कर्नाटक: हेट स्पीच को लेकर विधानसभा में विधेयक पारित, नफ़रती भाषण देने पर सात साल तक की क़ैद

विपक्ष के ज़ोरदार विरोध के बीच कर्नाटक विधानसभा ने गुरुवार को कर्नाटक हेट स्पीच और हेट क्राइम (रोकथाम) विधेयक, 2025 पारित कर दिया. इस विधेयक में नफ़रती जन्य अपराधों के लिए सात साल तक की क़ैद और 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Flickr/John S. Quarterman CC BY 2.0)

नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा ने गुरुवार (18 दिसंबर) को विपक्ष के ज़ोरदार विरोध के बीच कर्नाटक हेट स्पीच और हेट क्राइम (रोकथाम) विधेयक, 2025 पारित कर दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक, इस विधेयक में नफरती अपराधों के लिए सात साल तक की कैद और 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.

यह विधेयक सार्वजनिक रूप से मौखिक, मुद्रित, सार्वजनिक या इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से दिए गए भाषण या संवाद पर लागू होगा. नफरत जन्य अपराध करने वालों के लिए विधेयक में कम से कम एक वर्ष की कैद का प्रावधान है, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही ऐसे अपराधियों पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया जाएगा. वहीं, बार-बार अपराध करने पर सजा कम से कम दो साल होगी, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया जाएगा.

इस विधेयक को पेश करते हुए गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने इस वर्ष 5 मई को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने सांप्रदायिक घृणा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया था. उन्होंने कहा कि नफरती भाषणों के कारण हत्याएं और अंतर-सामुदायिक हिंसा हुई है, जिससे सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा है.

गृह मंत्री अनुसार, यह विधेयक धर्म, जाति, लिंग, भाषा और अन्य पहचानों पर आधारित भेदभाव को दूर करके संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए बनाया गया है.

जी. परमेश्वर ने आगे कहा कि विधेयक का उद्देश्य घृणास्पद भाषणों और ऐसे अपराधों के प्रसार, प्रकाशन या प्रचार को रोकना है, जो ‘समाज में किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के प्रति असामंजस्य और घृणा उत्पन्न करते हैं.’ एक अलग कानून की आवश्यकता पर जोर देते हुए गृह मंत्री ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां ​​भड़काऊ भाषण देने वाले वक्ताओं के खिलाफ अनिश्चित काल तक निवारक प्रतिबंधों पर निर्भर नहीं रह सकतीं.

उन्होंने कहा, ‘अगर हमें सूचना मिलती है कि किसी व्यक्ति का भाषण तनाव पैदा कर सकता है, तो हम उस पर प्रतिबंध लगा देंगे. हम ऐसा कब तक कर सकते हैं? इसलिए, एक कानून आवश्यक है.’

उन्होंने यह भी बताया कि ऐसे भाषणों के बाद अक्सर हिंसक घटनाएं होती हैं.

इस विधेयक के तहत सरकार को किसी भी मीडिया प्लेटफॉर्म से नफरती भाषण सामग्री हटाने का निर्देश देने का अधिकार दिया गया है. इसके दायरे में सार्वजनिक स्थानों पर मौखिक, मुद्रित, सार्वजनिक प्रदर्शन या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से किए गए भाषण, बातचीत या संवाद शामिल हैं.

विधेयक हेट स्पीच को संज्ञेय, गैर-जमानती अपराध बनाने का प्रयास करता है

इस विधेयक में हेट क्राइम यानी नफरतजन्य अपराध को इस प्रकार परिभाषित किया गया है: ‘किसी भी व्यक्ति (जीवित या मृत) या व्यक्तियों के समूह या संगठन के प्रति असामंजस्य, शत्रुता, घृणा या दुर्भावना उत्पन्न करने के उद्देश्य से नफरती भाषण देना, प्रकाशित करना या प्रसारित करना, या ऐसे नफरती भाषण को बढ़ावा देना, प्रचारित करना, उकसाना, सहायता करना या प्रयास करना.’

विधेयक हेट स्पीच को संज्ञेय, गैर-जमानती अपराध बनाने का प्रयास करता है. इसके अलावा, अपराधियों पर प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (जेएमएफसी) की अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है.

विधेयक में कहा गया है, ‘किसी संगठन या संस्था के मामले में अपराध के समय प्रभारी और जिम्मेदार प्रत्येक व्यक्ति को दोषी माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी और तदनुसार दंडित किया जाएगा.’

मालूम हो कि सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने तटीय कर्नाटक में सांप्रदायिक हिंसा की सिलसिलेवार घटनाओं के बाद, जिसकी शुरुआत अप्रैल में एक मुस्लिम व्यक्ति अशरफ की पीट-पीटकर हत्या से हुई थी, जून में हेट स्पीच कानून पर चर्चा शुरू की थी.

विपक्ष का विरोध, विधेयक की प्रति फाड़ी

कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता आर. अशोक ने विधेयक का विरोध करते हुए उसकी एक प्रति फाड़ दी, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक विरोध दर्ज कराने के लिए सदन के वेल में आ गए.

उन्होंने तर्क दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1) का उल्लंघन करता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है. इसके अलावा अशोक ने दावा किया कि प्रस्तावित कानून का दुरुपयोग पुलिस द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘यह सत्ताधारी सरकार का हथियार है. कुछ लोगों को खुश करने के लिए किसी को जेल भेजा जाएगा.’

उन्होंने चेतावनी दी कि पत्रकारों और विपक्षी दलों को भी निशाना बनाया जाएगा. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भारतीय न्याय संहिता में भड़काऊ भाषणों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं.

उल्लेखनीय है कि शहरी विकास और नगर नियोजन मंत्री बायराथी सुरेश द्वारा तटीय कर्नाटक के मंगलुरु शहर दक्षिण का प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा विधायक वेदव्यास कामथ के संदर्भ में यह टिप्पणी करने के बाद बहस और भी तीखी हो गई, ‘तटीय इलाकों में आग लगाने के बाद आप यहां आग क्यों उगल रहे हैं?’ इस टिप्पणी के बाद भाजपा विधायकों ने माफी की मांग की और सदन के वेल में जाकर अध्यक्ष यूटी खादर से आधिकारिक रिकॉर्ड से टिप्पणी हटाने का आग्रह किया.

हंगामा जारी रहने पर परमेश्वर ने विधानसभा से विधेयक का समर्थन करने की अपील की. ​​विपक्षी सदस्यों के विरोध और आगे की बहस में असमर्थ होने पर अध्यक्ष ने दोपहर के भोजन के लिए सदन स्थगित करने से पहले घोषणा की कि विधेयक ध्वनि मत से पारित हो गया है.

भाजपा विधायकों ने बाद में कहा कि शेष बहस में उनकी भागीदारी के बिना विधेयक पारित होने से वे हैरान हैं. अशोक ने कहा, ‘चर्चा के अवसर को सीमित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी.’

हालांकि, कानून मंत्री एचके पाटिल ने स्पष्ट किया कि विधेयक पारित हो चुका है और इस पर दोबारा चर्चा करने का कोई मौका नहीं है.