संशोधित बिल से पहले मनरेगा सूची से 16.3 लाख से अधिक श्रमिकों के नाम हटाए गए: रिपोर्ट

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि मनरेगा क़ानून को बदलने के लिए संसद में नया विधेयक पेश करने से क़रीब महीने भर पहले 10 अक्टूबर से 14 नवंबर के बीच मनरेगा सूची से 16.3 लाख से अधिक श्रमिकों के नाम हटाए गए हैं.

[प्रतीकात्मक फोटो साभार: Climatalk.in/Flickr (CC BY-NC 2.0)]

नई दिल्ली: संसद में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को बदलने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए विकसित भारत – गारंटी फॉर रोज़गार एंड अजीविका मिशन (ग्रामीण) (वीबी जी राम जी-VB–G RAM G) बिल, 2025 पर हुई तीखी बहस के बीच आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि हाल ही में मनरेगा सूची से 16.3 लाख से अधिक श्रमिकों के नाम हटाए गए हैं.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, श्रमिकों के नाम हटाने की यह प्रक्रिया 36 दिनों की अवधि में हुई, जो 16 दिसंबर, मंगलवार को लोकसभा में बिल पेश किए जाने से एक महीने पहले हुआ था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 10 अक्टूबर से 14 नवंबर के बीच की अवधि के इस डेटा ने ग्रामीण श्रमिकों और विशेषज्ञों के बीच इस बात को लेकर चिंता बढ़ा रही है कि कहीं उन्हें उस कानून, जो उन्हें काम का अधिकार देता है, से बाहर न कर दिया जाए.

यह आंकड़े ग्रामीण विकास राज्य मंत्री कमलेश पासवान ने समाजवादी पार्टी के सांसद लालजी वर्मा और आनंद भदौरिया द्वारा लोकसभा में पूछे गए प्रश्न के लिखित जवाब में दिए थे. मंत्री ने कहा कि जॉब कार्ड हटाना मनरेगा नियमों के तहत राज्यों द्वारा किया जाने वाला एक नियमित कार्य है.

उन्होंने बताया कि हटाए गए जॉब कार्ड फर्जी या डुप्लीकेट थे, कुछ श्रमिक स्थायी रूप से पलायन कर चुके थे, कुछ पंचायतें शहरी क्षेत्र में वर्गीकृत हो गई थीं और कुछ मामलों में मृत्यु के कारण नाम हटाए गए. उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल सत्यापन जैसे ई-केवाईसी नाम हटाने के कारण नहीं थे.

हालांकि, विपक्ष –  जो पहले से ही नए बिल का विरोध कर रहा है –  ने कहा कि यह बड़ी संख्या में हटाए गए नाम इस वर्ष शुरू किए गए आधार-आधारित ई-केवाईसी सत्यापन से जुड़े हैं.

बताया गया है कि विपक्ष ने उन रिपोर्ट्स की ओर इशारा किया जिनमें अनुमान लगाया गया था कि इसी अवधि में बड़ी संख्या में श्रमिकों के नाम हटाए गए थे– जिनकी वास्तविक संख्या लगभग 27 लाख तक बताई गई, जो ई-केवाईसी नियमों के सख्त करने के साथ मेल खाती है.

दूसरी ओर, पासवान ने कहा कि नवंबर तक 56% से अधिक सक्रिय श्रमिक ई-केवाईसी पूरा कर चुके हैं और लगभग 99.7% सक्रिय रिकॉर्ड आधार के माध्यम से सत्यापित हो चुके हैं.

कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा 2005 में शुरू की गई मनरेगा योजना ने हर ग्रामीण परिवार को मांग के आधार पर साल में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी थी और इसका वित्तीय भार केंद्र सरकार उठाती थी.

वहीं, नया बिल ‘विकसित भारत @2047’ की राष्ट्रीय दृष्टि के अनुरूप ग्रामीण विकास ढांचा तैयार करने का दावा करता है, जिसके तहत हर ग्रामीण परिवार को, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल श्रम करने के लिए तैयार हों, हर वित्तीय वर्ष में 125 दिन का रोजगार देने का प्रस्ताव है.

लेकिन इस बिल के तहत केंद्र सरकार की मजदूरी भुगतान में हिस्सेदारी 90:10 से घटाकर 60:40 करने का प्रस्ताव है और एक ऐसी अवधि का प्रावधान करता है – जो एक वित्तीय वर्ष में कुल 60 दिनों की होगी – जो बोआई और कटाई जैसे कृषि मौसमों के समय को कवर करती है – जिस दौरान काम रोकने का प्रावधान है.

नाम हटाए जाने का यह सिलसिला नया नहीं

बीते 9 दिसंबर को ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में बताया था कि 2019-20 से 2024-25 के बीच देश भर में 4.57 करोड़ मनरेगा जॉब कार्ड हटाए गए, जबकि इसी अवधि में 6.54 करोड़ नए कार्ड जारी किए गए.

चौहान ने भी कहा था कि जॉब कार्ड हटाना एक ‘नियमित प्रक्रिया’ है और न ही एनएमएमएस (रीयल टाइम उपस्थिति प्रणाली) और न ही एपीबीएस (आधार पेमेंट सिस्टम) जॉब कार्ड हटाने का कारण हैं.

इसी बीच, विपक्ष ने नए वीबी जी राम जी बिल का कड़ा विरोध किया है, आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ‘नाम बदलने के जुनून’ में महात्मा गांधी का नाम मिटा रही है और कानूनी रूप से सुनिश्चित कार्य के अधिकार को साधारण केंद्रीय योजना में बदलकर राज्यों पर वित्तीय बोझ डाल रही है.

विरोध के बावजूद यह बिल संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है.