेलते हैं.

 

(फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

स्टेडियम में युवा कांग्रेस की ओर से बास्केटबॉल कोर्ट और उसके आस-पास ‘अमर है अमन’ के कुछ पोस्टर लगाए गए हैं. यहां अभी भी बच्चों का खेलना जारी है. हालांकि, अब यहां बास्केटबॉल कोर्ट पर क्रिकेट खेला जा रहा है.

(फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

इस स्कूल के पूर्व छात्र और हरियाणा सरकार में अधिकारी के पद से रिटायर हुए दलजीत सिंह बताते हैं कि वे अक्सर इस स्टेडियम में घूमने या धूप लेने चले आते हैं. वे इस जगह को भगत सिंह, मांगेराम वत्स और आज़ाद हिंद फ़ौज के कप्तान चौधरी कंवल सिंह दलाल से जोड़ते हैं.

उनके अनुसार, ‘इस जगह का बहुत मह्त्वपूर्ण इतिहास है, कप्तान कंवल सिंह दलाल ने यहां रात में पढ़ाई के लिए रात्रि कॉलेज खोला था. ब्रिटिश शासन से छीपने के लिए कई बार भगत सिंह और अन्य स्वतंत्रता सेनानी यहां शरण लेते थे. लेकिन आज़ादी के बाद इसे एकदम नज़रअंदाज़ कर दिया गया.’

वे बताते हैं कि बीते कई दशकों से इसकी यही खस्ता स्थिति बरकरार है. सिवाय दीवार पुताई के यहां कुछ नहीं होता. कुछ समाजसेवी हैं, जो अपनी इच्छानुसार यहां कुछ-कुछ काम करवा जाते हैं. कभी व्यायाम के लिए कोई व्यवस्था, तो कभी खेलों के लिए. जैसा उनका बजट होता है. लेकिन यहां प्रशासन, जो शिक्षा विभाग के अंतर्गत आता है, कुछ नहीं करवाता.

यहां वॉलीबॉल खेलने वाले कुछ बच्चे बताते हैं कि उस हादसे के बाद स्कूल ने सभी खंभों को हटवा दिया. इसलिए अब इन बच्चों को लकड़ी के बांस के जुगाड़ से अपना काम चलाना पड़ रहा है.

(फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

इस संबंध में स्कूल के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि स्कूल में सब इस हादसे के बाद घबराए हुए हैं. जिस दिन ये हादसा हुआ, उस दिन कोई इतना बवाल नहीं हुआ था. क्योंकि उस बच्चे को जब यहां से लेकर गए थे, ठीक-ठाक हालत में ही लग रहा था, शायद अंदरूनी चोट ज्यादा गंभीर लगी हो, लेकिन रोहतक वाले मामले के बाद यहां खलबली मच गई. सभी मीडिया वाले आने लगे और मामला रोज़ टीवी पर दिखाया जाने लगा.

वे कर्मचारी आगे बताते हैं, ‘स्कूल प्रिंसिपल ने अब किसी से भी मिलने से मना कर दिया है. कोई भी मीडिया से आता है, तो यही कह दिया जाता है कि इस इस वक्त वे मौजूद नहीं हैं. क्या करें उनकी गलती भी नहीं है. सरकार पैसा नहीं देगी तो काम कैसे होगा.’

ये पूछने पर कि क्या ये बास्केटबॉल पोल स्कूल ने लगवाया है, कर्मचारी कुछ नहीं बताते और आगे चले जाते हैं.

इतने में पास खड़ी एक महिला जिनके बच्चे का स्कूल में इम्तिहान था, कहती हैं, ‘पूरी लड़ाई तो इसी बात की है. कोई कहता है कि खंभा स्कूल ने नहीं लगवाया, वो अवैध है. लेकिन अगर स्कूल ने नहीं लगवाया, तो जिसने भी लगवाया, उसे रोका क्यों नहीं गया.’

यहां के स्थानीय विधायक राजेश जून ने इस मामले में द वायर हिंदी से कहा कि सरकार पीड़ित परिवार के साथ है और उनकी हरसंभव मदद की जाएगी. मामले की जांच चल रही है और खेलों के लिए बेहतर सुविधाएं देने की कोशिश लगातार जारी है.

हालांकि, विधायक महोदय ये भी कहते हैं कि जो होनी है, उसे भला कौन टाल सकता है. वे इस हादसे की तुलना सड़क दुर्घटना से करते हुए कहते हैं कि सड़क और ड्राइवर कितने भी अच्छे क्यों न हो, जब हादसा होना होता है, तो हो ही जाता है.

दीवारों पर मेडल और घर सूने

गौरतलब है कि हार्दिक और अमन दोनों की कहानी लगभग एक जैसी है. दोनों के सूने घरों में आज उनके मेडल और इनाम में मिली ट्राफियां परिजनों को हर-पल इनकी कमी का एहसास भी दिला रही हैं.

हार्दिक के मेडल और ट्रॉफी. (फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

दोनों बच्चों के घरवालों ने शासन-प्रशासन की लापरवाही के खिलाफ पुलिस का रुख भी किया है. हालांकि, हार्दिक के पिता की एफआईआर दर्ज कर ली गई है, लेकिन अमन के परिवार को यहां भी निराशा ही मिली है.

उनकी शिकायत का थाने में क्या हुआ, इसकी जानकारी तक कोई उन्हें दे रहा. क्योंकि मामला किस विभाग का है और स्टेडियम किसके अंतर्गत आता है, सब इसी में उलझे हुए हैं.

अमन के मेडल और सर्टिफिकेट. (फोटो: सोनिया यादव/द वायर)

हरियाणा के कई स्थानीय रिपोर्टर बताते हैं कि स्टेडियम के खस्ताहाल सिर्फ इन दो हादसे वाली जगहों के नहीं हैं, बल्कि राज्य के कई ज़िलों में खेल के मैदानों की यही तस्वीर है.

यहां के युवा खिलाड़ियों की मांगें भी यही हैं कि उन्हें खेल के लिए स्कूल और पंचायत स्तर पर बेहतर सुविधाएं मिलें, जिसमें समतल मैदान, दौड़ने के लिए उचित ट्रैक, सभी खेलों के हिसाब से बेसिक कोर्ट, पानी और शौचालय की व्यवस्था और एक ऐसा कोच जो नियमित रूप से मैदान में उपस्थित हो.

उल्लेखनीय है कि हरियाणा देशभर में खेलों में सबसे अग्रणी है. यहां ज्यादातर घरों से खिलाड़ी निकलते हैं, जो राष्ट्रीय खेलों से लेकर ओलंपिक खेलों तक में अपना परचम लहराते नज़र आए हैं. ऐसे में इन दो घटनाओं ने एक बार फिर पदक की चमक-दमक से दूर हरियाणा में बुनियादी खेल सुविधाओं की कमी की ओर इशारा किया है.

द वायर हिंदी ने खेल प्रभाग, रोहतक की उप निदेशक सुनीता खत्री और हरियाणा सरकार के खेल विभाग के आयुक्त एवं सचिव विजय सिंह दहिया को इस मामले से जुड़े सवाल भेजे हैं, लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. यदि कोई जवाब आता है, उसे खबर में जोड़ा जाएगा.

किसकी जिम्मेदारी?

इस मामले पर कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि खेल नीति में आई गिरावट भारतीय जनता पार्टी की ‘पूरी तरह से उपेक्षा’ के कारण है. उन्होंने हार्दिक और अमन के परिवार को एक-एक करोड़ रुपये की सहायता राशि और सरकारी नौकरी की मांग की है.

उन्होंने कहा कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से सरकार ने नए स्टेडियमों का निर्माण बंद कर दिया है और विरासत में मिले स्टेडियमों का रखरखाव करने में भी विफल रही है. हुड्डा ने उपेक्षा के प्रमाण के रूप में खेलो इंडिया के लिए आवंटित धनराशि का भी हवाला दिया.

उन्होंने कहा, ‘जिस राज्य को पदक मिलते हैं, उसे सबसे कम धनराशि मिलती है. जिस राज्य को कोई पदक नहीं मिलता, उसे करोड़ों रुपये मिलते हैं.’

उन्होंने बताया कि हरियाणा को खेलो इंडिया अवसंरचना निधि के तहत केवल 66.59 करोड़ रुपये मिले, जबकि गुजरात को 426.13 करोड़ रुपये मिले. हरियाणा के पास 117 खेलो इंडिया पदक हैं, जबकि गुजरात के पास केवल 13 पदक हैं.

हालांकि, खेल मंत्री ने इसकी काट में पिछले कुछ वर्षों में नकद पुरस्कारों में लगातार वृद्धि और खेल नर्सरी के विस्तार का हवाला दिया है.

उन्होंने बताया कि पिछले महीने ही आगे की मरम्मत के लिए पीडब्ल्यूडी को 114 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए गए थे, और अधिकारियों को राज्य भर के सभी स्टेडियमों का मानचित्रण और वर्गीकरण करने का निर्देश दिया गया है.

हालांकि, हार्दिक और अमन के परिवारों के लिए यह राजनीतिक खींचतान अब कोई मायने नहीं रखती, क्योंकि उन्होंने अपने बच्चों को खो दिया है. दोनों परिवारों का कहना है कि कोई कुछ नहीं करने वाला, दो-चार दिन का मेला और आरोप-प्रत्यारोप का खेल है, धीरे-धीरे सब शांत हो जाएंगे और फिर से लापरवाही जारी रहेगी.

इन परिवारों को सरकार से अपने बच्चों के लिए ‘विश्वस्तरीय’ सुविधाओं की चाहत नहीं है, बस ये बुनियादी जरूरतें पूरी करने की उम्मीद रखते हैं, जिससे कम से कम खेलते हुए किसी बच्चे की जान न जाए.